31 मार्च 2012
कोलकाता | महत्वपूर्ण सुधारों के मद्देनजर वर्ष 2012-13 के बजट प्रस्तावों के लिए उद्योग जगत की सराहना पा चुके केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने शनिवार को कहा कि राजनीतिक बाधाओं के चलते उन्होंने बजट में किसी भी प्रकार की नाटकीय घोषणा से परहेज किया। कलकत्ता चेम्बर ऑफ कॉमर्स की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में मुखर्जी ने कहा, "मैं कोई नाटकीय घोषणा (बजट प्रस्तावों में) नहीं करना चाहता था। वास्तव में मैंने इसका प्रयास भी नहीं किया। क्योंकि मुझे पता था कि किसी भी बजटीय प्रस्ताव को संसद की मंजूरी चाहिए।"
उन्होंने कहा, "यदि औद्योगिक घरानों के बोर्डरूम में या बुद्धिजीवियों के सेमिनार में इस पर फैसला लिया गया होता तो समस्याएं आसान हो जातीं।"
"लेकिन एक राजनीतिक कार्यकर्ता होने के नाते 1989 के बाद बदले राजनीतिक परिदृश्य को मैं नजरअंदाज नहीं कर सकता था। लगभग 23 सालों से हर चुनाव में देश के मतदाताओं ने किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया है। बंटा हुआ जनादेश होने का मतलब है कि हां, हम आगे बढ़ सकते हैं लेकिन आपको लोगों को भी साथ लेकर चलना होगा।"
ज्ञात हो कि आलोचकों और आम आदमी ने मुखर्जी की ओर से पेश किए आगामी वित्तीय बजट की आलोचना की थी।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए मुखर्जी ने कहा कि चूंकि कांग्रेस को दो तिहाई बहुमत हासिल नहीं है, इसलिए उन्हें इसको ध्यान में रखकर बजट प्रस्ताव तैयार करने पड़े।
बकौल मुखर्जी, "किसी भी वित्त मंत्री के लिए यह सैद्धांतिक प्रस्ताव नहीं है। मुझे दिमाग में यह बात भी रखनी थी कि कैसे मैं अपने प्रस्तावों पर लोकसभा में सहमति बना सकूं। इसलिए बाधाओं को देखकर मुझे प्रस्ताव तैयार करने थे। इसलिए मैं किसी नाटकीय घोषणा के फेर में नहीं पड़ा।"
उन्होंने कहा कि राजनीतिक बाध्यताओं के चलते सामान व सेवा कर जैसे सुधार कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में देरी हुई।
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