'जियो न्यूज' के मुताबिक राष्ट्रपति के प्रवक्ता फरहतुल्लाह बाबर ने कहा, "मुझे लगता है कि इस सम्बंध में कुछ गलतफहमी हुई है। सबसे पहले तो यह कि यह क्षमादान का मामला नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह मामला सरबजीत का नहीं है। यह सुच्चा सिंह के बेटे सुरजीत सिंह का मामला है। वर्ष 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की सलाह पर राष्ट्रपति गुलाम इस्हाक खान ने उसकी मौत की सजा कम कर उम्रकैद कर दी थी।"
बाबर ने बताया कि कानून मंत्री फारुक नेक ने मंगलवार को गृह मंत्री को बताया था कि सुरजीत ने अपनी उम्रकैद की सजा पूरी कर ली है और उसे रिहा कर भारत भेज दिया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सजा पूरी होने के बाद सुरजीत को जेल में रखा जाना गैरकानूनी होगा।
बाबर ने कहा कि इस मामले में राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी का उल्लेख बिल्कुल बेवजह किया गया है।
वर्तमान में सुरजीत लाहौर की कोट लखपत जेल में है। वह 30 साल से पाकिस्तान की कैद में हैं। उसे पाकिस्तान के सैन्य शासक जिया-उल-हक के कार्य काल के दौरान जासूसी के आरोप में भारतीय सीमा के नजदीक से पकड़ा गया था।
इससे पहले मंगलवार को मीडिया में खबर थी कि जरदारी ने सरबजीत की मौत की सजा कम करके उम्रकैद कर दी है और उन्होंने आदेश दिया है कि यदि उसकी सजा पूरी हो गई हो तो उसे रिहा कर दिया जाए।
सरबजीत के परिवार का कहना है कि सरबजीत अगस्त 1990 में गलती से पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गया था और उसे वहां गिरफ्तार कर लिया गया।
दूसरी ओर पाकिस्तानी पुलिस का कहना है कि सरबजीत आतंकवादी घटनाओं में लिप्त था। सरबजीत को पाकिस्तान में मंजीत सिंह नाम से जानते हैं।
सरबजीत को 1990 में लाहौर व मुल्तान में हुए चार बम विस्फोटों के मामले में दोषी बताया गया है। इन विस्फोटों में कम से कम 14 लोग मारे गए थे।
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