27 मार्च 2012
सियोल | प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यहां चल रहे परमाणु सुरक्षा सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए मंगलवार को कहा कि परमाणु हथियार से मुक्त दुनिया ही परमाण सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटी है।
उन्होंने परमाणु सुरक्षा हासिल करने के लिए एक बहुपक्षीय ढांचे की जरूरत बताते हुए अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को वर्ष 2012-13 के लिए 10 लाख डॉलर की सहायता देने की घोषणा की।
प्रधानमंत्री ने कहा, "एक परमाणु हथियार विहीन दुनिया के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सभी परमाणु हथियार सम्पन्न देशों को शामिल करते हुए एक बहुपक्षीय ढांचे की जरूरत है जो इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करे।"
इस संदर्भ में उन्होंने पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी की करीब 25 वर्ष पुरानी कार्ययोजना का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि वह कार्ययोजना इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए आज भी सबसे समग्र और व्यापाक योजना है।
संवेदनशील प्रौद्योगिकी की सुरक्षा में भारत के रिकार्ड का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने परमाणु सुरक्षा समूह (एनएसजी) और एमटीसीआर में भारत की सदस्यता की मांग की।
प्रधानमंत्री ने कहा, "भारत कभी भी संवेदनशील प्रौद्योगिकी के प्रसार का स्रोत नहीं रहा है और हम आगे भी अपनी निर्यात नियंत्रण प्रणाली को और मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि इस मामले में उच्च अंतर्राष्ट्रीय मानक को हासिल किया जा सके। हम पहले से एनएसजी और एमटीसीआर के दिशा-निर्देशों से आगे हैं। ऐसे में हमारी सोच से मिलते-जुलते देशों के चार निर्यात नियंत्रक समूहों में तार्किक तौर पर भारत का स्थान बनता है।"
उन्होंने यह भी कहा कि जेनेवा में निरस्त्रीकरण पर आयोजित सम्मेलन में भारत ने 'फोसाइल मैटेरियल कट-ऑफ टट्री' को शीघ्र पूरा करने का समर्थन किया था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हालांकि परमाणु सुरक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी राष्ट्र की होती है लेकिन टिकाऊ और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से इसे और मजबूत किया जा सकता है। उन्होंने कहा, "अंतर्राष्ट्रीय वैश्विक परमाणु सुरक्षा ढांचे को मजबूत करने में आईएईए की केंद्रीय भूमिका है और मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत आईएईए के परमाणु सुरक्षा कोष में वर्ष 2012-13 में 10 लाख अमेरिकी डॉलर की सहायता करेगा।"
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