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ख्‍वाब को सच करना आसान नहीं होता : मनु रिषी

actor manu rishi interview
ओए लक्की ओए का बंगाली और फंस गए रे ओबामा का अन्नी याद है न आपको। जी हां, मनु रिषी। दिल्ली के इस नौजवान अभिनेता की रचनात्मकता का दायरा फिल्म के लिए कहानी और संवाद लिखने से लेकर गीत लिखने तक फैला है। हाल में सुधीर मिश्रा की चर्चित फिल्म 'ये साली जिंदगी' लिख चुके मनु रिषी बेबाक हैं और कुछ बेहतर करने को बेचैन भी। उनसे खास बात की पीयूष पांडे ने।

सवाल-मनु रिषी के बारे में हमें पता है कि वो लेखक है कलाकार हैं। लेकिन इसके बीज कहां से पड़े। यह शुरुआत कहां से हुई।
जवाब- इसकी शुरुआत दिल्ली में हुई। मैं दिल्ली में आम लड़कों की तरह बड़ा हो रहा था। बहुत कम लोग मानते हैं कि हर शख्स में एक एक्टर होता है। वो ‘हीरोइज्म’ कहीं न कहीं निकलता है। मैं बचपन में अंतर्मुखी था। मां के कहने पर थिएटर ज्वाइन किया। फिर स्कूल से होते हुए प्रोफेशनल एक्टिंग करने लगा। धीरे धीरे ख्वाब बड़ा होने लगा कि मुझे एक्टर ही बनना है। मैं मुंबई आ गया।

सवाल-थोड़ा विस्तार से बताइए अपने बारे में। बचपन के दिनों के बारे में?
जवाब-मैं पुरानी दिल्ली का रहने वाला हूं। चांदनी चौक के कूचा नटवान इलाके का। बहादुरशाह जफर के जमाने में नौटंकी करने वाले लोग यहां ठहरते थे। उनके लिए धर्मशाला बनी हैं वहां। मैंने कैंब्रिज स्कूल से पढ़ाई की। फिर, कॉरसपोंडेंस से बीकॉम किया। इस बीच अपने पिता के कारोबार में भी हाथ बंटाता था और एक्टिंग भी करता था। अरविंद गौड़ के अस्मिता थिएटर ग्रुप से कई साल जुड़ा रहा और वहीं एक्टिंग की बारीकियां सीखीं।

सवाल-‘फंस गए रे ओबामा’ ने आपको नयी पहचान दी है। कितना मुश्किल थी यह भूमिका।
जवाब-पहले तो रोल पाना ज्यादा मुश्किल काम था। फिर भूमिका निभानी। ओए लक्की ओए के निर्देशक दिबाकर बनर्जी ने मेरे भीतर के लेखक के साथ मेरे अभिनेता को भी पहचाना। दिबाकर ने ओए लक्की ओए के डायलॉग लिखवाए तो ‘बंगाली’ की भूमिका भी दे दी। इस फिल्म के बाद फिर इंतजार का दौर शुरु हुआ। दो और फिल्में कीं। टीना की चाबी और टेनएमएल लव। दोनों छोटे बजट की फिल्में थीं। यह फिल्में रिलीज होनी है। इस बीच सुभाष कपूर ने मुझे ओए लक्की ओए में देखा और फंस गए के लिए साइन किया। उन्होंने कहा कि अन्नी की भूमिका तुम्हारी लिए ही लिखी है। नौ साल में यह पहला मौका था, जब किसी ने मुझसे कहा कि कोई खास किरदार मेरे लिए लिखा गया है। जहां तक अन्नी के किरदार को निभाने का सवाल है तो मैं बिलकुल उसके उलट हूं। अमेरिका जाने का भी मुझे कोई शौक नहीं है। लेकिन, जब एक किरदार बुना जाता है तो लेखक के साथ निर्देशक का भी एक नजरिया होता है उसे पर्दे पर उतारने के लिए। एक तकनीकी प्रक्रिया होती है। निर्देशक और अभिनेता मिलते हैं। किरदार पर बात करते हैं। वर्कशॉप होती हैं। तो धीरे धीरे मैं अन्नी के किरदार में घुस गया। मैं एक्टिंग में स्लो हूं। पांच छह फिल्में साथ मिल जाएं तो घबरा जाऊंगा। एक वक्त में एक किरदार को अपने भीतर घुसा लेता हूं। तो बस यही प्रक्रिया रही। उसकी चाल कैसी होगी, वो कैसे बोलेगा। दूसरे किरदारों के साथ उसका कैसा संबंध होगा। उसके इमोशन कैसे होंगे। सब पर खूब सोचा और ढाल लिया। यही पर्दे पर उतार दिया।

