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और अब रामदेव का 'दिल्ली शो'...

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योग क्रिया द्वारा शरीर की काया को निरोग रखने के दावे को माध्यम बना कर आम भारतीय जनमानस तक अपनी पैठ बनाने वाले बाबा रामदेव इन दिनों योग के बजाए राजनीति,राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार विशेषकर देश के भ्रष्टाचारियों द्वारा विदेशों में जमा काला धन के मुद्दे पर अधिक सक्रिय व मुखरित हैं। बाबा जी जब भी स्वप्रशंसा की मुद्रा में आते हैं तो वे स्वयं इस प्रकार के आंकड़े बताते हैं कि वे अब तक देश में कितने करोड़ लोगों से मिले तथा कितने करोड़ लोगों को उन्होंने योग के माध्यम से रोग मुक्त किया। योगा यास के प्रचार व प्रसार के प्रति उनके  प्रयासों को देखकर यह कहा जा सकता है कि वे देश के एक सर्वप्रतिष्ठित योग गुरू हैं। इस बात से भी कोई व्यक्ति इंकार नहीं कर सकता कि योग क्रिया किसी भी स्वस्थ शरीर के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। परंतु बाबा रामदेव ने आम जनमानस तक अपनी पैठ बनाने का माध्‍यम योग को  तो ज़रूर चुना परंतु धीरे-धीरे वे इसी योग के  मंच पर छोटे से लेकर बड़े राजनीतिज्ञों तक को आमंत्रित कर न सिर्फ अपने योग शिविरों को महत्तता बढ़ाने में जुट गए बल्कि ऐसे ही शिविरों के बहाने वह जनता को यह समझा व दिखा पाने में भी सफल रहे कि देेश का बड़े से बड़ा राजनीतिज्ञ उनके साथ खड़ा है। उन्होंने राजनीतिज्ञों से अपने इन संबंधों का पूरा लाभ उस समय उठाया जबकि उन्होंने हरिद्वार में पतंजलि योग पीठ नामक विश्वविद्यालय की स्थापना की तथा उसमें दर्जनों मंत्रियों व मुख्‍यमंत्रियों को आमंत्रित किया। राजनेताओं से अपने संबंधों को दर्शाने का उनके पास यह सबसे बेहतरीन मौका था।

बाबा रामदेव तथा राजनेताओं के संबंधों को लेकर यहां एक बात और भी काबिल-ए-गौर है कि भले ही बाबा रामदेव अपने योग शिविर की शोभा बढ़ाने के लिए जगह-जगह राजनेताओं को क्यों न आमंत्रित करते रहे हों तथा अपनी इस राजनैतिक पैठ का भरपूर लाभ भी उन्होंने अपने विश्वविद्यालय, फार्मेसी अथवा अन्य तरीक़ों से अपने नेटवर्क को बढ़ाने में क्यों न उठाया हो, परंतु राजनेताओं का रामदेव के प्रति आकर्षण या रुझान का कारण एकमात्र यही था और अब भी है कि बाबा के समक्ष उनके शिविरों में रोगियों की एक अच्छी खासी भीड़ ब्रह्ममुहुर्त में ही इकट्ठा होती थी और भीड़ का नेताओं से कितना गहरा रिश्ता है यह हम सभी जानते हैं। यही भीड़ नेताओं को रामदेव के शिविर में शिरकत करने के लिए आकर्षित करती है। बहरहाल इन्हीं सब तिकड़मबाजि़यों के बल पर बाबा रामदेव साईकल पर चलते-चलते हैलीकॉप्टर के मालिक बन गए। इस दौरान उन्होंने टीवी चैनल तथा मीडिया के माध्यम से भी खूब याति अर्जित की। और आखिरकार किसी राजनीतिज्ञ की ही तरह अब उन्हें भी यह एहसास होने लगा कि पूरा देश इस समय उनके पीछे खड़ा है और वह इस भारी जन समर्थन के बल पर जो चाहें कर सकते हैं।

