मिल्खा सिंह के बाद देश को एथलेटिक्स में 52 साल बाद गोल्ड दिलाने वाली कृष्णा पूनिया सात साल के बेटे की मां भी हैं। डिस्सक थ्रो में पूनिया ने 61.51 मीटर के साथ कॉमनवेल्थ में नया इतिहास रच दिया। 2006 के एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली पूनिया का उनका अगला उद्देश्य ओलंपिक में गोल्ड जीतना है। कृष्णा पूनिया से खास बात-
कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्णपदक आपकी हाल की तैयारियों का मुख्य लक्ष्य था? गोल्ड मैडल जीतने के बाद का अनुभव कैसा है?
मैं काफी वक्त से कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में जुटी थी। एशियन ग्रांपी भी इन्हीं तैयारियों का हिस्सा थी। एशियन ग्रांपी के पहले चरण के दौरान बेंगलोर में और फिर दूसरे चरण के दौरान पुणे में और फिर चेन्नई में मैंने गोल्ड जीता था। मैंने कड़ी मेहनत की और इसी का नतीजा है कि मुझे कॉमनवेल्थ में गोल्ड मिला। इस अहसास को शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। देश का नाम ऊंचा करने के बाद एक भारतीय के मन में जो भी भावनाएं उमड़ती हैं, वही मेरे मन में हैं।
अपनी सफलता का श्रेय आप किसे देंगी?
बहुत सारे लोग हैं। मेरे पति वीरेन्दर पूनिया मेरे व्यक्तिगत कोच हैं, जो हमेशा मेरे साथ रहे। एशियन ग्रांपी से पहले अमेरिका में ली गई ट्रेनिंग का भी काफी फायदा मिला है। लोगों का समर्थन मिला। लेकिन, पति की जगह खास है,क्योंकि उन्होंने मुझे बहुत प्रोत्साहित किया। मेरी चोट के दौरान उन्होंने मेरी हौसलाफजाई की और कभी डिगने नहीं दिया।
आपका एक बेटा भी है। बेटे के साथ इतनी कठिन ट्रेनिंग संभव हो पाई?
मेरा बेटा सात साल का है। हम दोनों कभी उसके पास नहीं रहते। जब वह डेढ़ साल का था, तब से उसकी दादी उसकी देखभाल करती हैं। मैं प्रैक्टिस के लिए हमेशा बाहर रहती हूं और मेरे इस काम में मेरे पति मदद करते हैं। हमने हमेशा सोचा है कि हमारा बच्चा अपने मां-बाप के बारे में न जाने क्या राय रखता है। यह सोचकर बुरा लगता है लेकिन आज मैं खुश हूं कि एक मां के रूप में मेरा सपना सच हो गया है।
बेटे को बताया कि आपने 52 साल बाद एथलेटिक्स में देश के लिए गोल्ड जीता है? और आपकी यह उपलब्धि बहुत बडी है।
स्वर्ण पदक जीतने के बाद सबसे पहले मैंने बेटे से बात की। लेकिन, वह सही मायने में समझ नहीं सका कि उसकी मां ने कितनी बड़ी सफलता हासिल की है लेकिन वह बहुत खुश हुआ। (यह कहते-कहते कृष्णा की आंखे भर आईं)। एक सात साल का बच्चा भला यह कैसे समझ सकता है कि उसकी मां ने 52 साल के बाद देश को एथलेटिक्स में स्वर्ण दिलाया है। उसके लिए तो उसकी मां का पास रहना जरूरी है। हमें उसे समझाने में बहुत दिक्कत आती है लेकिन हर बार वह मान जाता है। मैं तो कभी-कभी अभ्यास के वक्त उसके बारे में सोचकर रो पड़ती थी लेकिन एक खिलाड़ी होने के नाते खुद को समझा भी लेती थी।
अब क्या इरादा है?
ओलंपिक में गोल्ड लेना हर खिलाड़ी की तरह मेरी भी हसरत है। इसके लिए बहुत मेहनत कर रही हूं। अब और करुंगी। लंदन ओलंपिक में देश का नाम रोशन करने की तमन्ना को हर हाल में पूरा करना चाहती हूं। लेकिन, इससे पहले एशियन खेल गोंगज़ू में होने हैं। उसके लिए तैयारी करुंगी।
चलते-चलते उन पाठकों को अपने बारे में कुछ बता दीजिए, जो अभी तक सिर्फ आपकी उपलब्धि के बारे में जानते हैं, लेकिन आपके बारे में नहीं।
मेरा जन्म हरियाणा में हुआ। लेकिन, राजस्थान को बिलॉन्ग करती हूं। रेलवे में नौकरी करती हूं और भगवान की दुआ से डिस्कस थ्रो की राष्ट्रीय चैंपियन हूं। बीजिंग ओलंपिग में सफल नहीं हो पाई, और उसी विफलता को भुलाना चाहती हूं। बस, आप सभी का सहयोग चाहिए।
फोटो साभार - दि हिन्दू