Friday, December 23, 2005

कुछ और प्रपंचतंत्र कहानियां

देखकर भौंको
आलोक पुराणिक
कुत्ता कथा -1
एक समय की बात है, एक नगर में एक घर था, उसमें दो कुत्ते निवास करते थे। कुत्तों के स्वामी एक कंपनी में मझोंले लेवल के बास थे, यानी कुछ उनके ऊपर काम करते थे और बहुत सारे नीचे काम करते थे।
एक कुत्ता विशुद्ध कुत्ता था, यानी वह हरेक पर भौंकता था।
बास के बास आयें, उन पर भी भौंकता था, बास के जूनियर आयें, उन पर भी भौंकता था।
हर हाल में भौंकता था।
बास के बास के कुत्तों पर एक बार वह इतनी जोर से भौंका कि बास के बास नाराज हो कर चले गये।
दूसरा कुत्ता स्मार्ट था, वह सूंघ लेता था कि अगर कौन बास का जूनियर है और कौन बास का बास। वह बास के बास और उनके कुत्ते के आगे आटोमैटिक दुम हिलाने लग जाता था।
उसकी ऐसी हरकत देखकर विशुद्ध कुत्ता नंबर एक कहता था कि ये क्या हरकत है। हम कुत्ते हैं, हमारा धर्म है हरेक पर भौंकना। हर कुत्ते पर भौंकना, तू बास के कुत्ते के आगे दुम हिलाने लगता है और जूनियरों के कुत्तों को देखकर दहाड़ने लगता है। लानत है तेरे कुत्ते पर।
इस पर दूसरा कुत्ता कहता था-देख हम कुत्तों को वक्त के हिसाब से चलना चाहिए। हमें देखना चाहिए कि बास किस बात से खुश होता है। हमारी नौकरी सिर्फ भौंकने की नहीं है, हमारी नौकरी बास को खुश करने की है। इस बात को समझना चाहिए।
इस पर विशुद्ध कुत्ता कहता, नहीं मैं कुत्तागिरी नहीं छोड़ूंगा। हरेक पर भौंकूंगा।
इस पर दूसरा कुत्ता कहता-पछतायेगा, वक्त के साथ नहीं बदलेगा तो पिटेगा।
एक दिन बास के बास घर पर आये। उनके साथ उनका बेटा भी आया। बेटा जमाने के चालू चलन के हिसाब से लफंटूश था कभी-कभार चोरी-चकारी में भी हाथ आजमा लेता था। उसने मेजबान के घर में पड़ा एक बहुत फूं-फां किस्म का मोबाइल पार कर लिया।
विशुद्ध कुत्ते और दूसरे कुत्ते दोनों ने इसे सूंघ लिया।
विशुद्ध कुत्ते ने मार मचा दी। उसने बास के बास के बेटे को घसीट दिया, उसकी जेब से मोबाइल निकला। बास के बास बहुत शर्मिंदा हुए। वह मेजबान से नजर नहीं मिला पा रहे थे।
अगले दिन, अगले दिन, कुत्तों के स्वामी ने घर लौटकर विशुद्ध कुत्ते को बहुत पीटा, ठोंक-पीटकर घर से बाहर निकाल दिया। बास ने इसकी वजह अपनी बीबी को यह बतायी-इसकी वजह से मेरा ट्रांसफर हो गया है। बास ने आज मुझे बुलाकर कहा कि कल तुम्हारे एक कुत्ते ने जिस तरह से मेरे बेटे को चोर साबित किया है, वह मेरे लिए शर्मनाक है। कल के हादसे मैं तुमसे नजर नहीं मिला पा रहा हूं। अब या तो तुम इस दफ्तर से जाओ या मैं। चूंकि मैं बास हूं, इसलिए तुम्हे जाना पड़ेगा। मैं तुम्हारा ट्रांसफर जाजऊ नामक कस्बे में करता हूं।
ठुक-पिटकर घर से बाहर निकला विशुद्ध कुत्ता जाते-जाते दूसरे कुत्ते से कहा, मित्र इस घर से निकलते हुए मुझे ये समझ में आ गया है कि कुत्तेगिरी में अगर कुछ आदमीगिरी नहीं मिलायी जाये, तो मामला सीरियस हो जाता है।
हमेशा देखकर भौंकना बनना चाहिए, बास के बास के बंदों पर कभी भी नहीं भौंकना चाहिए।
कुत्ते की असली नौकरी भौंकने की नहीं, हर हाल में बास को खुश रखने की होती है।
कुत्ता कथा-दो
खैर साहब विशुद्ध कुत्ता घर से निकल बाहर भटकने लगा। बहुत ही परेशान था।