सवाल-आप लेखक हैं,गीतकार हैं,कलाकार हैं और जहां तक मुझे मालूम है कि आप असिस्टेंट डायरेक्टर भी रहे हैं। तो क्या है आपका मकसद। पहचान कैसे बनाना चाहते हैं?
जवाब-एक अभिनेता जब इस मायानगरी में आता है तो उसका ख्वाब होता है एक्टिंग का। लेकिन, इस ख्वाब को सच करना बहुत आसान नहीं होता। हमारे घरवालों ने सिखाया है कि समय को बर्बाद मत करो। गुरुओं ने सिखाया है कि एक एक्टर की तरह इंतजार करना सीखो। खाली वक्त का इस्तेमाल करो। तो बस यही किया। इसी कड़ी में लेखन शुरु हुआ। फिर मैं पीयूष मिश्रा, सुधीर मिश्रा, सौरभ शुक्ला, रजत कपूर जैसे जिन लोगों के साथ उठता बैठता रहा,वो सब दिग्गज हैं। जिनसे एक नया नजरिया मिला। सीखने की इच्छा थी,सो सीखता चला गया। जहां तक असिस्टेंट डायरेक्शन का सवाल है तो मैं कहूंगा कि मैं असिस्टेंट डायरेक्टर नहीं था। बस, मेरे गुरु रजत कपूर के साथ जुड़ गया। मैं फ्लोर को इंजॉय करना चाहता था। चाहता तो रजत जी के सैट पर कभी भी जा सकता था, लेकिन उनकी मदद करने के बहाने कई तकनीकी बातें जानने का मौका मिल गया। गाना भी यूं ही लिखा। मैं और दिबाकर एक दिन बैठे थे कि अचानक ओए लक्की ओए के लिए एक गाने के कुछ बोल पर बात हुई और फिर गाना लिख डाला। एक आने वाली फिल्में भी गाना लिखा है। मैं बेसिकली थोड़ा कन्फ्यूज आदमी हूं और अब मैं इस कन्फ्यूजन को ही इंजॉय करने लगा हूं। और अब इसी कंफ्यूजन में मुझे लगने लगा है कि मैं फिल्म निर्देशित भी कर सकता हूं।

सवाल-आपका एक बहुत भावुक स्टेटमेंट था कि आपकी बेटी ने आपको ‘फंस गए रे ओबामा’ पोस्टर पर देखा। कुछ और ऐसे पल बांटना चाहेंगे।
जवाब-देखिए सिनेमा से हम जुड़े हैं तो एक इमोशन की वजह से। सिने-हमारी मां है। कभी कभी आप कुछ नहीं कर रहे होते तो आप दुआ करते हैं कि जब आपके बच्चे बड़े हों, तब तक भगवान आपको कामयाब बना दे। क्योंकि कोई भी बाप अपने बच्चों के सामने लूजर नहीं होना चाहता। नौ साल में कभी ऐसा मौका नहीं आया कि मैं पोस्टर पर दिखा। ओए लक्की ओए में मेरी अच्छी भूमिका थी..लेकिन फिर भी नहीं। बेटी ने पोस्टर पर मेरी तस्वीर देख इसे नोटिस किया तो यह मेरे लिए भावुक पल था। शायद, भगवान ने मेरी सुन ली थी। बाकी कई ऐसे पल हैं, लेकिन उन्हें मैं सार्वजनिक नहीं करना चाहूंगा।

सवाल-क्या बॉलीवुड में फिल्म बनाना अब पहले की तुलना में आसान हुआ है। कई क्षेत्रों के जानकार होने के नाते आपसे सवाल है।
जवाब-फिल्म बनाना तो आसान हुआ है। रिलीज करना मुश्किल है। लोग आज भी ब्रांड को पसंद करते हैं। मैं अपने परिवार की बात करुं तो मेरे पिता और भाई सलमान, सैफ या शाहरुख को देखना पसंद करते हैं। लेकिन, ये भी सच है कि आज कंटेंट को लेकर बात हो रही है। ओए लक्की ओए, उड़ान, पीपली लाइव, फंस गए रे ओबामा जैसी फिल्में इसकी तस्दीक करती हैं। बजट को कंट्रोल में करके अच्छे अभिनेताओं के साथ फिल्म बनायी जा सकती है। लेकिन, इसे चुनौतीपूर्ण तरीके से लेना होगा।

सवाल-क्या आपको नहीं लगता कि नयी पीढ़ी नए विचारों के साथ आ रही हैं, और इसलिए पहचान बना पा रही हैं।
जवाब-नया तो बहुत कुछ हो रहा है। लेकिन, मेरा मानना है कि नयी पीढ़ी के ज्यादातर लोगों में धैर्य नहीं है। मैंने थिएटर में अरविंद गौड के साथ नौ साल तक काम किया। हर छोटा बड़ा काम किया। लेकिन, आज मेरे पास फोन आता है कि हम दिल्ली में एक साल से थिएटर कर रहे हैं तो मुंबई में क्या हो सकता है। ज्यादातर नौजवान बायोडेटा दुरुस्त करना चाहते हैं।

सवाल-टेलीविजन की ओर नहीं देख रहे।
जवाब-मैं टेलीविजन का बहुत सम्मान करता हूं। लेकिन, मेरा प्यार फिल्म है। मेरी भावनाएं,संवेदनाएं फिल्मों से जुड़ी हैं। इसलिए कोई मुफलिसी के दिनों में भी हम टेलीविजन तक नहीं गए या यूं कहें कि कोई टेलीविजन वाला हम तक नहीं पहुंचा। मैं बतौर कलाकार खुद को फिल्मों के लिए समर्पित मानता हूं। अपनी मासूमियत को इसी माध्यम के लिए बचाना चाहता हूं। मैं जिम नहीं जाता। मुझे सिर्फ इसलिए सिक्स पैक नहीं बनाने क्योंकि इससे मैं खूबसूरत दिखूंगा। मैं थोड़ा मोटा दिखूं, लेकिन इससे मेरी मासूमियत बचती है तो मुझे यह मंजूर है। वैसे, किसी किरदार के लिए सिक्स पैक्स बनाने हैं तो वो भी करुंगा।

सवाल-आखिरी सवाल, आजकल क्या कर रहे हैं।
जवाब-ये साली जिंदगी के बाद सुधीर मिश्रा की एक और फिल्म लिख रहा हूं। राकेश मेहता एक निर्देशक हैं, उनकी फिल्म जरा बचके जरा हटके कर रहा हूं। बॉयज तो बॉयज हैं-यह फिल्म मैंने लिखी भी है। टीना की चाबी भी जल्द रिलीज होगी।
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