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करवा चौथ 2019 दिनांक, महत्व और पूजा विधि

करवा चौथ इस साल 17 अक्टूबर 2019 , गुरुवार को है। हमारे देश भारत में पौराणिक कथाओं, हिंदू धर्मग्रंथों और पंचांगों के अनुसर हर महीने में कोई न कोई पर्व, संस्कार, उपवास, महोत्सव या शुभ मुहूर्त आता ही है। लेकिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को आने वाला करवा चौथ का त्यौहार बहुत खास होता है। सुहागन स्त्रियों के लिए इस त्यौहार का काफी महत्व होता है।

करवा चौथ 2019 मुहूर्त

करवा चौथ पूजा मुहूर्त : 17:50:03 से 18:58:47 तक
अवधि : 1 घंटे 8 मिनट
करवा चौथ चंद्रोदय समय : 20:15:59

विवाहित स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु और उसके खुशहाल जीवन के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखती है। शाम को चांद निकलने के बाद ही इस व्रत को खोला जाता है। इस दिन सिर्फ पति की सूरत देखकर ही व्रत को खोलते हैं। हालांकि जो स्त्रियां अविवाहित हैं वह भी अच्छा वर पाने की इच्छा से इस व्रत को रखती हैं। उत्तर भारत में इस पर्व को काफी जोर शोर के साथ मनाया जाता है। इस त्यौहार को हिंदू धर्म के लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं। उत्तर भारत के पंजाब, राजस्थान, ​दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड में यह त्यौहार काफी जोर शोर के साथ मनाया जाता है।

महिलाएं अपने पति के लिए सोलह श्रृंगार करती हैं और दुल्हन की तरह सजती हैं। बाजारों में भी महीनों पहले से ही तरह तरह के कपड़े और अन्य मेकअप कासामान मिलता है। इस दिन का नजारा देखते ही बनता है। करवाचौथ व्रत के दिन एक और जहां दिन में कथाओं का दौर चलता है तो दूसरी और दिन ढलते ही महिलाओं की नजर चांद पर टिक जाती है। क्योंकि चांद को देखकर ही यह व्रत खोला जाता है। करवाचौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से पहले ही 4 बजे से शुरू हो जाता है। इस व्रत में सुबह 4 बजे से पहले खाना खाने का रिवाज है, इसे सरगी कहते हैं। इस दिन देवी देवताओं में भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा करने का नियम है। पूजा के बाद महिलाएं करवा चौथ की कथा पड़ती है। कथा के बाद चाय, पानी या दूध पीने का रिवाज है। सामान्यत: विवाहोपरांत 12 या 16 साल तक इस उपवास को लगातार रखा जाता है। लेकिन इच्छानुसार जीवनभर भी विवाहिताएं इस व्रत को रख सकती हैं। जो महिलाएं पति से बहुत प्यार करती है वह इस व्रत को बहुत ही श्रद्धा भाव से रखती हैं।

करवा चौथ व्रत के नियम

  • वैसे तो हिंदू धर्म का हर उपवास पूरे दिन का होता है लेकिन करवा चौथ का व्रत सुबह 4 बजे से शुरू हो जाता है। जबकि चांद निकलने तक इस व्रत को रखा जाता है।

  • इस व्रत में सुबह 4 बजे से पहले सरगी लेने का नियम है। इस दौरान चाय, पानी, दूध, ड्राई फ्रूट्स और फल खाने की विधा है। कहते हैं कि इस वक्त खाने से एक तो दिनभर भूख नहीं लगती है और दूसरा महिलाऐं कमजोरी भी महसूस नहीं करतीं।

  • शाम की पूजा के दौरान यानि कि चंद्रोदय से 1 घंटा पहले सम्पूर्ण शिव-परिवार (शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी) की पूजा की जाती है।

  • इस दिन व्रती महिला का सोलह श्रृंगार करना शुभ माना जाता है। कहते हैं कि महिला इस दिन सज धज कर रहती है तो उसका पति खुशहाल रहता है। पूजन के समय देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए तथा स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।

  • करवा चौथ की पूजा में महिलाओं का नए वस्त्र पहनना जरूरी होता है। यदि कोई महिला संपन्न नहीं है तो वह धुले हुए कपड़े पहन सकती है। इस पूजा में महिलाओं को सोलह श्रृंगार करना चाहिए और मेहंदी लगानी चाहिए। इस पूजा में पुरुषों का बैठना वर्जित होता है।