घर में रहने वाले कुत्तों को घर से निकल ही पता लगता है कि दुनिया कितनी सख्त है। उसे समझ में आ गया कि दुनिया में फ्री में अगर कुछ मिलता है, वो हैं गालियां। इसके अलावा कुछ भी फ्री नहीं मिलता।
विशुद्ध कुत्ता बहुत ही परेशान होकर दुखी रहने लगा।
शराफत का मारा विशुद्ध कुत्ता किसी से खाना मांगने में भी शरमाता था। चूंकि वह बहुत अच्छे दिन देख चुका था, इसलिए सड़क के ज्यादातर आवारा कुत्ते उससे ईर्ष्या का भाव रखते थे। जिस भाव से नये मारुति 800 वाले पुराने मर्सीडीज वालों को देखते थे,उसी भाव से सड़क के आवारा कुत्ते उसे देखते थे। बहूत परेशान विशुद्ध कुत्ता समझ नहीं पाता था कि आखिर कैसे जीवनयापन किया जाये।
विशुद्ध कुत्ता सड़क के कई आवारा कुत्तों को देखकर याद करता कि अरे, इसे तो मैंने तब दौड़ाया था, इस पर मैं तो तब भौंका था।
कुल मिलाकर विशुद्ध कुत्ते के दिन बहुत खराब बीत रहे थे।
उससे कोई पूछता कि यहां कैसे आ गये।
तो इस सवाल का भी वह सच्ची-सच्ची जवाब दे देता था।
लोग और हंसते थे कि देखो कैसा डबल बेवकूफ है। पहले तो बेवकूफी में घर से बाहर हुआ, उसके बाद अपनी बेवकूफी बताता और है हा हा हा हा।
ऐसे ही दुखी दिन गुजारता हुआ विशुद्ध कुत्ता आवारा भटक रहा था कि।
कि एक दिन एक बुद्धिजीवी टाइप कुत्ते से उसकी मुलाकात हो गयी। बुद्धिजीवी बोले, तो वो कुत्ता हर बात पर नो बोलता था। बेमतलब भौंकता था। रह-रहकर झपटता था, किस पर, यह साफ नहीं हो पाता था। उसने विशुद्ध कुत्ते की कहानी सुनी और बोला-ऐसे काम नहीं चलेगा। तुम ऐसे बोलो, तुम निकाले नहीं गये हो, तुम अपनी मरजी से वहां से आये हो। तुम एक्सपेरीमेंट्स कर रहे हो, फ्राम हाऊस टू रोड्स। इस विषय पर सेमिनार देने के लिए तुम्हे तमाम कुत्तों के बीच बुलाया जायेगा। तुम बताओ कि तुमने एक्सपेरीमेंट्स के लिए शानदार घर की सुविधाएं छोड़ दीं और रोड के कुत्तों के बीच आ गये। डीयर, लाइफ में आगे जाने का फंडा यह है कि अगर प्राबलम में आ जाओ, तो हमेशा यह कहना चाहिए कि ऐसा तो हमने अपनी चाइस से किया है। अपनी इच्छा से किया है, एक्सपेरीमेंट्स के लिए किया है। किसी का माल पार करते हुए पकड़े जाओ और जेल भिजवा दिये जाओ, तो बताओ जेल जाना तो तुम्हारे एक्सपेरीमेंट का हिस्सा है। ऐसा करने से तुम्हारी वैल्यू बढ़ जायेगी, तुम्हे विदेशों तक सेमिनारबाजी के लिये बुलाया जायेगा। अब एक काम करो, इस इलाके से तिड़ी हो जाओ, मुंबई जाने वाली ट्रेन में बैठकर, मुंबई जाकर अपने तजुरबे सुनाओ-फ्राम हाऊस टू रोड्स। चोरों और बुद्धिजीवियों का कारोबार अपने इलाके से दूर ज्यादा बढ़िया चलता है।
थोड़े दिनों बाद बुद्धिजीवी कुत्ता मुंबई किसी सेमिनार में भाग लेने गया, तो उसने देखा दिल्ली का विशुद्ध कुत्ता फुल मौज में है और सोसाइटी फार कुत्ता एक्सपेरीमेंट्स का अध्यक्ष हो गया है। दिल्ली के बुद्धिजीवी कुत्ते को देखते हुए मुंबई के अध्यक्षजी ने उसके पैर छुए औऱ बोले-हे मित्र मुझे तुमसे ये शिक्षाएं मिलीं हैं- 1-कभी भी सच नहीं बोलना चाहिए।
2-चोरी करते हुए पकड़ जाओ, तो भी बताओ कि एक्सपेरीमेंट कर रहे हैं।
3 -चोरों और बुद्धिजीवियों का कारोबार अपने इलाके से दूर ज्यादा बढ़िया चलता है।




आदेशपालू और शंकालु की कहानी
