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आवाज का जादूगर- सोनू निगम

magician of voice sonu nigam
जन्‍मदिन 30 जुलाई 1973
 
सन् 1976-77  की बात है। मंच पर तीन साढ़े-तीन साल का एक बच्‍चा रफी साहब का गीत 'क्‍या हुआ तेरा वादा' गा रहा था। साथ में उसके पिता भी थे। इसके बाद भी उसने कई बार पिता के साथ मंच साझा किया। बस यहीं से दिल में गायक बनने की ललक जाग उठी। लगा यही काम है जो मुझे आगे चलकर करना है। लेकिन, उसे फरीदाबाद (दिल्‍ली के करीब बसा हरियाणा का ओद्योगिक नगर) छोड़कर मायानगरी मुंबई आना था। वो न सिर्फ मुंबई आया, बल्कि इस तमाम बाधाओं को पार करते हुए अपना अलग मुकाम भी बनाया। दुनिया ने उसे पहचाना, उसकी आवाज को सराहा और कामयाबी की नयी मंजिलों से अता फरमाया। जी, बात सोनू निगम की हो रही है। अपनी आवाज के जादू से करोड़ों लोगों को मदहोश करने वाली आवाज़ का आज (30 जुलाई) को जन्‍मदिन है। उन्‍हीं को शुभकामनाएं देता हुआ यह आलेख।
 
बॉलीवुड की राह इतनी आसान नहीं, जितनी कि यह बाहर से नजर आती है। सोनू को यह बात समझने में देर नहीं लगी। 1991 में मुंबई आने से पहले वह कई गायन प्रतियोगिताएं जीत चुके थे। कई लोगों ने उसकी आवाज को सराहा था। कईयों ने बेहतर भविष्‍य की कामना भी की थी। लेकिन, मुंबई पहुंचने के बाद सोनू का पता चला कि यहां कोई किसी का पलकें बिछाकर इंतजार नहीं करता। यहां की दुनिया उनकी दुनिया से अलग है। मुंबई में फरीदाबाद और दिल्‍ली से अलग अपनी रफ्तार है। तेज रफ्तार। जहां कामयाबी चाहिए तो दौड़ना है... और वो भी सबसे तेज। खैर, कुछ समय की परेशानियों के बाद सोनू को काम मिला। अपने प्रेरणास्रोत मोहम्‍मद रफी साहब के गीत गाने का। 'रफी की यादें' सीरीज के जरिए सोनू का गायकी का सफर शुरू हुआ। लोगों को आवाज़ पसंद आई। लेकिन, जिसने भी सुना उसे यह रफी का क्‍लोन लगा। बेशक, मोहम्‍मद रफी सोनू की पसंदीदा गायक थे। सोनू उन्‍हें बेहद पसंद भी करते थे। लेकिन, इस हक़ीकत का भी उन्‍हें अंदाजा था कि अगर बॉलीवुड में टिकना है तो अपनी अलग पहचान बनानी होगी। यहां किसी की नकल बनकर लंबे समय तक अपने पैर जमाए रखना आसान नहीं।

यूं तो सोनू का पहला गाना फिल्‍म 'जानम' के लिए रिकॉर्ड हुआ था, लेकिन बदकिस्‍मती से यह फिल्‍म कभी रिलीज ही नहीं हुई। गुलशन कुमार की फिल्‍म 'आजा मेरी जान' (1993) के लिए सोनू ने बतौर प्‍लेबैक सिंगर अपना पहला गाना गया। लेकिन, 1995 में आई गुलशन कुमार की ही एक और फिल्‍म, 'बेवफा सनम', जिसमें उनके छोटे भाई कृष्‍ण कुमार ने अभिनय किया था, सोनू के गाए गानों ने उन्‍हें कामयाबी की सीढि़यों पर चढ़ा दिया। 'ये धोखे प्‍यार के धोखे' और 'अच्‍छा सिला दिया तूने मेरे प्‍यार का' घर-घर में बजने लगे। इसके साथ ही सोनू की आवाज़ हर घर में सुनी और पसंद की जाने लगी। हालांकि, फिल्‍म बुरी तरह से पिट गयी, लेकिन सोनू हिट हो गए।

