9 सितम्बर 2011
शिमला। हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष सेब की कम पैदावार किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है। सेब किसानों का कहना है कि कम पैदावार के कारण पूरे उत्तर भारत में कीमतें ऊंची बनी हुई हैं।
ऊपरी शिमला में कोटखाई के एक प्रमुख सेब उत्पादक कंवर दयाल कृष्ण सिंह ने आईएएनएस से कहा, "कम आपूर्ति के कारण सेब की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं और पिछले वर्ष की तुलना में 35 से 45 प्रतिशत अधिक हैं।"
उन्होंने कहा कि यहां तक कि छोटे आकार वाले और ओला प्रभावित सेब भी अच्छी कीमत में बिके हैं। उन्होंने कहा, "छोटे आकार के सेब भी पिछले वर्ष की तुलना में प्रति पेटी पूरे 500 रुपये अधिक पर बिके हैं।"
आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक इस वर्ष सेब का उत्पादन 1.70 करोड़ पेटी से भी कम होगा। यह मात्रा पिछले वर्ष हुए 4.45 करोड़ पेटी के उत्पादन से 60 प्रतिशत से भी ज्यादा कम है।
शिमला के पास स्थित ढाली सेब बाजार समिति के अध्यक्ष ज्ञान सिंह चंदेल ने कहा कि सबसे अच्छी श्रेणी के रॉयल डेलिशियस सेब की 20 किलोग्राम की एक पेटी दिल्ली के आजादपुर मंडी में 2,200 रुपये से 2,300 रुपये के बीच बिकी है, जबकि पिछले वर्ष यह 1,100 रुपये में बिकती थी।
चंदेल ने कहा कि इस वर्ष कुछ ही किसान दिल्ली और चंडीगढ़ की मंडियों में गए हैं, क्योंकि उन्हें राज्य में ही अच्छी कीमतें मिल गई हैं।
चंदेल ने कहा, "गुजरात और महाराष्ट्र के कई व्यापारियों ने बागानों में ही किसानों से सेब खरीद लिए।"
बागवानी विभाग के अधिकारियों ने कहा है कि शिमला, कुल्लू और मंडी जिलों की पहाड़ियों से सेब का आना अब लगभग बंद हो गया है। अब केवल अधिक ऊंचाई वाले किन्नौर और चम्बा जिलों में ही सेब तोड़ने का काम चल रहा है।
किन्नौर के बागवानी विकास अधिकारी जगत सिंह ने कहा कि कुछ इलाकों में सेब तोड़ने का काम शुरू हुआ है और यह अक्टूबर तक चलेगा।
सिंह ने कहा कि इस वर्ष किन्नौर में सेब के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। जबकि किन्नौर के सेब अपनी मिठास, रंग और सरसता के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं।
बागवानी विभाग का कहना है कि राज्य से विभिन्न मंडियों के लिए केवल 75 लाख पेटी सेब ही भेजे गए हैं, जबकि पिछले वर्ष इस अवधि तक दो करोड़ पेटी सेब बाहरी बाजारों में भेज दिए गए थे।
बागवानी विभाग के निदेशक गुरदेव सिंह ने कम पैदावार के लिए खराब मौसम को जिम्मेदार ठहराया है।
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