आलोक पुराणिक
साहित्य विद्यापीठ में आचार्य टनाटन के दो शिष्य थे।
एक का नाम था-आदेशपालू औऱ दूसरे का नाम था शंकालु।
आदेशपालू जैसा कि नाम से क्लियर है-गुरुवर के समस्त आदेशों का पालन किया करता था। पर शंकालु का मामला अलग था। शंकालु किसी के भी आदेश का पालन यूं ही नहीं किया करता था। वह पहले चैक कर लिया करता था कि आदेश वास्तव में पालन करने योग्य है कि नहीं। आदेश से अपना फायदा कितना होगा।
दोनों में परस्पर इस मसले पर चर्चा हुआ करती थीं कि गुरुजनों की कितनी बातें माननी चाहिए।
आदेशपालू कहता था-गुरु देवतास्वरुप होते हैं। जो वह कहें, वह आंख मूंदकर फालो करना चाहिए।
शंकालु इस पर कहता-देखो, गुरुजन अगर आउटडेटेड बातें कहें, तो नहीं माननी चाहिए। गुरुजन वो ही ठीक हैं, जो खुद भी अपडेट रहते हैं, और चेलों को भी अपडेट रखते हैं। पुराने टाइप की चिरकुटई की बातें करने वाले गुरुजनों की बातें नहीं माननी चाहिए।
इस पर आदेशपालू कहता था-गुरुजी जो भी कहते हैं, चेलों के भले के लिए कहते हैं।
इस पर शंकालु कहता-देखो ये तब की बातें हैं, ट्यूशनबाजी के चक्कर नहीं होते थे। अब गुरुजी अगर चेलों से ट्यूशन पढ़ने के लिए आने के लिए कहते हैं, तो समझो कि अपने भले के लिए कहते हैं। नोट पाने के लिए कहते हैं। गुरुजी अगर तुमसे ज्यादा प्यार दिखायें, तो सतर्क हो जाओ। कहीं ऐसा तो नहीं है कि गुरुजी अपनी कन्या का विवाह तुमसे करवाना चाहते हैं, बिना दहेज के। ये मामला डेंजरस है। सतर्क हो जाना चाहिए।
इस पर आदेशपालू कहता-गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय, बलिहारी गुरु आपकी,गोविंद दियो बताय़ अर्थात हमें गुरु और गोविंद में पहले गुरु को नमस्कार करना चाहिए।
इस पर शंकालु कहता-बात बिलकुल सही है, गुरु और गोविंद में से हमेशा गुरु को नमस्कार करना चाहिए, क्योंकि नंबर तो गुरुजी ने ही देने हैं ना। गोविंद के हाथ में तो प्रेक्टीकल, वाइवा के नंबर होते नहीं हैं। सो गुरु और गोविंद के बीच के मामले में प्रीफरेंस हमेशा गुरु को मिलना चाहिए। हां गुरु और शिक्षामंत्री के बीच चुनना हो, तो शिक्षामंत्री के चरण छूने चाहिए, क्योंकि पढ़ने-लिखने के बाद नौकरी का जुगाड़मेंट करवा पाना गुरुजी के हाथ में नहीं होता। उसके लिए मंत्री के पैर छूने जरुरी हैं।
इस पर आदेशपालू कहता कि नहीं -मैं तो गुरुदेव की बात मानूंगा।
इस पर शंकालु कहता-पछतायेगा।
गुरुदेव ने एक दिवस कहा-हे छात्रो हमेशा शाश्वत साहित्य लिखना और अच्छी-अच्छी बातें लिखना। युवा पीढ़ी को प्रेरित करने वाले संदेश देने वाला साहित्य लिखना। बहुत अच्छी बातें ही लिखना। कभी भी कोई ऐसी-वैसी बातें नहीं लिखना। एकदम आदर्श जीवन के लिए प्रेरित करने वाली बातें लिखना।
आदेशपालू ने वैसा ही किया और कहानी लिखी-आदर्श जीवन जीने की कहानी, जिसमें लिखा गया था, हमेशा हमें प्रातकाल ब्रह्ममुहुर्त में उठना चाहिए। फिर शौच जाकर, फिर व्यायाम करने चाहिए। फिर महापुरुषों को स्मरण करके, समस्त कार्य संपन्न करने चाहिए। फिर सम्यक मात्रा में नाश्ता करना चाहिए, नाश्ते में अंकुरित चने खाने चाहिए। ब्रहमचर्य का पालन करना चाहिए। दिन भर अच्छी-अच्छी बातें करके शाम को घर जाकर दुग्ध पान करना चाहिए। फिर रात्रि में सात बजे खाना खाकर पूजा करके आठ बजे सो जाना चाहिए, क्योंकि अगले दिन चार बजे उठना होता है। इसके अलावा मनुष्य को कुछ नही करना चाहिए। यही आदर्श जीवन है। यही आदर्श जीवन की कहानी है। मानव जीवन का उद्देश्य अंकुरित नाश्ते का सेवन करना है और रात्रि में दुग्धपान करके सो जाना है।
