१३ अगस्त २०१३
नारियल पानी के साथ लस्सी मिक्स। शुरू से अंत तक आप देखें हिंदी फिल्म और महसूस करें साउथ को। यह है नया फ्लेवर। हीरो को जाना है गोवा और वह सवार हो जाए चेन्नई एक्सप्रेस में। बातें ऐसी कि न डबिंग की जरूरत और न सब-टाइटल्स की। कश्मीर से कन्याकुमारी तक सिनेमा की सांस्कृतिक रील में देश एकमेक हुआ जा रहा है। ये रोहित शेट्टी और शाहरुख खान का कॉकटेल है। चेन्नई एक्सप्रेस एक नया सिनेमाई अनुभव है।
बॉलीवुड के सबसे महंगे डायरेक्टर बन चुके रोहित शेट्टी से कई लोगों को शिकायत है कि वे अपनी फिल्मों में ‘गोलमाल’ और ‘बोल बच्चन’ ज्यादा करते हैं। ये लोग ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ में देख सकते हैं कि रोहित बिना चुटकुलेबाजी के भी अच्छी फिल्म बना सकते हैं। अपने रंग-बिरंगे कैनवास पर तेज-रफ्तार उड़ती कारों के साथ। शाहरुख को हीरो लेकर भी रोहित ने अपने अंदाज को बरकरार रखा है।
वहीं शाहरुख खान के लिए यह फिल्म नया एनर्जी ड्रिंक है। वे अपने रूमानी रूप में पुराने राहुल ही लगे हैं और जब प्यार की कसमें खाते हैं तो सिनेमाहॉल में लड़कियों का दिल धक धक करने लगता है। अगर आपने ‘परदेस’ और ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में शाहरुख को पसंद किया है तो वे आपको यहां भी अच्छे लगेंगे।
फिल्म में दीपिका पादुकोण का नाम पर्दे पर शाहरुख से पहले उभरता है। जैसे-जैसे चेन्नई एक्सप्रेस रफ्तार पकड़ती है, दीपिका अपनी साउथ इंडियन टोन के साथ दर्शकों पर छाने लगती है। उनकी ‘बोकवास’ दिल में उतरने लगती है। अपनी नायिकाओं को सम्मान देने वाले शाहरुख के अलावा कोई और हीरो फिल्म में होता तो वह दीपिका के परफॉरमेंस से घबरा कर उनके रोल पर कैंची चलवा सकता था।
दीपिका ने यहां खुद को अपनी प्रतिद्वंद्वी कैटरीना से मीलों आगे साबित किया है और बताया है कि वे अभी लंबी दूरियां तय करेंगी। कैटरीना के साथ ‘जब तक है जान’ करके शाहरुख नाकामी के जिस भंवर में फंसे थे, दीपिका ने उन्हें उससे उबार लिया है।
रही बात फिल्म की कहानी की, तो वह सीधी-सरल है। हीरो को दादा जी ने बचपन से पाला है। सौवें जन्मदिन पर सचिन तेंदुलकर को 99 पर आउट होते देख, वे दुनिया से कूच कर जाते हैं। उनकी इच्छा थी कि अस्थियां रामेश्वरम में विसर्जित की जाएं। हीरो इसी के लिए निकला है। लेकिन ट्रेन में उसे हीरोइन मिलती है, जिसे कुछ लोग किडनैप करके ले जा रहे हैं। उसे बचाने की कोशिश में हीरो भी उनके चंगुल में फंस जाता है। आखिर माजरा क्या है...?
पहले ही सीन से फिल्म कॉमिक टोन लिए हुए है। अतः किसी भी कोण से इसे गंभीर होकर देखने की कोशिश मीठे में मिर्ची तलाशने की तरह नाकाम साबित होगी। ऐसा कतई नहीं कि इस कॉमेडी को देखने के लिए दिमाग घर पर छोड़ के जाने की जरूरत है।
फिल्म में बहुत कुछ है जिसे दिमाग में दर्ज किया जा सकता है। विशाल-शेखर ने फिल्म का संगीत तैयार किया है, लेकिन हनी सिंह का अकेला लुंगी डांस उन पर भारी है। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर शाहरुख, उनकी टीम और उनके फैंस के लिए ईद का ईनाम है। इसमें जोश है, उर्जा है, गुदगुदी है...। फिल्म में दक्षिण का चांद उत्तर के आकाश में निकला है। एक ही संदेश के साथ, लुंगी उठाओ पुंगी बजाओ।