नाग पंचमी हिंदू धर्म का एक बड़ा और प्रसिद्ध त्यौहार है। यह त्यौहार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस वर्ष नाग पंचमी सोमवार, 5 अगस्त को देशभर में मनाई जायेगी। इस दिन नाग देवता यानि कि सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध पिलाया जाता है। जबकि कई जगहों पर इस दिन दूध से स्नान करने की परंपरा है। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं। इस दिन नागों की पूजा प्रधान रूप से की जाती है। हिंदू धर्म में भिन्न-भिन्न त्यौहारों पर देवी-देवताओं की और उनके प्रतिकों की पूजा अर्चना करने का रिवाज है। नाग देवता भगवान शिवजी के गले के हार हैं। वहीं इन्हें भगवान विष्णु की शैय्या भी कहा जाता है। लोकजीवन में भी लोगों का नागों से गहरा नाता है। इन्हीं कारणों से नाग की देवता के रूप में पूजा की जाती है। सावन के महीने में शिवजी और नाग देवता की पूजा विशेष रूप से की जाती है।
नाग पंचमी पूजा मुहूर्त : | 05:44:27 से 08:25:27 तक |
अवधि : | 2 घंटे 41 मिनट |
सूचना: यह मुहूर्त नई दिल्ली के लिए प्रभावी है।
नाग पंचमी का व्रत श्रावण शुक्ल पंचमी में रखा जाता है। नागपंचमी पर रुद्राभिषेक का भी विशेष महत्व है। इसके अलावा इस दिन को गरुड़ पंचमी के नाम से भी जानते हैं। शुभ मुहूर्त के दौरान नाग देवता के साथ गरुड़ की पूजा भी की जाती है। यदि दूसरे दिन पंचमी तीन मुहूर्त से कम हो और पहले दिन तीन मुहूर्त से कम रहने वाली चतुर्थी से पूर्ण हो तो पहले ही दिन नाग पंचमी का व्रत किया जाता है। नाग पंचमी के शुभ मुहूर्त में भगवान शिव और नाग देवता की एक साथ पूजा की जाती है। इस दौरान इन्हें फूल चढ़ाने के साथ ही मंत्र पढ़ें जाते हैं। कहते हैं कि यदि पहले दिन पंचमी तीन मुहूर्त से अधिक रहने वाली चतुर्थी से युक्त हो तो दूसरे दिन दो मुहूर्त तक रहने वाली पंचमी में भी यह व्रत किया जा सकता है।
सर्प हमें कई मूक संदेश देता है। सांप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए। कालसर्प दोष के बारे में आपने जरूर सुना होगा। अधिकतर लोगों की कुंडली में काल सर्प दोष होता है। कहते हैं कि जिन लोगों की कुंडली में यह दोष होता है उसकी प्रगति में हमेशा रोड़ा पड़ता है। जब किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु और केतू ग्रहों के बीच अन्य सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प दोष का निर्माण होता है। हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री और क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर की कुंडली में भी कालसर्प दोष था। इसके बावजूद उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ किया। इस दोष को दूर करने के लिए लोग देश विदेश के मंदिरों में जाते हैं। जबकि नाग पंचमी एक ऐसा अवसर है जिसमें इस कालसर्प दोष को दूर किया जा सकता है। कालसर्प दोष को दूर करने के लिए यह दिन बहुत विशेष माना जाता है। कहते हैं कि इस दिन कालसर्प दोष को दूर करने के लिए अगर विधि-विधान से पूजा की जाए तो बहुत सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। इस दिन नागों की पूजा और ऊं नम: शिवाय का जप करना फलदायी होता है। इस पूजा में चांदी या सोने के छोटे-छोटे नाग नागिन बनते हैं और उनकी पूजा करने और मंत्रों का जाप करने से कालसर्प योग दूर हो जाता है। इसके अलावा इस दिन पर रुद्राभिषेक करने से भी जातक की कुंडली से कालसर्प दोष दूर हो जाता है।
नाग पंचमी की पूजा करने का सबसे बड़ा कारण ईश्वर के प्रति अपनी आस्था और भक्ति को समर्पित करना है। क्योंकि नाग पंचमी में नाग राज की पूजा की जाती है इसलिए कहते हैं कि यदि इस दिन पूरे विधि-विधान से और मन से नाग देवता की पूजा की जाए तो धार्मिक और सामाजिक रूप से व्यक्ति खुद को संपन्न महसूस करता है। जबकि ज्योतिषों का कहना है कि कुंडली में योगों के साथ-साथ दोषों को भी देखा जाता है। कुंडली के दोषों में कालसर्प दोष एक बहुत ही महत्वपूर्ण दोष होता है। ज्योतिषों का कहना है कि कालसर्प दोष भी कई प्रकार के होते हैं। हर किसी की समस्या के अनुसार बताया जाता है कि उसकी कुंडली में कौन सा काल सर्प योग है। नाग पंचमी पर नाग देवता की पूजा करने के साथ-साथ दान दक्षिणा का भी बहुत महत्व है। इस दिन गरीब बच्चों को दान देने और उन्हें भोजन कराने से बहुत लाभ होता है। इस दिन व्रत रखने से भी शुभ समाचार मिलता है। यदि आपके घर में कोई छोटा बच्चा है तो उसे इस दिन दूध पिलाएं। जबकि यदि संभव हो तो सांप को दूध पिलाएं।
