21 जुलाई 2011
मुजफ्फरनगर। भक्त अपने भगवान को हर विधि से प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं और वे यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनके भगवान जिस मंदिर में विराजमान हों उस मंदिर की छत न हो। लेकिन भगवान की इच्छा ही जब खुले आसमान के नीचे रहने की हो तो भक्त बेबस हो जाते हैं। ऐसा ही एक मंदिर है रामराज के सैफपुर फिरोजपुर में स्थित सिद्धपीठ शिव भगवान का मंदिर।
इस मंदिर के साथ विडम्बना यह है कि मंदिर पर जब भी छत डालने की कोशिश की गई तो वह टिक न सकी। इस मंदिर का श्रावण मास में ऐतिहासिक महत्व है। यहां श्रावण मास में दूर-दराज से पूजा करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
कहा जाता है कि मंदिर पर जब भी छत डालने की कोशिश की गई वह हर बार गिर गई। इस चमत्कार के पीछे कहा जाता है कि भगवान शंकर यहां खुले आसमान में ही रहना पसंद करते हैं। बगैर छत का यह शिवमंदिर और शिवलिंग पौराणिक महत्व के साथ बहुत प्रसिद्ध है।
श्रावण मास शिवलिंग की पूजा व आराधना करने के लिए बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि महाभारत कालीन मुनि दुर्वासा ऋषि ने क्रोध शांत करने के लिए यहां कठोर तपस्या की थी। इसी स्थान पर मुनि दुर्वासा ऋषि की तपस्या के दौरान जब कौरवों और पांडवों का महाभारत का युद्ध चल रहा था तो अपने पुत्रों को विजयीभव का आशीर्वाद मांगने के लिए कौरवों की माता गांधारी व पांडवों की माता कुंती दुर्वासा ऋषि के पास पहुंची थीं।
उसी समय आकाश से आकाशवाणी हुई थी कि जिस किसी की ओर से यहां पर भगवान शिव के शिवलिंग पर पहले फूल चढ़ेंगे वही विजय प्राप्त करेगा। पांडवों की ओर से भगवान इंद्र ने आकाश से शिवलिंग पर फूलों की वर्षा कर पांडवों को विजयश्री का आशीर्वाद दिलाया था।
इस मंदिर के पास महाभारत कालीन सुरंग भी बनी हुई है जो हस्तिनापुर तक जाती थी। सुरक्षा की दृष्टि से यह सुरंग फिलहाल बंद है। मुगलकाल में भी यहां एक गाय आकर खड़ी होती थी, जिसके थनों से दूध स्वयं निकलता था। मुगलों ने इस गाय का वध कर दिया था। बाद में वहां पर खुदाई की गई तो इस स्थान पर एक शिवलिंग मिला जिस पर गाय व त्रिशूल की आकृति बनी हुई थी और एक पीपल का पेड़ निकला। मान्यता है कि जब भी शिवलिंग के बराबर में खुदाई की जाती है तो शिवलिंग का आकार बड़ा हो जाता है।
कई बार इस मंदिर की चार दीवारी कर छत डालने का प्रयास किया गया लेकिन छत लगातार निर्माण के दौरान गिरती रही। कोई भी श्रद्धालु शिवलिंग के लिए छत बनवाने में कामयाब नहीं हो सका।
मंदिर के पुजारी धर्मपाल के अनुसार यह भगवान शिव का अनोखा चमत्कार है। वह खुले आसमान के नीचे रहना चाहते हैं। इस महत्ता के कारण श्रावण मास की शिवरात्रि को यहां भव्य मेला भी लगता है।
Know when the festival of colors, Holi, is being observed in 2020 and read its mythological significance. Find out Holi puja muhurat and rituals to follow.
मकर संक्रांति 2020 में 15 जनवरी को पूरे भारत वर्ष में मनाया जाएगा। जानें इस त्योहार का धार्मिक महत्व, मान्यताएं और इसे मनाने का तरीका।