आदेशपालू ने यह कहानी कई पत्रिकाओं में छपने भेजी, सब जगह से ये रिजेक्ट हो कर आ गयी।
उधर शंकालु ने गुरुजी की बात नहीं मानी और एक स्मगलर के जीवन पर आधारित उपन्यास लिखा-रंगीन रातें, संगीन दिन। इसमें स्मगलर के जीवन की कहानी बहुत रोचक तरीके से बतायी गयी थी। इसमें बताया गया था कि उस स्मलगर की किस फिल्म अभिनेत्री से कितनी दोस्ती रही। इस किताब में बताया गया था कि दुबई की तमाम पार्टियों में किस-किस तरह के डांस हुआ करते थे। इस किताब की इतनी डिमांड पैदा हुई कि एक साल में पचास एडीशन छप गये। धुआंधार बिकी यह किताब। इस अकेली किताब ने शंकालु को लखपति बना दिया।
आदेशपालू अपनी पहली कहानी छपवाने के लिए ही तमाम प्रकाशकों, अखबारों के दफ्तरों में घूमता रहा।
उधर शंकालु ने छह महीने में दूसरा उपन्यास लिख मारा-हम आवारा बदनाम गली के, यह उपन्यास भी खूब चला।
इसके बाद शंकालु ने क्रमश-अंडरवर्ल्ड में ए के 47, जान लेकर मानूंगा, कब्र के नीचे की जिंदगी, समुंदर में डकैती, डाकू उर्फ मिनिस्टर, खूनी बंगला, इम्तिहान मुहब्बत का, तेरे संग जीना-उसके संग मरना, ओसामा से टक्कर, जंग इन्साफ की।
ये सारे जासूसी उपन्यास थे, जिसमें शंकालु ने अपनी कलम की धांसू कारीगरी दिखायी थी। इन उपन्यासों को जो भी एक बार लेकर बैठता था, वो फिर इन्हे पढ़कर ही उठता था। इसमें तस्करों, खूनियों की जिंदगी के बारे में विस्तार से बताया जाता था। इसमें किसी जासूसी मिशन के जरिये पाठकों को सिंगापुर और अमेरिका की सैर भी करायी जाती थी।
शंकालु बहुत ही पापुलर हो गया था, वह अपनी मर्सीडीज कार में जब शहर भ्रमण के लिए जा रहा था, तो उसने देखा कि उसका सहपाठी आदेशपालू एक मंदिर के भंडारे की लाइन में लगकर अपने हिस्से के खाने का इंतजार कर रहा है। वह उतरा और आदेशपालू से बात की, तो आदेशपालू ने बताया कि उसकी लिखी पहली कहानी-आदर्श जीवन की कहानी ही नहीं छप पायी है। उसने पूछा हे मित्र तुमने तो बहुत ही चकाचक प्रोग्रेस कर ली।
इस पर शंकालु ने कहा-देखो, अच्छी बातें अच्छी होती हैं, पर बोर होती हैं। दिलचस्प कहानियां बुराई, स्मगलिंग,चोरी डकैती की होती हैं। अपने गुरुजी भी बातें सत्साहित्य की करते थे, पर पढ़ते थे अपराध कथाएं। यानी इंटरेस्ट हमेशा बुरे जीवन की कहानियों में होता है। सो मैंने यही किया, और आज यहां तक पहुंच गया। ऐसे वचन सुनकर आदेशपालू बोला-हे मित्र तुम्हारे सुवचनों को सुनकर मुझे ये शिक्षाएं मिली हैं-
1- कौन क्या कहता है, इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए। कौन क्या करता है, इसे देखना चाहिए। गुरुजी क्या कहते थे, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि वो क्या पढ़ते थे।
2- अच्छी कहानियां, अच्छे लोगों की कहानियां बोर होती हैं। दिलचस्प कहानियां बुरे लोगों की ही होती हैं।
