8 मई2012
सिडनी। ल्युपस के मरीजों में यदि विटामिन डी की कमी हो जाए, तो स्थिति और बिगड़ सकती है। यह बात एक आस्ट्रेलियाई अध्ययन में सामने आई। ल्युपस को 'सिस्टेमिक ल्युपस एरिथेमेटोसस' के नाम से भी जाना जाता है। यह एक ऑटोइम्यून रोग है और अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली से यह साधारण उत्तकों पर हमला करता है। इस रोग से दुनिया भर में 50 लाख से अधिक लोग पीड़ित हैं। इससे किडनी भी रोगग्रस्त हो सकती है।
इस रोग के कारणों का अब तक पता नहीं चल पाया है, लेकिन इस रोग का असर काफी घातक होता है, क्योंकि इससे शरीर में साधारण एंटीबॉडी का निर्माण बंद हो जाता है, जिसके कारण स्वस्थ्य उत्तकों पर हमले का खतरा पैदा हो जाता है।
मोनास ल्युपस क्लिनिक के एक बयान के मुताबिक इसके प्रमुख और अध्ययन के प्रमुख शोधार्थी प्रोफेसर एरिक मोरंड ने कहा कि सूर्य की रोशनी से ल्युपस की स्थिति और बिगड़ जाती है, इसलिए सूर्य की रोशनी से परहेज करना महत्वपूर्ण होता है, लेकिन सूर्य की रोशनी की कमी के कारण विटामिन डी की शरीर में कमी होने लगती है, जिससे समस्या और विकट हो सकती है।
उन्होंने हालांकि कहा कि इसके कारण पूरक विटामिन डी के असर और लम्बी अवधि की सुरक्षा के बारे में किसी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी और चकित्सकीय परीक्षण के बाद ही कहा जा सकता है कि किसी अन्य स्रोत से विटामिन डी की पूर्ति से लाभ होगा या नहीं।
मोरंड का यह अध्ययन कैनबरा में आस्ट्रेलियन रियूमैटोलॉजी एसोसिएशन के सलाना वैज्ञानिक बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा। संयोग से 10 मई को विश्व ल्युपस दिवस मनाया जाता है।
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