हालांकि, 'बेवफा सनम' के बाद सोनू का करियर पटरी पर चलने लगा था, लेकिन वो रफ्तार अभी नदारद थी, जिसकी उन्‍हें दरकार थी। इसी बीच सन् 1997 में आती है 'परदेस' । सुभाष घई की इस रोमांटिक फिल्‍म में शाहरुख खान, अपूर्व अग्निहोत्री और महिमा चौधरी ने मुख्‍य भूमिकाएं निभायीं थी। इस फिल्‍म में सोनू का गाया गीत ' ये दिल दीवाना, दीवाना है ये दिल' लोगों के दिल में घर कर गया। यह गीत बेशक दर्दभरा था, लेकिन इसकी रफ्तार बदलते जमाने के साथ तेजी से कदमताल कर रही थी। यह गाना तेज रफ्तार कार में फिल्‍माया गया था और इसके बाद सोनू के करियर की रफ्तार भी तेज हो गयी थी। नदीम-श्रवण की जोड़ी ने इस फिल्‍म में संगीत दिया था। बकौल सोनू इस गीत में उन्‍होंने माइकल जैक्‍सन से प्रेरणा ली थी। इसी साल (1997) में ही सोनू ने 'बॉर्डर' के लिए 'संदेसे आते हैं' गाया। अनु मलिक की धुन से सजे इसी गीत के लिए सोनू को पहली बार फिल्‍मफेयर के लिए नामांकित किया गया। इसके बाद सोनू को 1998 छोड़कर लगभग हर साल फिल्‍मफेयर के लिए नामांकित किया जाने लगा, लेकिन 2002 में पहली बार फिल्‍म साथिया के लिए उन्‍हें पहला फिल्‍मफेयर मिला। 
 
पर्दे के पीछे अपनी पहचान बनाने में सोनू को वक्‍त लगा, लेकिन फिल्‍मी दुनिया से उनका संबंध बचपन में ही बन गया था। किशोरावस्‍था में 1980 से 1983 के बीच सोनू ने बतौर बाल कलाकार कई फिल्‍मों में अभिनय भी किया। 'प्‍यारा दुश्‍मन', 'उस्‍तादी उस्‍ताद से', 'तकदीर' और 'बेताब' जैसी फिल्‍मों में सोनू ने कैमरे के सामने भी काम किया। वो और बात है कि हीरो बनने की उनकी कोशिशें 'लव इन नेपाल', जानी दुश्‍मन, एक अनोखी कहानी और काश आप हमारे होते जैसी फिल्‍मों में नाकाम साबित हुईं।
 
यह 1995 का ही दौर था जब सोनू के करियर में एक और टर्निंग प्‍वाइंट आया। जी टीवी के शो ' सा रे गा मा पा' की होस्टिंग की जिम्‍मेदारी सोनू मिली। चार सालों तक सोनू इसके एंकर रहे। वह इस शो के पहले एंकर थे। इस शो ने सोनू को टीवी के जरिए हिंदुस्‍तान के घर-घर में पहुंचाया। इसे किस्‍मत ही कहा जाएगा कि साल 2007 में इसी शो के लिटिल चैम्‍स में वे बतौर जज शामिल हुए थे। खैर, 1998 में उनकी एलबम 'दीवाना' (1999) में रिलीज हुई। यह सोनू के करियर में मील का पत्‍थर साबित हुई। अपने दौर की सबसे कामयाब इंडी पॉप एलबम के गाने आज भी पसंद किए जाते हैं।

ऐसा नहीं है कि सोनू पढ़ाई में कमजोर थे। दिल्‍ली के नामी जे डी टाइटलर स्‍कूल से पढ़ाई के दौरान उनकी गिनती टॉपर्स में होती रही। दिल्‍ली विश्वविद्यालय में भी सोनू मेधावी छात्रों में शुमार रहे। वह जानते थे कि फिल्‍मी गायक बनने का सफर मुश्किल है और ऐसे में वह खुद और उनका परिवार भी नहीं चाहता था कि वह पढ़ाई को नजरअंदाज करें। खैर, सोनू की किस्‍मत और मेहनत ने उन्‍हें वह सब कुछ दिया जिसकी उन्‍होंने चाह की थी। अपने इतने लंबे फिल्‍मी सफर में सोनू ने हिन्‍दी के अलावा कन्‍नड़, मलयालम, पंजाबी और तमाम भाषाओं में गीत गाए। हर भाषा में उनकी आवाज को पसंद किया गया है। टीवी पर एंकर बने, एक्‍टर बने, रेडियो जॉकी बने, हॉलीवुड की फिल्‍मों की डबिंग की। यानी अपनी आवाज को उन्‍होंने हर बार नयी चुनौतियां दीं। और हर चुनौती पर उन्‍होंने खुद को पहले से बेहतर साबित किया। उनके जन्‍मदिन पर हिन्‍दीलोक टीम की उन्‍हें ढ़ेरों शुभकामनाएं। हम आशा करते हैं वे लगातार कामयाबी की सीढि़यां चढ़ते जाएं।
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