3- पापुलर बनने के लिए जान लेकर मानूंगा, कब्र के नीचे की जिंदगी जैसे उपन्यास ही लिखने चाहिए।

Tuesday, December 06, 2005

प्र-पंचतंत्र
ज्ञान बांटना नहीं चाहिए
आलोक पुराणिक
चालूपुरम् दफ्तर के कर्मचारियों को जैसे ही इंटरनेट की सुविधा दी गयी, उन्होने वही किया, जो अन्य दफ्तरों के कर्मचारी करते हैं यानी इंटरनेट पर ऐसी वैबसाइटों का अवलोकन शुरु किया, जिनमें ऐसे-वैसे किस्म के फोटू होते हैं। कर्मचारियों ने जमकर इस किस्म की वैबसाइटों का भ्रमण किया। एक दिन ऊपर से आदेश आया कि इस बात की तफतीश की जायेगी कि किस कर्मचारी ने इंटरनेट का इस्तेमाल अपने ज्ञानवर्धन के लिए किस तरह से किया है।
साहब, दफ्तर में हड़कंप मच गया, क्योंकि प्रत्येक कर्मचारी के कंप्यूटर में ऐसी वैबसाइटों का पता रिकार्ड हो चुका था। हर कर्मचारी डरा हुआ था कि हाय अब क्या होगा। ऊपर वालों को क्या जवाब देंगे। दफ्तर में दो कर्मचारी ऐसे थे-जिनका कंप्यूटर ज्ञान खासा विशद माना जाता था, एक का नाम था-बांटूराम और दूसरे का नाम था-डांटूराम।
बांटूराम का फंडा था कि ज्ञान बांटो, खुलकर बांटो, क्योंकि पुरानी कहावत के हिसाब से ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
पर डांटूराम कुछ भी पूछे जाने पर डांटता था, और कहता था कि अगर मैंने अपना ज्ञान तुम्हे दे दिया, तो मेरे पास क्या रह जायेगा।
खैर साहब दफ्तर के सारे कर्मचारी बांटू और डांटू को ढूंढने लगे। उस दिन बांटू नहीं आया था, सो सारे डांटू के पास आकर कहने लगे-बताइए, प्रभू इस विपत्ति से कैसे पार पायें। कैसे अपने कंप्यूटर में रिकार्ड हुई वैबसाइटों को हटायें। कृपया बतायें कि कंप्यूटर से ऐसी वैबसाइटों को कैसे हटायें।
डांटू ने सबको डांटा और कहा –पता है, तुम्हे ऊपर वाले बास लोगों को इनके बारे में पता लग गया, तो क्या होगा। पता लगते ही सबकी नौकरी चली जायेगी।
डांटू के ऐसे वचन सुनते ही सारे कर्मचारी और डर गये और बोले-हे सर, आप ही हैं, जो हमें इस बवाल से छुटकारा दिलवा सकते हैं। आप हमें बता दें कि कैसे कंप्यूटर में दर्ज रिकार्ड को डिलीट किया जाये।
डांटू इस पर बोला-शटअप, चुपचाप दफ्तर से बाहर हो जाओ और हरेक बंदा अपनी नौकरी बचाने के लिए सिर्फ एक हजार रुपये मुझे दे। मैं सब ठीक कर दूंगा।
ज्यादातर ने एक हजार रुपये दे दिये। कुछ की जेब में नहीं थे, सो उन्होने कल रुपये लाकर काम करवाने का वादा किया।
डांटू ने फिर चुपचाप से कंप्यूटरों में कुछ कमांड दीं और कंप्यूटरों में पुरानी वैबसाइटों का रिकार्ड उड़ गया। कर्मचारी खुश हुए।
अगले दिन दफ्तर में बांटू भी आ गया, और जो कर्मचारी पिछले दिन कार्रवाई नहीं करवा पाये थे, वो आज बांटू के पास आकर बोले, सर कल तो डांटू ने एक हजार रुपये लेकर कुछ कर्मचारियों की प्राबलम साल्व की है। आप बताइए कि आप क्या कुछ कम में राजी हो जायेंगे।
बांटू भलमनसाहत का मारा बोला, अरे मैं तो अपने साथियों को एक मिनट में बता देता हूं कि पुराना रिकार्ड कैसे उड़ाया जाये।
बांटू ने एक मिनट में कमांड सबको बता दी। बचे हुए कर्मचारियों ने अपने कंप्यूटर से पुराने रिकार्ड उड़ा दिये।
बांटू की इस हरकत पर डांटू ने उससे कहा-तेरे जैसे लोग ही ज्ञान का मर्यादा का हनन करते हैं और ज्ञान को सस्ता बनाते हैं.
