12 अप्रैल 2012
नई दिल्ली | सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को शिक्षा के अधिकार कानून के उस प्रावधान की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जो गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को 25 फीसदी सीटें आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े तबके के बच्चों को देने का आदेश देता है। हालांकि अदालत ने स्पष्ट किया कि यह प्रावधान गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होगा।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. एच. कपाड़िया, न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन की पीठ ने बहुमत से शिक्षा के अधिकार कानून की धारा 12 1सी की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इस धारा के तहत गरीब और कमजोर तबके के बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।
यद्यपि, न्यायमूर्ति राधाकृष्णन ने इस धारा के तहत सीटें आरक्षित करने के प्रावधान को संवैधानिक रूप से वैध नहीं माना। उनका मानना था कि गैर सहायता प्राप्त किसी भी स्कूल को, चाहे वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, 25 फीसदी सीटें आरक्षित करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि यह फैसला गुरुवार से स्वत: प्रभावी हो जाएगा लेकिन अब तक हो चुके दाखिले इससे प्रभावित नहीं होंगे।
शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सीटें आरक्षित करने के प्रावधान के विरोध में दाखिल विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने यह फैसला सुनाया। ये याचिकाएं सोसायटी फॉर अनएडेड प्राइवेट स्कूल्स, इंडिपेंडेंट स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया और अन्य ने दाखिल की थी।
याचिकाओं में कहा गया था कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत कमजारे तबके लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित करने के प्रावधान से बिना सरकारी हस्तक्षेप के शिक्षण संस्थान चलाने के उनके अधिकार का हनन होता है।
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