वैदूर्य कांति रमल:,प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत: .
अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद: .
शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है,तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है,तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है,ऐसा ऋषि महात्मा कहते हैं. शनि ग्रह के प्रति अनेक कथाऐ हमारे बुजुर्गो से किदवन्ती के रूप मे सुन्ने को मिलती है साथ ही पुराणों में भी स्पष्ट उल्लेख हैं.शनि को सूर्य पुत्र माना जाता है.लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी.शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इसलिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है.पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं. लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है. इसलिये वह शत्रु नही मित्र है. मोक्ष को देने वाला शनि ग्रह एक मात्र है. सत्य तो यह है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है और प्रत्येक प्राणी के साथ न्याय करता है. जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को प्रताडित करता है
सिद्धियों के दाता सभी विघ्नों को नष्ट करने वाले शनिदेव की जयन्ती 1 जून 2011 को है शनि देव को समस्त ग्रहों में सबसे शक्तिशाली ग्रह माना गया है, शनि देव के शीश पर अमूल्य मणियों से बना मुकुट सुशोभित है। शनि देव के हाथ में चमत्कारिक यन्त्र है, शनिदेव न्यायप्रिय और भक्तों को अभय दान देने वाले देव माने जाते है. शनिदेव प्रसन्न हो जाएं तो रंक को राजा और क्रोधित हो जाएं तो राजा को रंक भी बनाने मे देरी नही लगाते है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि का फल व्यक्ति की जन्म कुंडली के बलवान और निर्बल होने पर तय करते हैं कि जातक को शनि प्रभाव से बचने के लिये क्या क्या उपाय करने चाहिये।
शनि पक्षरहित होकर अगर पाप कर्म की सजा देते हैं तो उत्तम कर्म करने वाले मनुष्य को हर प्रकार की सुख सुविधा एवं वैभव भी प्रदान करते हैं। शनि देव की जो भक्ति पूर्वक व्रतोपासना करते हैं वह पाप की ओर जाने से बच जाते हैं जिससे शनि की दशा आने पर उन्हें कष्ट नहीं भोगना पड़ता। शनिदेव की पूजा के पश्चात उनसे अपने अपराधों एवं जाने अनजाने जो भी आपसे पाप कर्म हुआ हो उसके लिए क्षमा याचना करनी चाहिए। शनि महाराज की पूजा के पश्चात राहु और केतु की पूजा भी करनी चाहिए। इस दिन शनि भक्तों को पीपल में जल देना चाहिए और पीपल में सूत्र बांधकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। शनिवार के दिन भक्तों को शनि महाराज के नाम से व्रत रखना चाहिए।
सिंह, कन्या, तुला राशि पर शनि साढ़ेसाती का शुभाशुभ प्रभाव 14 नवंबर तक रहेगा। ढैय्या विचार- मिथुन व कुंभ राशि वालों को शनि की ढैय्या का अशुभ प्रभाव 14 नंवबर तक होगा।
मेष राशि- इस राशि के जातकों को शनि षष्ठ में संचार होने तथा पाया सोना होने से कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ेगा। शनिवार के दिन तेल के साथ काली तिल, जौ और काली उड़द, काला कपड़ा ये सब चढ़ाने से लाभ होता है।
वृषभ राशि- आपके पंचमस्थ शनि पूज्य होगा। पाया लौहपाद होने से उच्च विद्या प्राप्ति में एवं कार्य, व्यवसाय में विघ्न-बाधाएं होंगी। आय कम व खर्च भी अधिक रहेंगे। शनि का उपाय करना शुभ होगा। 'ॐ शं शनैश्चराय नमः' से शनि की अराधना करें।
मिथुन राशि- चतुर्थ शनि होने से शनि की ढैय्या का प्रभाव अभी रहेगा। इस पर शनि का पाया भी सुवर्ण है जिससे आकस्मिक खर्च बढ़ेंगे तथा घरेलू उलझनें व व्यवसायिक परेशानियों में भी वृद्धि होगी। गृह पीड़ा और रोग पीड़ा निवारण के लिए सूर्यपुत्र शनि देव का अभिषेक करना फलदायी रहता है।
कर्क राशि- शनि तृतीयस्थ होने से शुभफली है। इस राशि को शनि का पाया ताँबा होने से पराम में वृद्धि, निर्वाह योग्य धन प्राप्ति के साधन बनेंगे।
सिंह राशि- द्वितीय स्थान का शनि होने से साढ़ेसाती का प्रभाव अभी रहेगा। आर्थिक परेशानियाँ एवं घरेलू उलझनें रहेंगी। परंतु इस पर शनि का पाया रजत होने से गुजारे योग्य आय के साधन बनते रहेंगे। शनि की आराधना 'ॐ शं शनैश्चराय नमः' से करनी चाहिए।
कन्या राशि- शनि का संचार 14 नवंबर तक रहेगा। शनि साढ़ेसाती का प्रभाव अभी बना रहेगा। तनाव रहेगा, बनते कामों में अड़चनें पैदा होंगी। ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः। मंत्र का जाप करे।
तुला राशि- शनि साढ़ेसाती का प्रभाव बना रहेगा जिससे कार्य व्यवसाय में आय कम, परंतु खर्च अधिक रहेंगे। 15 नवंबर से शनि इसी राशि पर संचार करने से आकस्मिक धन लाभ के अवसर भी प्राप्त होंगे।
वृश्चिक राशि- 11वाँ शनि शुभफलदायक होगा। 3 मई से 24 जुलाई तक मंगल की स्वगृही दृष्टि होगी जिससे कुछ बिगड़े काम बनेंगे। निर्वाह योग्य आय के साधन बनेंगे। परंतु खर्च अधिक तथा तनाव भी रहेंगे।
धनु राशि- शनि दसवें स्थान पर होने से व्यवसाय एवं परिवार संबंधी कठिन परिस्थितियों का सामना रहेगा। मई के बाद गुरु की दृष्टि शुभ होगी।
मकर राशि- शनि नवमस्थ होने से भाग्योन्नति व धन लाभ में अड़चनें पैदा होंगी। शनि का पाया लोहा होने से आय कम परंतु खर्चों में अत्याधिक वृद्धि होगी। शनि स्तोत्र का पाठ करना शुभ होगा।
कुंभ राशि- शनि अष्टमस्थ होने से शनि की ढैय्या अभी 14 नवंबर तक रहेगी जिससे व्यवसाय एवं पारिवारिक उलझनें तथा खर्च बढ़ेंगे। पौराणिक मंत्र- नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामी शनैश्चरम्॥
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