इस पर बांटू ने कहा-पर मैंने तो सुना है कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
यह सुनकर डांटू बोला-अरे बेवकूफ, कुछ नहीं बढ़ता है, बल्कि सम्मान घटता है। ज्ञान बेचना चाहिए, इससे सम्मान भी बढ़ता है और नोट भी बढ़ते हैं। देख, तूने पूरा ज्ञान एक ही बारे में इन कर्मचारियों को दे दिया है सो अगली बार कर्मचारी न तेरे पास आयेंगे न मेरे पास। खुद ही कमांड देकर रिकार्ड उड़ा देंगे। न मैं हजारों कमा पाऊंगा न तेरे पास ये सम्मान-निवेदन के साथ आयेंगे। ज्ञान को गुप्त न रखने और उसे न बेचने वाले की दशा संत मुफ्तानंद जैसी होती है, जो अपने ही शिष्य नोटानंद से मात खा गया था।
मुफ्तानंद और नोटानंद की कहानी कौन सी है, सो कहो-ऐसा कहकर बांटू ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।
एक समय की बात है। चालूप्रस्थ नगरी में मुफ्तानंद नामक एक संत प्रवास करता था। चालूप्रस्थ में लोगों को नींद न आने की बीमारी थी। सो लोग नींद लाने के लिए तरह-तरह के उपाय खोजते थे। ऐसे में पब्लिक की परेशानियां दूर करने के लिए मुफ्तानंद ने मुफ्त योग की शिक्षाएं लगाना शुरु कर दिया। भांति-भांति के योगासन कराके वह लोगों को स्वस्थ नींद के लिए प्रेरित करता था, योग सिखाने के लिए वो कुछ भी नहीं लेता था। चूंकि वो कुछ नहीं लेता था, इसलिए पब्लिक समझती थी कि इसका कोई और उद्देश्य है। ये अभी पैसे नहीं मांग रहा है, बाद में या तो उधार मांगेगा, या फिर चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
नोटानंद पब्लिक की ऐसी मनोवृत्ति भांप गया था, सो उसने एक पावर योग पाउडर नामक आइटम इजाद किया और वो पैकेट में भरकर इस बेचने लगा।
नोटानंद सौ रुपये का एक पैकेट बेचता था और दावा करता था कि इस पैकेट के चूर्ण को पानी में घोलकर मिठाई के साथ खाने पर नींद आ जाती है। धीरे-धीरे नोटानंद के ग्राहकों की संख्या बढ़ती गयी और मुफ्तानंद की मुफ्त योग कक्षाएं ढप हो गयीं।
पब्लिक ने उसका पाऊडर टैस्ट करना शुरु किया तो वाकई में नींद आने लगी। बहुत तेजी से नोटानंद ने नोट कमाये। वास्तव में वह पाऊडर भंग का चूर्ण था। एक बार इस तरह से नोट कमाने के बाद नोटानंद ने कहा कि अब वह सिर्फ योगासनों पर ध्यान केंद्रित करेगा-और फाइव स्टार होटलों में पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नामक कार्यक्रमों से लाखों रुपये महीने के कमाने लगा। उधर मुफ्तानंद फ्रस्टेट होकर अर्धपागलों की अवस्था में इधर-उधर भटकने लगा।
यह कहानी सुनकर बांटू बोला-हे मित्र तुम्हारी कथा सुनकर मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है, और तुम्हारी कहानी से मुझे ये शिक्षाएं मिली हैं-
1- ज्ञान मुफ्त में बांटने से वैल्यू कम हो जाती है। मुफ्त की चीज पाकर लोग समझते हैं कि जरुर इसमें कोई राज है। मुफ्त देने वाला या तो कुछ समय बाद उधार मांगेगा या चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
2- दफ्तर में कंप्यूटर का पूरा ज्ञान किसी को नहीं देना चाहिए।
3- मुफ्त की योग कक्षाएं लगाने के बजाय पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नाम के पैकेज फाइव स्टार होटलों में चलाने चाहिए।
