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सोशल मीडिया और लोकतंत्र पर देहरादून में दो दिवसीय गोष्ठी संपन्न

do not get too optimistic about social media

10 अप्रैल 2012

देहरादून । सोशल मीडिया को सामाजिक सरोकारों से जुडकर कार्य करना होगा और इसे लेकर जरूरत से ज्यादा आशावादी न हों। ये बातें जेएनयू के प्रो पुष्पेश पंत ने यहां एसजीआरआर मेडिकल कॉलेज में 'सोशल मीडिया और लोकतंत्र' विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्टीय संगोष्ठी में व्यक्त किए। संगोष्ठी का आयोजन उत्तराखंड मुक्त विवि हल्द्वानी और फ्रेडरिच एबर्ट स्टिफतंग इंडिया ने किया। प्रो पंत ने अपने विशिष्ट संबोधन में कहा कि निश्चित रूप से सोशल मीडिया की भूमिका बढ़ी है लेकिन सतर्कता बरतने की जरूरत है जिससे समाज में गड़बड़ी न होने पाए। अपने अध्यक्षीय संबोधन में विवि के कुलपति प्रो विनय कुमार पाठक ने स्काइप के जरिए कहा आज सोशल मीडिया के चलते हर नागरिक पत्रकार की भूमिका में है और समाज में खुलापन आ रहा है। आम आदमी की बातें खुलकर सामने आ रही हैं।

इस अवसर पर जाने माने गांधीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता पवन गुप्ता ने कहा कि आज बाजार सत्ता पर हावी है और सत्ता समाज पर हावी है। उन्होंने सोशल मीडिया में प्रयोग की जाने वाली भाषा को सुधारने पर जोर दिया। महिला समाख्या की स्टेट कोआर्डिनेटर गीता गैरोला ने कहा कि महिलाओं के मसलों को भी सोशल मीडिया द्वारा प्रमुखता से उठाया जाना चाहिए।

दिल्ली से आए साइबर पत्रकार पीयूष पांडे ने सोशल मीडिया के एतिहासिक परिप्रेक्ष्य को बताते हुए उसकी उपयोगिता और समस्याओं से जुड़े तमाम आयामों पर रोशनी डाली। उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में सोशल मीडिया की दुनिया आंकड़ों में कहीं बड़ी होने के बावजूद उपयोगिता के स्तर पर विकसित देशों की तुलना में अभी कम है क्योंकि यहां जनसंख्या बहुत अधिक है और इंटरनेट की पहुंच सीमित इलाकों तक है। उन्होंने कई आंकडे भी दिए और कहा कि आज सोशल साइटृस पर ओबामा और आम आदमी एक समान है।

एफईएस इंडिया के राजेश्वर दयाल ने कहा कि जहां सामाजिक मीडिया के फायदे हैं वहीं नुकसान भी हैं और इससे निपटने के तरीकों को खोजना होगा। भाषा को भी सुधारना होगा। यूओयू के प्रो दुर्गेश पंत ने कहा कि अब सोशल मीडिया के बाद इंटेलीजेंट सोशल मीडिया का जमाना आ रहा है। यूओयू के रजिस्टार सुधीर बुडाकोटी ने कहा कि मीडिया के कार्यों से किसी को दुख न पहुंचे इसके लिए सतर्क रहना पडेगा। उन्होंने कहा कि आज सच को कई अलग तरीकों से परोसा जाता है जबकि सच तो एक ही है। हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक गिरीश गुरूरानी ने कहा कि सोशल मीडिया के फायदे हैं, लेकिन जो दिक्कतें हैं तो उनका समाधान भी तलाशें जिससे युवा पीढी संरक्षित रह सके। वरिष्ठ पत्रकार विजेंद्र रावत ने कहा कि वर्चुअल दुनिया में अपनी पहचान का खतरा है लेकिन इससे बचाव के तरीके तलाशने होंगे। न्यूज एक्सप्रेस के ब्यूरो चीफ शिव प्रसाद जोशी ने कहा कि सोशल मीडिया नेटवर्क और मजबूत होंगे तभी बात बनेगी। नव साम्राज्यवाद के छींटे पडे हैं, लेकिन हमें घबराने की जरूरत नहीं है। देव संस्कृति विवि के डॉ सुखनंदन सिंह ने कहा कि युवा पीढी को सतर्क करने की जरूरत है उसे आध्यात्मिक रूप से सबल करने से काम बन सकेगा।

नई दिल्ली से आए इंडिया अगेंस्ट करप्शन के कार्यकर्ता शिवेन्द्र ने बताया कि किस तरह से उन्होंने अन्ना आंदोलन को नेटवर्किंग के जरिए मैनेज किया। पूर्व निदेशक एआईआर चक्रधर कंडवाल ने कि सामाजिक मीडिया में सब्र करने की जरूरत है। सुशील उपाध्याय और कमल भटृट ने भी सोशल मीडिया पर अपने विचार रखे। सत्रों का संचालन डॉ सुबोध अग्निहोत्री और पीयूष पांडे ने किया। कई पर्चे प्रस्तुत किए गए। बाद में प्रो गोविन्द सिंह ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।

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