इस दिन सुबह उठकर स्नान किया जाता है और उसके बाद पूजा की तैयारी होती है। श्रवण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नाग पंचमी का पर्व प्रत्येक वर्ष श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है। नाग पंचमी के दिन आठ नागों की पूजा होती है। जिनके नाम अनन्त, पद्म, वासुकि, महापद्म, कुलीर, तक्षक, शंख और कर्कट होते हैं। कहते हैं कि इस दिन इन अष्टनागों की पूजा करने से घर में सुख शांति आती है और दरिद्रता व नकारात्मका दूर होती है। चतुर्थी के दिन सिर्फ एक बार ही भोजन करना चाहिए और पंचमी के दिन उपवास करके शाम को भोजन करना चाहिए। इससे नागदेव बहुत प्रसन्न होते हैं। पूजा करने के लिए नाग चित्र या मिटटी की सर्प मूर्ति को लकड़ी की चौकी के ऊपर स्थान दिया जाता है। इसके बाद आगे की पूजा होती है? इसके बाद हल्दी, रोली (लाल सिंदूर), मोली (पीला सिंदूर), चावल और फूल चढ़ाकर नाग देवता की पूजा की जाती है। कहते हैं कि नाग देवता को चावल और फूल बहुत पसंद होते हैं। उसके बाद कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर लकड़ी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित किया जाता है। दूध में काले तिल भी डाले जाते हैं। जब पूजा समाप्त हो जाती है तो उसके बाद सर्प देवता की आरती उतारी जाती है। इसके बाद घर के सभी लोगों को भगवान का प्रसाद और आरती दी जाती है। इसके बाद यदि संभव हो तो किसी सपेरे को बुलाकर उसे दक्षिणा दें। यदि आप संपन्न हैं तो उसे खाना खिलाकर वस्त्र भी दान किए जा सकते हैं। इन सब के बाद अंत में नाग पंचमी की कथा अवश्य सुननी चाहिए।
नाग पंचमी का पर्व हमारे देश का एक बड़ा पर्व है। भगवान शिव के प्रति गहरी आस्था के चलते लोग इस दिन नाग देवता की पूजा करते हैं। नाग पंचमी से जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं। कहते हैं कि ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियां थी। चारों पत्नियों के चार पुत्र थे। पहली पत्नी से देवता पुत्र पैदा हुए, दूसरी पत्नी से गरुड़ पुत्र पैदा हुए जबकि चौथी पत्नी से दैत्य पुत्र पैदा हुए। लेकिन उनकी तीसरी पत्नी कद्रू का ताल्लुक नाग वंश से था, जिसके चलते उनके नाग पुत्र पैदा हुए। कहते हैं कि यही से नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है और इस दिन नाग देवता की पूजा होती है। इसके अलावा दूसरी कथा यह प्रचलित है कि सर्प दो प्रकार के होते हैं। जिनमें दिव्य और भौम शामिल हैं। दिव्य सर्प वासुकि और तक्षक आदि हैं। कहते हैं कि दिव्य सर्प पृथ्वी का बोझ उठाते हैं और प्रज्ज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी होते हैं। यदि किसी बात से यह क्रोधित हो जाएं तो सब कुछ समाप्त कर सकते हैं। ग्रंथों में कहा गया है कि इनके डंस से बचने की भी कोई दवा नहीं है। इसलिए विधि विधान से इनकी पूजा करने का नियम है। इसके विपरित जो सर्प इस पृथ्वी पर पैदा होते हैं उनके मुंह में विष होता है और इसकी संख्या अस्सी बताई गई है। नाग पंचमी की तीसरी कथा यह है कि इस दिन अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक नामक आठ नागों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि इन नागों में से अनन्त और कुलिक नाग ब्राह्मण हैं, वासुकि और शंखपाल नाग क्षत्रिय हैं, तक्षक और महापदम वैश्य हैं और पदम और कर्कोटक शूद्र हैं। चौथी और अंतिम पौराणिक कथा यह है कि जन्मजेय जो अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे उन्होंने नाग से बदला लेने के लिए एक यज्ञ किया क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी। कहते हैं कि ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को रोका था। जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी और तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया। जिसके चलते नाग पंचमी मनाने की परंपरा शुरू हुई।
हमारे देश में नाग देवता केा पौराणिक काल से ही पूजा जाता है। इसलिए नाग पंचमी के दिन नाग पूजन का अत्यधिक महत्व है। इस दिन नाग की पूजा करने से व्यक्ति के मन से सांप के प्रति भय खत्म होता है। जो व्यक्ति इस दिन सांप को दूध पिलाता है या उन्हें दूध से नहलाता है उसे अक्षय-पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर नाग का चित्र बनाने से सभी कार्य सफल होते हैं। मान्यता है कि इससे वह घर नाग-कृपा से सुरक्षित रहता है।
आशा करते हैं हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी। आप सभी को नाग पंचमी की शुभकामनाएं।
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