4- ज्ञान बांटना नहीं चाहिए, सिर्फ बेचना चाहिए, वो भी पूरा नहीं।
प्र-पंचतंत्र
ज्ञान बांटना नहीं चाहिए
आलोक पुराणिक
चालूपुरम् दफ्तर के कर्मचारियों को जैसे ही इंटरनेट की सुविधा दी गयी, उन्होने वही किया, जो अन्य दफ्तरों के कर्मचारी करते हैं यानी इंटरनेट पर ऐसी वैबसाइटों का अवलोकन शुरु किया, जिनमें ऐसे-वैसे किस्म के फोटू होते हैं। कर्मचारियों ने जमकर इस किस्म की वैबसाइटों का भ्रमण किया। एक दिन ऊपर से आदेश आया कि इस बात की तफतीश की जायेगी कि किस कर्मचारी ने इंटरनेट का इस्तेमाल अपने ज्ञानवर्धन के लिए किस तरह से किया है।
साहब, दफ्तर में हड़कंप मच गया, क्योंकि प्रत्येक कर्मचारी के कंप्यूटर में ऐसी वैबसाइटों का पता रिकार्ड हो चुका था। हर कर्मचारी डरा हुआ था कि हाय अब क्या होगा। ऊपर वालों को क्या जवाब देंगे। दफ्तर में दो कर्मचारी ऐसे थे-जिनका कंप्यूटर ज्ञान खासा विशद माना जाता था, एक का नाम था-बांटूराम और दूसरे का नाम था-डांटूराम।
बांटूराम का फंडा था कि ज्ञान बांटो, खुलकर बांटो, क्योंकि पुरानी कहावत के हिसाब से ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
पर डांटूराम कुछ भी पूछे जाने पर डांटता था, और कहता था कि अगर मैंने अपना ज्ञान तुम्हे दे दिया, तो मेरे पास क्या रह जायेगा।
खैर साहब दफ्तर के सारे कर्मचारी बांटू और डांटू को ढूंढने लगे। उस दिन बांटू नहीं आया था, सो सारे डांटू के पास आकर कहने लगे-बताइए, प्रभू इस विपत्ति से कैसे पार पायें। कैसे अपने कंप्यूटर में रिकार्ड हुई वैबसाइटों को हटायें। कृपया बतायें कि कंप्यूटर से ऐसी वैबसाइटों को कैसे हटायें।
डांटू ने सबको डांटा और कहा –पता है, तुम्हे ऊपर वाले बास लोगों को इनके बारे में पता लग गया, तो क्या होगा। पता लगते ही सबकी नौकरी चली जायेगी।
डांटू के ऐसे वचन सुनते ही सारे कर्मचारी और डर गये और बोले-हे सर, आप ही हैं, जो हमें इस बवाल से छुटकारा दिलवा सकते हैं। आप हमें बता दें कि कैसे कंप्यूटर में दर्ज रिकार्ड को डिलीट किया जाये।
डांटू इस पर बोला-शटअप, चुपचाप दफ्तर से बाहर हो जाओ और हरेक बंदा अपनी नौकरी बचाने के लिए सिर्फ एक हजार रुपये मुझे दे। मैं सब ठीक कर दूंगा।
ज्यादातर ने एक हजार रुपये दे दिये। कुछ की जेब में नहीं थे, सो उन्होने कल रुपये लाकर काम करवाने का वादा किया।
डांटू ने फिर चुपचाप से कंप्यूटरों में कुछ कमांड दीं और कंप्यूटरों में पुरानी वैबसाइटों का रिकार्ड उड़ गया। कर्मचारी खुश हुए।
अगले दिन दफ्तर में बांटू भी आ गया, और जो कर्मचारी पिछले दिन कार्रवाई नहीं करवा पाये थे, वो आज बांटू के पास आकर बोले, सर कल तो डांटू ने एक हजार रुपये लेकर कुछ कर्मचारियों की प्राबलम साल्व की है। आप बताइए कि आप क्या कुछ कम में राजी हो जायेंगे।
बांटू भलमनसाहत का मारा बोला, अरे मैं तो अपने साथियों को एक मिनट में बता देता हूं कि पुराना रिकार्ड कैसे उड़ाया जाये।
बांटू ने एक मिनट में कमांड सबको बता दी। बचे हुए कर्मचारियों ने अपने कंप्यूटर से पुराने रिकार्ड उड़ा दिये।
बांटू की इस हरकत पर डांटू ने उससे कहा-तेरे जैसे लोग ही ज्ञान का मर्यादा का हनन करते हैं और ज्ञान को सस्ता बनाते हैं.
