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कब मिलेगी कंप्यूटराइजेशन को सही दिशा ?

when will get right direction of computerziation

 हाल में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन द्वारा कराये गये सर्वेक्षण के आधार पर एक खबर आयी है कि गांवों में आधे प्रतिशत से भी कम लोगों के घरों में इंटरनेट सुविधा है। रिपोर्ट के मुताबिक 6 प्रतिशत शहरी परिवारों की तुलना में ग्रामीण घरों में इंटरनेट कनेक्शन केवल 0.4 प्रतिशत है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि शहरों में गांवों की अपेक्षा 15 गुना ज्यादा परिवार इंटरनेट की सुविधा का उपभोग कर रहे हैं या फिर इस बात पर भी रोना रोया जा सकता है कि यह प्रतिशत जल्दी से 85 या 95 या 100 प्रतिशत क्यों  नहीं हो पा रहा है। लेकिन आज के लिहाज से बुनियादी सवाल इससे कुछ अलग है और वह यह है कि गांवों में शहरों की अपेक्षा कितने परिवारों में बिजली कनेक्शन हैं, कनेक्शन है तो बिजली कितने घण्टे पहुंच रही है, बिजली पहुंच रही है तो वोल्टेज का उतार-चढ़ाव कैसा है, और घरों में कंप्यूटर चल सकता भी है अथवा नहीं। जहां एक ओर गांव-गांव तक कंप्यूटर पहुंचाने की कवायद चल रही है, वहीं इस सचाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि भारत के गांवों में आज जहां बिजली है भी वहां आपूर्ति की गुणवत्ता  ऐसी नहीं है कि विद्युत एवं इलेक्ट्रानिक उपकरण निरापद तरीके से कार्य कर सकें।

 मगर ऐसा भी नहीं है कि देश में ई-चौपालें नहीं चल रहीं हैं भले ही ई-चौपाल के डेस्ककटाप कंप्यूटर के साथ उपलब्ध कराया गया सोलर पैनल 40 मिनट से ज्या्दा बैकअप न उपलब्ध करा पाता हो। इसी प्रकार ऐसी अनेक तस्वीरे हैं जो गांव के लोगों द्वारा नई टेक्नालाजी के इस्तेमाल को लेकर प्रदर्शित किए गये असाधारण उत्साह के नमूने के तौर पर मिल जायेंगी लेकिन सवाल यह उठता है कि हमारे पास विकास को लेकर सर्वांगीण सोच क्यों नहीं है। विभिन्न मंत्रालयों द्वारा तैयार की जा रही योजनाओं के बीच आपस में तालमेल का अभाव यथार्थ के धरातल पर अद्भुत हास्यास्प्द स्थितियां उत्पन्न कर रहा है। परस्पर संवादहीनता एवं चरणबद्ध योजनाओं का अभाव हमें विकास के ऊबड़खाबड़ पथ पर धकेल रहा है जहां हम लक्ष्यर की ओर बढ़ने के बजाए सिर्फ अपनी ऊर्जा का क्षय एवं अपव्यय कर रहे हैं। आधारभूत ढांचे के अभाव में आरोपित की जा रही विकास नीतियों को कौन बुद्धिमत्तापपूर्ण मानेगा आखिर।

  कंप्यूटरइजेशन को लेकर को बड़ी उम्मीदें थीं। एक समय यह माना जा रहा था कि कंप्यूटरइजेशन सरकारी कामकाज में पारदर्शिता को बढ़ावा देकर व्याप्त् भ्रष्टाचार पर अंकुश तो लगायेगा ही, साथ ही त्वरित एवं सुसंगत सूचना आपूर्ति में सहायक होकर हमारे प्रशासनिक निर्णयों की गुणवत्ता में अभिवृद्धि करेगा। एक और पहलू जिसके लिए कंप्यूटरइजेशन  से गहरी अपेक्षा थी वह था उपलब्ध संसाधनों के अनुकूलनतम उपयोग, जो आज हर मोर्चे विफल दिखायी दे रहा है। नतीजा यह है कि देश में कम्यूटराइजेशन ने मितव्ययिता के बजाए उल्टे सरकारी कार्यालयों का खर्च बढ़ गया है। कंप्यूटरइजेशन से हमें सर्वाधिक उम्मीद इस बात की थी कि सरकार के विभिन्न  विभागों के आंकड़ों के बीच एक तार्किक सुसंगति स्थापित हो सकेगी, जिसके उल्टे आज स्थिति यह है कि सरकारी सर्वरों पर उपलब्ध विभिन्न विभागों के मास्टर डाटाबेस में आधारभूत आंकड़ों यथा- गांव,तहसील आदि के नामों में ही एकरूपता नहीं है। स्कूलों के नाम शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर कुछ और तो स्कावलरशिप की वेबसाइट पर कुछ और मिल जायेंगे। जहां ऐसी विभिन्नंता व्याप्त है वहां विभिन्न् विभागों द्वारा एकत्र किए जा रहे आंकड़ों का विश्लेषण कर उनकी विसंगतियों को चिन्हित कर उपयुक्ती कार्यवाही करना तो बहुत दूर की बात है। कम्यूटराइजेशन को लेकर सब अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग अलाप रहे हैं, हां, इस सबके चलते देश में कुछ कंप्यूटर माफिया जरूर पैदा हो गये है जो सरकारी अमले के सा‍थ मिलकर मलाई काट करे हैं। एक अनुमान के मुताबिक सरकारी विभागों में करोड़ों का हार्डवेयर और साफ्टवेयर उपयोग हेतु खोले गये बिना ही गतकालिक भी हो चुकता है, एक गरीब देश इतना मंहगा खिलौना खेले यह समझ के बाहर है।

मजे की बात एक और है कि जहां एक ओर सरकारी वेबसाइटों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है, और सूचनाओं का अम्बाहर उन वेबसाइटों पर डाला जा रहा है, अपने जरूरत की एक छोटी सी सूचना के लिए वे वेबसाइटें एक आम नागरिक के लिए सिरदर्द ही साबित होती हैं। ऐसी दिशाहीन वेबसाइटों पर पहुंचने वाली ट्रैफिक सरकार के लिए एक आइना साबित हो सकती है, मगर यह सब तब सम्भव है जब कंप्यूटरइजेशन को लेकर एक सही सोच और समेकित प्रयास को बढ़ावा देने की इच्छा शक्ति सरकार के पास हो।
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