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जय कन्हैया लाल की : जन्माष्टमी पर विशेष

Sri Krishna Janmashtami special

राम हरी शर्मा
 
”यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत.
अभ्युथानमधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम.
परित्राणाय साधूनाम विनाशाय च दुष्कृताम
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे.

श्रीमद्भाग्वत के चौथे अध्याय का सातवां और आठवां श्लोक लाखों भारतीयों की जुबान पर रहता है। इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुखार्विन्द से कहा है कि हे भरतवंशी अर्जुन, जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब मैं अपने साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रगट होता हूं। भक्तों की रक्षा के लिये, पापी के विनाश के लिये और धर्म की फिर स्थापना के लिये मैं हर युग में प्रगट हुआ करता हूं।
 
जब जब समाज में जीव अपना वास्तविक स्वरूप भूल कर अपनी असली पहचान से गिर जाता है, उसी समय जीव को ऊंचा उठाने के लिये, उसे उसकी वास्त्विक स्थिति मे स्थित करने के लिये श्री कृष्ण का अवतार होता है। इसी श्री कृष्ण के प्रगट होने के दिन को जन्माष्टमी कहते हैं।
 
यह उत्सव भाद्रपद की अष्टमी को मनाया जाता है (इस वर्ष 22 अगस्त को)। मथुरा मे श्री कृष्ण जन्मस्थान पर देश विदेश से पर्यटक आकर इस उत्सव मे शामिल होकर अपने को धन्य मानते हैं। धन्य हैं वे ब्रज वासी जिन्होंने भगवान श्री कृष्ण की इस मधुर भूमि पर जन्म लिया। तभी तो कवि रस खान गा उठते हैं-
” मानुष हों तो वही रसखान बसों ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन”.........
तथा इसी क्रम मे सूरदास भी अपने पदों मे श्री कृष्ण की लीलाओ का सजीव चित्रण करते हैं यथा
मैय्या मेरी मै नहि माखन खायौ
 
ज्योतिषीय महत्व
 
लगभग सभी पुराणों ( शिव, विष्णु, ब्रह्म, भविष्यादि) में जन्माष्टमी व्रत का उल्लेख किया है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्र्पद अष्टमी को बुधवार के दिन रात्रि में १२ बजे रोहिणी नक्षत्र में वृष के चन्द्रमा में हुआ था। अतः सभी साधक अपने अपने अभीष्ट योग का ग्रहण करते हैं। शास्त्रों में शुद्धा और विद्धा भेद से  नवमी के १८ भेद बनते हैं। परन्तु सिद्धांत रूप से तत्कालीन व्यापिनी ( अर्ध रात्रि में रहने वाली तिथी) अधिक मान्य होती है। यदि वह दो दिन हो तो या दोनो ही दिन न हो तो सप्तमी विद्धा को छोड़ कर नवमी विद्धा को ग्रहण करना चाहिये। विद्धा का अर्थ है युक्त अर्थात दूसरी तिथी से युक्त।

इस दिन सभी आयु के स्त्री-पुरुषों को व्रत करना चाहिये। इससे उनके पापों का नाश होता है तथा सुखों की वृद्धि होती है। इसमें अष्टमी के दिन उपवास से पूजन करके नवमी के दिन पारणा करने से व्रत की पूर्ति होती है।

व्रत का विधि विधान-

व्रत से पहले दिन अर्थात सप्तमी के दिन हल्का आहार लें। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें। उपवास के दिन प्रातः स्नानादि करके सूर्य, सोम, काल, आकाश आदि देवो का नमस्कार करे फिर पूर्व या उत्तर मुख बैठे और हाथ मे फूल लेकर यह सकल्प करे ”ममाखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्टसिद्धये श्री कृष्ण जन्माष्टमी ब्रतमहं करिष्ये”। दोपहर को काले तिल व जल से स्नान करें और देवकी जी के लिए सूतिका ग्रह नियत करके सूतिका ग्रह को अच्छी तरह से सजा के उसमें एक पय पान कराती हुई देवकी श्री कृष्ण का चित्र स्थापित करें। फिर रात्रि को १२ बजे षोडशो उपचार से पूजन करके पूजन मे देवकी नन्द यशोदा बलदेव वासुदेव और लक्ष्मी का नाम निर्दिष्ट करें। तथा श्री कृष्ण भग्वान को पुष्पांजलि अर्पित करे उसके बाद जात कर्म नालच्छेदन, षष्टी पूजन और नामकरणादि करके चन्द्रमा का पूजन करें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें। रात्रि का शेष भाग स्त्रोत्र आदि का पाठ करते हुये व्यतीत करे।

सुबह होने पर जिस तिथी या नक्षत्र के योग मे व्रत किया हो उसका अन्त होने पर पारणा करें। यदि तिथि या नक्षत्र का अन्त मे बिलम्ब हो तो जल पीकर पारणा की पूर्ति करें। इस प्रकार यह व्रत करने से  स्त्री पुरषों की सभी अभिलाषाएं पूर्ण होती हैं।
 
भारत में श्री कृष्ण जन्माष्टमी का बडा ही महत्व है क्योकि यह पूर्ण आप्त काम पूर्ण पुरुष का अवतार दिवस है। कहते हैं कि मथुरा का राजा कंस जब अपनी बहन को ससुराल पहुचाने जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई कि तू जिस देवकी को इतने प्यार के साथ बिदा करने जा रहा है, उसी के आठवें पुत्र द्वारा तू मारा जयेगा। अभिमानी व्यक्ति हमेशा भयभीत होता है और मृत्यु से डरता है। इसी डर से कंस ने पहले तो देवकी को मारने का उपक्रम किया परन्तु वासुदेव के आश्वासन देने पर उन दोनों को कारागार मे डाल दिया और एक एक करके उनके ६ पुत्रों की हत्या कर दी। तब परमात्मा रूपी श्री कृष्ण का जेल मे अवतार हुआ। कैसा अलौकिक जन्म है। माता पिता जेल मे बन्द हैं। चारों ओर विपदाओं के बादल मंडरा रहे हैं। और उन विपत्तियों के बीच श्री कृष्ण मुस्कराते हुये मानो यह संदेश दे रहे है कि तुम भले ही चारो तरफ से विपत्तियों से से घिरे हुये हो लेकिन तुम्हारा वास्तविक रूप ऐसा है, जिस पर विपत्ति का कोई असर नही होता है। जेल के फाटक खुल जाते हैं। पहरेदार सो जाते हैं। यमुना की बाढ़ उतर जाती है। हम इन सबको भले ही चमत्कार मानें परन्तु जो अपनी महिमा मे जगा है, उनके संकल्प मे अद्भुत सामर्थ्य होता है। क्योंकि श्री कृष्ण अपनी महिमा मे जगे हुये पूर्ण पुरुष थे।

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