भारत मल्होत्रा
'बर्फी' में प्रियंका अपने अभिनय की मिठास घोल रही हैं। झिलमिल के किरदार को उन्होंने बखूबी निभाया है। सही मायनों में वह आंखों को सुकून देते किसी सितारे की तरह झिलमिला रही हैं। बीते कुछ अर्से से प्रियंका चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं स्वीकार कर रही हैं। फिर चाहे वो 'सात खून माफ' हो 'फैशन' या फिर 'वट्स योर राशि'। या फिर 'अग्निपथ' ही क्यों न हो, जहां उन्होंने सीमित संभावनाओं के बीच शानदार अभिनय किया।
प्रियंका खूबसूरत देहयष्टि की स्वामिनी है। वह आकाश से उतरकर आई किसी अप्सरा सरीखी नहीं लगतीं। और यह उनकी कमी नहीं बल्कि उनकी सबसे बड़ी ताकत है। दर्शक सीधे उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं। आज वह चोटी की नायिका हैं। और बेशक बर्फी के बाद उनके कद में और इजाफा होगा। आज जहां हर वस्तु कृत्रिम व बनावटी होती जा रही है। और वास्तविक खूबसूरती देखने वाले की आंखों को धता बता कैमरे के एंगल और मेकअप मैन की उंगलियों के जादू के बीच कहीं खो सी गयी है, प्रियंका बिना मेकअप के भूमिका करना स्वीकार करती हैं। बेशक इन्हें उनका साहस ही कहा जाएगा।
प्रियंका उत्तर प्रदेश के बरेली शहर की रहने वाली हैं। उनके पिता पंजाबी हैं और मां बिहारी। दोनों ही पेशे से डॉक्टर हैं। उनका जन्म हुआ झारखंड (तब बिहार) के जमशेदपुर में। उनका बचपन बीता बरेली और लखनऊ में। उनके पिता डॉक्टर अशोक चोपड़ा भारतीय सेना में डॉक्टर थे। बरेली और लखनऊ के बाद प्रियंका आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका गयीं। यहां उन्हें नस्लीय टिप्पणियां तक झेलने को मिलीं। विभिन्न संस्कृतियों ने शायद प्रियंका को सामंजस्य की कला सिखायी है। तभी तो वह शाहरुख के साथ डॉन सीरीज की फिल्में करती हैं और सलमान के साथ उनकी दोस्ती जगजाहिर है। दो विपरीत धाराओं के बीच किस तरह बहकर अपना रास्ता बनाना है यह हुनर प्रियंका बखूबी जानती हैं। जरा सोचिए वे लोग जो प्रियंका पर रंगभेदी फब्तियां कसा करते थे साल 2000 में उनके विश्व सुंदरी बनने के बाद उनकी क्या दशा हुयी होगी।
छोटे शहर से आने वाले लोगों में अपना मुकाम छोड़ने की ललक ज्यादा होती है। प्रियंका कोई अपवाद नहीं हैं। मिस वर्ल्ड का खिताब जीतने के बाद प्रियंका ने बॉलीवुड जाने का फैसला किया। वह भी बिना किसी गॉडफादर के। मायानगरी में प्रियंका की पहली हिन्दी फिल्म थी 'द हीरो'। साल 2003 में आई उनकी इस फिल्म में उन्होंने सेंकेड लीड निभाया। इससे एक साल पहले उन्होंने तमिल फिल्म 'थमिज़हन' में काम किया था। हीरो के बाद प्रियंका ने कई फिल्मों में काम किया। लेकिन ज्यादातर फिल्में नायक प्रधान ही रहीं। कृष (2006) हो, डॉन (2006) हो, 'आप की खातिर' लव स्टोरी 2050, और द्रोणा जैसी फिल्में इस फेरहिस्त में रखी जा सकती हैं। हालांकि नायक प्रधान फिल्मों में भी प्रियंका अपनी पहचान और मुकाम बनाने में कामयाब रहीं। वे रबर की गुडि़या कभी नहीं रहीं। उनकी फिल्में बेशक नायक प्रधान थीं, लेकिन सीमित संभावनाओं में भी वह अधिकतर मौकों पर अपने हिस्से का आसमान हासिल करने में कामयाब रहीं।
फिल्मी सफर के साथ ही उनका नाम कई नायकों के साथ भी जुड़ा। कभी शाहिद कपूर के साथ उनके प्रेम प्रसंग चर्चा का विषय बने। तो कभी शाहरुख के साथ उनकी नजदीकी गॉसिप की वजह बनी। यहां तक कि एक बार शाहिद के अल-सुबह प्रियंका के कमरे से बाहर निकलने की बातें भी निकलकर सामने आयीं। और शाहरुख की बीवी गौरी खान की प्रियंका से नाराजगी किसी से छिपी नहीं है। लेकिन, प्रियंका आमतौर पर अपनी निजी जिंदगी को लेकर खुलकर बात करने से बचती रही हैं।
प्रियंका के करियर का असली मोड़ आया साल 2008 में। 'फैशन' को बेशक उनकी पहली ऐसी फिल्म कहा जा सकता है जहां उन्हें अपनी अभिनय क्षमता दिखाने का पूरा-पूरा अवसर मिला। मधुर भंडारकर जैसे कामयाब फिल्म निर्देशक ने प्रियंका के अभिनय क्षमता की हर परत को दर्शकों के सामने लाकर खड़ा कर दिया। इस फिल्म ने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिलवाया। और इसके बाद आयी 'दोस्ताना' ने उन्हें एक नयी पहचान और नया नाम दिया 'देसी गर्ल'। इसके बाद 'कमीने' (2009) 'डॉन-2', 'अग्निपथ' जैसी व्यवसायिक दृष्टि से कामयाब फिल्मों में प्रियंका ने अपनी कलाकारी के जलवे बिखेरे।
सात खून माफ' और 'फिर 'वट्स योर राशि' जैसी फिल्मों को भले ही सुपरहिट की श्रेणी में न रखा जा सके, लेकिन प्रियंका की अदाकारी और नई चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं स्वीकार करने की उनकी हिम्मत की सभी ने तारीफ की। और अब आई है 'बर्फी'। जिसमें उनके अभिनय को जमकर सराहा जा रहा है। जल्द ही वह 'कृष 3' और जंजीर के रिमेक भी नजर आएंगी। हम उम्मीद करते हैं कि प्रियंका का करियर कामयाबी की नयी ऊचाईयां छुए।
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