इसी महत्वकांक्षा को लेकर उन्होंने भारत स्वाभिमान ट्रस्ट की स्थापना कर डाली और भ्रष्टाचार विशेषकर विदेशों में जमा कालाधन वापस भारत लाए जाने के मुद्दे को लेकर अपने योग शिविरों में 'प्रवचन' देना शुरू कर दिया। उनके रंग रूप तथा बाने को देखकर तमाम लोग उनके समर्थन में भी खड़े हुए जबकि उनके तमाम समर्थक ऐसे भी थे जिन्हें बाबा रामदेव का योग से हटकर राजनीति की ओर जाना अच्छा नहीं लगा। ऐसे ही एक नाराज़ भक्त ने पिछले दिनों ग्वालियर में बाबा रामदेव की ओर अपना जूता खींचकर फेंका। बाबा रामदेव पर जूता फेंक ने वाला व्यक्ति सी आर पी एफ का एक जवान था जो दूर-दराज़ से चलकर रात में ही रामदेव के योग शिविर में योग द्वारा स्वास्थ लाभ लेने के उद्देश्य से पहुंचा था। परंतु प्रात: काल जब बाबा जी मंच पर प्रकट हुए उस समय लगभग दो घंटे तक बाबा जी राजनीति, भ्रष्टचार, काला धन तथा स्वाभिमान ट्रस्ट की भविष्य की राजनीतिक योजनाओं पर ही बोलते रहे। आखिरकार योग क्रिया सीखने आए सी आर पी के उस जवान के सब्र का बांध टूट गया और उसने बाबा के राजनीतिक भाषण का विरोध करते हुए अपना रोष इस ढंग से व्यक्त किया। उसने यह भी कहा कि उसे तथा शिविर में ााग लेने वाले सभी व्यक्तियों को योगा यास सीखने का लालच देकर यहां बुलाया गया है। और इस शिविर में घिसी-पिटी पारंपरिक राजनैतिक भाषणबाजि़यां कर अपना बहुमूल्य समय निकाल कर दूर-दराज़ से चलकर आए इन सभी योग प्रेमियों का समय बर्बाद किया जा रहा है।

बहरहाल राजनीति करने का अधिकार किसी को भी हो सकता है इसलिए बाबा रामदेव की भी राजनीति में सक्रियता न तो असंवैधानिक है न ही ग़ैर क़ानूनी। हां हमारे ही समाज के कुछ लोगों का यह मत ज़रूर है कि किसी भी संत, योगी, महापुरूष या धर्मगुरू को अपने ही मुख्‍य व्यवसाय पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अपने समर्थकों, शुभ चिंतकों व भक्तों का प्रयोग किन्हीं राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए हरगिज़ नहीं किया जाना चाहिए। परंतु बाबा रामदेव द्वारा ऐसा ही किया जा रहा है। वे योगाभ्‍यास के नाम पर तैयार की गई अपनी राष्ट्रव्यापी टीम को राजनीति में झोंककर अपनी राजनैतिक हैसियत को तौलना चाह रहे हैं। और उन्हें आम लोगों के दिलों को छूने वाला अर्थात् विदेशी बैंकों से काला धन वापस लाए जाने जैसा मुद्दा हाथ लगा है। बाबा रामदेव के आलोचक इस बात को लेकर उन्हें संदेह की नज़रों से भी देख रहे हैं कि आखिऱ भ्रष्टाचार व काला धन संग्रह जैसे मुद्दे पर बाबा रामदेव भ्र्रष्ट लोगों विशेषकर भ्रष्ट राजनितिज्ञों को अपने साथ लेकर क्यों और कैसे चल रहे हैं? अभी कुछ समय पूर्व ऐसी खबरें आर्इं कि बाबा जी के ट्रस्ट द्वारा ग्यारह लाख रूपये का चंदा भारतीय जनता पार्टी में पंजाब नेशनल बैंक के एक चेक के माध्यम से दिया गया। इससे साफ पता चलता है कि बाबा जी का झुकाव भाजपा की ओर है। वैसे भी अपने चार जून को प्रस्तावित अनशन की योजना तैयार करने हेतु बाबा रामदेव ने गोविंदाचार्य जैसे पूर्व भाजपाई नेता को नियुक्त किया है। आज भी भाजपा शासित राज्यों के मु यमंत्रियों से उनका लगाव है। पिछले दिनों भी वे मध्य प्रदेश में मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ मंच सांझा करते नज़र आए।

