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परमानन्द शास्त्री की कविताएं

अथ नदी

उद्दाम नदी के

वेग से सहमे

किनारों ने कहा

सुनो नदी

दरके जाते हैं हम
 
तुम्हारे ही वेग से

अपना वेग संभालो

ओ नदी

झांक आई नदी

तट-बंधों की दरारों में

पेड़ों ने देखा नदी बह रही

तट-विहीन स्वच्छन्द

मुस्कुरा दिए पेड़

अगरचे

जानते थे

पेड़

बदलनी होगी उन्हें भी

अब अपनी जगह.

प्रेम-आमन्त्रण

उड़ती चिड़ियों सी
 
बहुरंगे दानों से

आकर्षित हो

तुम्हारे प्रेमपाश में

नहीं बंधूंगी मैं
 

असहमतियों के बावजूद

आकाश में बाजू फैलाए

पेड़ पर करूंगी बसेरा

नहीं डरूंगी

उसकी खोखल में छिपे

विषधरों से

और मंडराते बाजों से 

विषधरों से जानूंगी

जहर उगलने का राज

बाजों से सीखूंगी

झपट्टों के भेद

और फिर

मै दूंगी प्रेम-आमंत्रण

उतरना चाहूँगी

प्रेम की गहराइयों में

नापना चाहूँगी

उसकी थाह

तुम स्वीकारोगे न

मेरा प्रेम-आमन्‍त्रण.
©
- 562/2, गोविन्द नगर, हिसार रोड, सिरसा-125055

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