करवा चौथ कथा

करवा चौथ व्रत हिंदू धर्म का बहुत बड़ा त्यौहार है। हमारे देश में जो भी त्यौहार मनाए जाते हैं उनके पीछे कई तरह की पौराणिक कथाएं होती है। करवा चौथ के व्रत को लेकर भी ऐसी ही कथा है। कहते हैं कि एक साहूकार के सात बेटे और करवा नाम की एक बेटी थी। करवा चौथ के मौके पर एक बार उनके घर में व्रत रखा गया। रात के वक्त जब भोजन बना तो सभी लोग साथ में बैठकर भोजन करने लगे। तब करवा के भाईयों ने देखा कि वह खाना नहीं खा रही है तो उन्होंने उससे भी खाना खाने को कहा। ​करवा ने यह कहकर मना कर दिया कि जब चांद निकलेगा तो वह अर्घ्य देकर ही भोजन करेगी। भाईयों ने सोचा कि हमारी बहन सुबह से भूखी है और चांद के इंतजार में उसे अभी और भूखा रहना पड़ेगा। ऐसे में सुबह से भूखी-प्यासी बहन की हालत भाइयों से नहीं देखी गयी। सबसे छोटा भाई एक दीपक दूर एक पीपल के पेड़ में प्रज्वलित कर आया और अपनी बहन से बोला कि चांद निकल गया है तुम व्रत खोल दो। बहन को लगा कि वाकई में चांद निकल आया है और उसने खाना खा लिया। तभी उसे यह समाचार मिला कि उसके पति की मृत्यु हो गई है। शोकातुर होकर वह अपने पति के शव को लेकर एक वर्ष तक बैठी रही और उसके ऊपर उगने वाली घास को इकट्ठा करती रही। इसके बाद उसने प्रण लिया कि अगले साल की कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को वह फिर से विधि विधान से व्रत रखेगी और चांद निकलने पर ही खाना खाएगी। उसके ऐसा ही किया इसके फलस्वरूप उसका पति पुनः जीवित हो गया। तभी से यह कथा घर-घर में प्रसिद्ध हो गई और महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करवाचौथ का व्रत रखने लगीं।

करवा चौथ व्रत की पूजा-विधि

करवा चौथ का व्रत पूरी तरह से महिलाओं के प्र​ति समर्पित है। हालांकि कई पुरुष भी अपनी पत्नी की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखते हैं। हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में कुंवारी कन्याएं भी अच्छा वर पाने की इच्छा से इस व्रत को रखती है। आज के समय में यह व्रत एक फैशन भी बन गया है। हर महिला सुंदर दिखने और श्रृंगार के बहाने से भी इस व्रत को रखती हैं। यह व्रत जितना आकर्षक लगता है उतने ही कठिन इसके नियम है। कहते हैं कि इस व्रत में की गई जरा सी लापरवाही काफी नुकसानदायक साबित हो सकती है। आज हम आपको करवा चौथ व्रत की पूजा विधि बता रहे हैं।

  • पूजा शुरू करने के लिए सबसे पहले आपको सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना है और सरगी का सेवन करना है। इसके बाद घर समेत मंदिर की सफाई करें।

  • इसके बाद भगवान की पूजा करके रात तक ​निर्जला व्रत का संकल्प लें। एक बार अगर आपने व्रत रख लिया है तो आप दिनभर कुछ नहीं खा सकते हैं।

  • शाम को चांद निकलने के बाद ही पति के द्वारा दिये गए अन्न का सेवन होता है। इस वक्त पहले चांद की पूजा होती है उसके बाद खाना खाया जाता है।

  • इस व्रत में शाम के 4 बजे के वक्त पूजा करने का भी विधान है। इस वक्त एक मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें। इसमें 10 से 13 करवे (करवा चौथ के लिए ख़ास मिट्टी के कलश) रखें।

  • पूजा स्थल में रोली, मोली, धूप, दीप, सिंदूर और चंदन रखें। दीपक को घी से जलाएं और यह दीपक रात तक जलना चाहिए।

  • चंद्रमा निकलने से एक घंटे पहले पूजा की जानी चाहिए। यानि कि लोग 7 बजे के बाद पूजा करना शुरू कर देते हैं।

  • अगर आप अपने परिवार की सभी महिलाओं के साथ या मौहल्ले की महिलाओं के साथ पूजा करेंगे तो और भी अच्छा माना जाता है। इस पूजा में आप खुद भी करवा कथा पढ़ और सुन सकते हैं और किसी कन्या से भी पढ़वा सकते हैं।

  • चन्द्र दर्शन छलनी के द्वारा किया जाना चाहिए और साथ ही दर्शन के समय अर्घ्य के साथ चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए।

  • चंद्रमा के दर्शन करने के बाद व्रती महिला अपनी सास को या किसी सुहागन महिला को एक थाली में फल, फूल, मिठाई और कपड़े आदि भेंट कर उनका आर्शीवाद लेती है। इस दौरान सास अपनी बहू को अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद देती है।

करवा चौथ में सरगी

करवा चौथ के त्यौहार में सरगी का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। यह इस व्रत का सबसे पहला संस्कार होता है। करवाचौथ ही एक ऐसा त्यौहार है जो सुबह चार बजे से शुरू हो जाता है और उस दौरान सरगी का ही सेवन किया जाता है। सरगी में सास अपनी बहू को चाय, दूध, पानी, फल या ड्राई फ्रूट्स देती है। इसे सूर्योदय से पहले खाया जाता है। जो महिलाएं इस दिन व्रत को रखती हैं वही इसका सेवन करती हैं। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि व्रती महिला सरगी का सेवन करें। यदि कोई बिना सरगी के भी व्रत रख सकता है तो वह ऐसा कर सकता है। शाम को सभी व्रती महिलाएं श्रृंगार करके एकत्रित होती हैं और फेरी की रस्म करती हैं। फेरी की रस्म में सभी महिलाए एक गोल घेरा बनाकर बैठती हैं और पूजा की थाली एक दूसरे को देकर पूरे घेरे में घुमाती हैं। इस दौरान जो भी सबसे बुजुर्ग महिला होती है वह कथा का गीत गाती है। उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में गौर माता की पूजा की जाती है। गौर माता की पूजा के लिए प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि करवा चौथ के व्रत में सरगी का बहुत बड़ा महत्व है।

उम्मीद है कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी। हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

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