कुल मिलाकर भ्रष्ट राजनीतिज्ञों से गलबहियां करना तथा जनता के बीच जाकर उन्हीं को कोसना या उन्हीं पर काले धन या भ्रष्टाचार जैसे आरोप लगाना आम लोगों के गले से नीचे नहीं उतर रहा। कुछ लोगों का तो यह भी मत है कि सरकार को अस्थिर व बदनाम करने के लिए कुछ विशेष शक्तियों द्वारा बाबा रामदेव को जानबूझ कर आगे किया गया है। भाजपा तथा उसके सहयोगी दल बाबा रामदेव के चार जून के दिल्ली अभियान को सफल बनाने तथा इसे प्रचारित करने में जी-जान से जुटे हुए हैं। विपक्ष चाहता है कि यदि अन्ना हज़ारे के जंतरमंतर पर किए गए आमरण अनशन का श्रेय उसे ठीक से नहीं मिल सका तो कम से कम बाबा रामदेव के अनशन का श्रेय तो विपक्ष को विशेषकर भाजपा को मिल ही जाए। परंतु सत्तारुढ़ कांग्रेस पार्टी ने भी विपक्ष की इस मंशा पर पानी फेरने की पूरी योजना बना ली है। इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गत् दिनों बाबा रामदेव ने अपने इसी 4जून के दिल्ली चलो अभियान के तहत छिंदवाड़ा का भी दौरा किया। यहां केंद्रीय मंत्री कमलनाथ रामदेव के मंच पर पहुंचे। कमलनाथ ने अपने भाषण में बाबा रामदेव के 4 जून के कार्यक्रम को न केवल पूरा समर्थन दिया बल्कि यह भी कहा कि छिंदवाड़ा के लोग बड़ी सं या में बाबा जी के इस कार्यक्रम में शरीक होंगे। कमलनाथ ने गर्जना भरे लहजे में कहा कि वे, उनकी पार्टी तथा उनके मंत्री सभी काला धन के मुद्दे पर बाबा जी के साथ हैं तथा उनके आंदोलन का समर्थन करते हैं।

ज़ाहिर है ऐसे में जनता को तो यह सोचना ही पड़ेगा कि जब सत्तापक्ष तथा विपक्ष दोनों ही भ्रष्टाचार व काले धन के मुद्दे पर बाबा रामदेव के साथ हैं या उनके अभियान का समर्थन कर रहे हैं फिर आखिर यह प्रदर्शन,धरना,हड़ताल व अनशन जैसे 'शो' किसलिए, किसके विरुद्ध तथा किससे फरियाद करने की खातिर? कुछ विशलेषक इस पूरे मुद्दे को महज़ एक राजनैतिक नौटंकी करार दे रहे हैं। ऐसे लोगों का मत है कि भ्रष्टाचारियों व काला धन जमा करने वालों के साथ रहकर, उनके साथ फोटो खिंचवाकर तथा उनके साथ मंच सांझा कर भ्रष्टाचार व काला धन संग्रह का विरोध करना अपने अनुयाईयों के साथ महज़ एक मज़ाक है। काला धन निश्चित रूप भविष्य में संग्रह नहीं किया जाना चाहिए और विदेशों में जमा काला धन यथाशीघ्र अपने देश में वापस लाए जाने के प्रयास भी किए जाने चाहिए। पंरतु इस समय देश की  इससे भी बड़ी ज़रूरत भूख, स्वास्थय और बेरोज़गारी की समस्या को हल करना है। छतीसगढ़,उड़ीसा,बिहार तथा बंगाल जैसे तमाम इलाक़े ऐसे हैं जहां आज भी करोड़ों लोग दो वक्त की रोटी नहीं खा पाते। लाखों लोग कुपोषण का शिकार हैं। लाखों लोग प्राथमिक चिकित्सा के बिना अपनी जानें गंवा बैठते हैं। काला धन की वापसी जैसे पूर्णतया राजनैतिक व एक-दूसरे पर लांछन लगाने व नीचा दिखाने वाले आंदोलनों से ज़्यादा ज़रूरी है इन बेसहारा,भूखे व अस्वस्थ लोगों की सहायता करना तथा इन्हें भूख से बचाने का प्रयास करना। ऐसी ही विकट समस्याओं ने देश को माओवाद व नक्सलवाद जैसे नासूर दे दिए हैं। बेहतर होगा कि बाबा रामदेव व इनके जैसी राजनैतिक आकांक्षा पालने वाले सभी लोग उस दबे, कुचले भारत के उत्थान की दिशा में रचनात्मक कार्य करें व अपना योगदान दें जो दशकों से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ता हुआ देश के संपन्न समाज से मदद की गुहार लगा रहा है। परंतु अफसोस तो इसी बात का है कि इनकी गुहार सुनने वाला न कोई राजनेता है, न सत्तापक्ष,न विपक्ष, न कोई गुरु और न ही कोई योगाचार्य।

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