9 जुलाई 2012
समस्तीपुर। आपने नाग पंचमी के मौके पर नाग पूजन के विषय में सुना और देखा होगा परंतु बिहार के समस्तीपुर जिले में नाग पंचमी के मौके पर नाग की पूजा करने की अनोखी प्रथा है। इस दिन नाग के भगत (पुजारी, भक्त) गंडक नदी या पोखर में डुबकी लगाकर नदी से सांप निकालते हैं और उसकी पूजा करते हैं। या यूं कहिये कि नदी के किनारे सांपों का मेला लगता है।
समस्तीपुर के विभूतिपुर प्रखंड के सिंघिया और रोसड़ा गांव में भगत जहां गंडक नदी में डुबकी लगाकर सांप निकालते हैं वहीं सरायरंजन में एक प्राचीन पोखर से सांप निकालकर उसकी पूजा करते हैं। इस दौरान इस स्थानों पर नाग पंचमी के दिन लोगों का मजमा लगता है।
नाग पंचमी रविवार को इस इलाके में धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर इस अनोखी परम्परा को देखने के लिए बिहार के ही लोग नहीं बल्कि अन्य राज्यों के लोग भी यहां पहुंचते हैं और इस अभूतपूर्व नजारे को देखते हैं।
गंडक के तट पर सैकड़ों भगत जुटते हैं और फिर नदी में डुबकी लगाकर नाग सांप को नदी से निकाल आते हैं। वे कहते हैं कि सांप उनको कोई नुकसान नहीं पहुंचाता।
सिंघिया गांव के भगत रासबिहारी भगत कहते हैं कि यह काफी प्राचीन प्रथा है। वे कहते हैं कि यह प्रथा इस इलाके में करीब 300 वर्ष से चली आ रही है। वे बताते हैं कि उनके भगवान नाग होते हैं। वे कहते हैं कि वे पिछले 25 वषरें से यहां जुटते हैं और सांप निकालते हैं।
भगतों द्वारा निकाले गए सांपों को नदी के किनारे ही बने नाग मंदिर या भगवती मंदिर में ले जाया जाता है और फिर उनकी सामूहिक रूप से पूजा कर उन्हें दूध और लावा खिलाकर वापस नदी में छोड़ दिया जाता है।
इस दौरान सांप को दूध और लावा देने के लिए गांव के पुरूष और महिलाओं की भारी भीड़ भी यहां लगी रहती है। पूजा के दौरान वहां कीर्तन और भजन का भी कार्यक्रम चलते रहता है।
एक अन्य भगत रामचंद्र भगत जो पिछले 36 वषरें से यह कार्य करते आ रहे हैं, ने बताया कि यह परम्परा अब इन गांवों में सभ्यता बन गई है। वे कहते हैं कि नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से केवल खुद की बल्कि गांव और क्षेत्र का कल्याण होता हैं।
रामचंद्र भगत के मुताबिक इससे सांप को कोई नुकसान नहीं होता है। यह तो भगवान और भक्त का एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना है।
रामचंद्र का दावा है कि जो भी व्यक्ति यहां अपनी मुराद मांगते हैं उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। वे कहते हैं इसे कई लोग सांपों के प्रदर्शन की बात कहते हैं परंतु यह गलत है। यहां कोई प्रदर्शन नहीं होता बल्कि पूजा होती है। ये अलग बात है कि दूर-दूर से लोग इस पूजा को देखने के लिए यहां एकत्र होते हैं।
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