16 अक्टूबर 2012
मुम्बई। 'गाइड' व 'कागज के फूल' जैसी सदाबहार फिल्मों की नायिका वहीदा रहमान मानती हैं कि भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम दौर उनके अभिनय के दिनों में नहीं था बल्कि आज है।
वहीदा कहती हैं कि भारतीय फिल्मों को विश्व स्तर पर मिल रही प्रशंसा और उनमें विषयों, अभिनय व प्रौद्योगिकी के स्तर पर आए निखार के आधार पर आज के दौर को भारतीय सिनेमा का स्वर्णिम दौर कहा जाएगा।
76 वर्षीया वहीदा ने कहा, "लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि जब मैंने फिल्में कीं तब सिनेमा का स्वर्णिम युग था लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूं। अब जब हमारी फिल्में दुनियाभर में सराही जा रही हैं, तो मैं समझती हूं कि स्वर्णिम युग अब है।"
वहीदा 1956 में प्रदर्शित 'सीआईडी' से हिंदी सिनेमा में शुरुआत करने से पहले तेलुगू व तमिल फिल्मों की सफल अभिनेत्री थीं। बाद में उन्होंने हिंदी में 'प्यासा', '12 ओ'क्लॉक', 'कागज के फूल', 'साहिब बीबी और गुलाम', 'चौदहवीं का चांद', 'तीसरी कसम' और 'मुझे जीने दो' जैसी महत्वपूर्ण फिल्में दीं।
फिल्मोद्योग में पांच दशक बिता चुकीं वहीदा मानती हैं कि यहां सकारात्मक बदलाव हुए हैं।
उन्होंने कहा, "फिल्मोद्योग में कई अच्छे बदलाव हुए हैं, तकनीक, विषय व अभिनय के क्षेत्र में ये बदलाव हुए हैं। यहां 'द डर्टी पिक्चर', 'कहानी', 'ब्लैक', 'पान सिंह तोमर' और 'पीपली लाइव' जैसी बहुत अच्छी फिल्में बनी हैं।"
वहीदा ने कहा, "लेकिन यहां बहुत अनिश्चितता भी है। फिल्में बहुत खर्चीली हो गई हैं और सौभाग्य से उनके प्रदर्शन के एक सप्ताह के अंदर ही उनमें लगा पैसा वापस मिल जाता है। लेकिन यह पैसों का सवाल नहीं है, यह फिल्मों की गुणवत्ता का भी सवाल है।"
उन्होंने आज कल के कलाकारों के हर तरह की भूमिकाएं निभाने की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा, "हमारे समय में छोटे से नकारात्मक किरदार के लिए भी लोग मना कर देते थे। उनका कहना होता था कि वह मुख्य नायिका हैं और वह यह संवाद कैसे बोल सकती हैं या किसी को थप्पड़ कैसे लगा सकती हैं।"
वैसे खुद वहीदा ने अलग तरह की भूमिकाओं से इंकार नहीं किया और इसका उदाहरण देवानंद के साथ आई उनकी फिल्म 'गाइड' है।
उन्होंने 'मशाल' व 'नमक हलाल' में चरित्र भूमिकाएं निभाई हैं। वर्ष 1991 में आई 'लम्हे' के बाद फिल्मी दुनिया से दूर हुईं वहीदा ने 11 साल के अंतराल के बाद 2002 में 'ओम जय जगदीश' और फिर 'रंग दे बसंती' में अभिनय किया। उनकी अंतिम फिल्म 2009 में प्रदर्शित हुई 'दिल्ली 6' थी।
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