इस पर बांटू ने कहा-पर मैंने तो सुना है कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
यह सुनकर डांटू बोला-अरे बेवकूफ, कुछ नहीं बढ़ता है, बल्कि सम्मान घटता है। ज्ञान बेचना चाहिए, इससे सम्मान भी बढ़ता है और नोट भी बढ़ते हैं। देख, तूने पूरा ज्ञान एक ही बारे में इन कर्मचारियों को दे दिया है सो अगली बार कर्मचारी न तेरे पास आयेंगे न मेरे पास। खुद ही कमांड देकर रिकार्ड उड़ा देंगे। न मैं हजारों कमा पाऊंगा न तेरे पास ये सम्मान-निवेदन के साथ आयेंगे। ज्ञान को गुप्त न रखने और उसे न बेचने वाले की दशा संत मुफ्तानंद जैसी होती है, जो अपने ही शिष्य नोटानंद से मात खा गया था।
मुफ्तानंद और नोटानंद की कहानी कौन सी है, सो कहो-ऐसा कहकर बांटू ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।
एक समय की बात है। चालूप्रस्थ नगरी में मुफ्तानंद नामक एक संत प्रवास करता था। चालूप्रस्थ में लोगों को नींद न आने की बीमारी थी। सो लोग नींद लाने के लिए तरह-तरह के उपाय खोजते थे। ऐसे में पब्लिक की परेशानियां दूर करने के लिए मुफ्तानंद ने मुफ्त योग की शिक्षाएं लगाना शुरु कर दिया। भांति-भांति के योगासन कराके वह लोगों को स्वस्थ नींद के लिए प्रेरित करता था, योग सिखाने के लिए वो कुछ भी नहीं लेता था। चूंकि वो कुछ नहीं लेता था, इसलिए पब्लिक समझती थी कि इसका कोई और उद्देश्य है। ये अभी पैसे नहीं मांग रहा है, बाद में या तो उधार मांगेगा, या फिर चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
नोटानंद पब्लिक की ऐसी मनोवृत्ति भांप गया था, सो उसने एक पावर योग पाउडर नामक आइटम इजाद किया और वो पैकेट में भरकर इस बेचने लगा।
नोटानंद सौ रुपये का एक पैकेट बेचता था और दावा करता था कि इस पैकेट के चूर्ण को पानी में घोलकर मिठाई के साथ खाने पर नींद आ जाती है। धीरे-धीरे नोटानंद के ग्राहकों की संख्या बढ़ती गयी और मुफ्तानंद की मुफ्त योग कक्षाएं ढप हो गयीं।
पब्लिक ने उसका पाऊडर टैस्ट करना शुरु किया तो वाकई में नींद आने लगी। बहुत तेजी से नोटानंद ने नोट कमाये। वास्तव में वह पाऊडर भंग का चूर्ण था। एक बार इस तरह से नोट कमाने के बाद नोटानंद ने कहा कि अब वह सिर्फ योगासनों पर ध्यान केंद्रित करेगा-और फाइव स्टार होटलों में पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नामक कार्यक्रमों से लाखों रुपये महीने के कमाने लगा। उधर मुफ्तानंद फ्रस्टेट होकर अर्धपागलों की अवस्था में इधर-उधर भटकने लगा।
यह कहानी सुनकर बांटू बोला-हे मित्र तुम्हारी कथा सुनकर मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है, और तुम्हारी कहानी से मुझे ये शिक्षाएं मिली हैं-
1- ज्ञान मुफ्त में बांटने से वैल्यू कम हो जाती है। मुफ्त की चीज पाकर लोग समझते हैं कि जरुर इसमें कोई राज है। मुफ्त देने वाला या तो कुछ समय बाद उधार मांगेगा या चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
2- दफ्तर में कंप्यूटर का पूरा ज्ञान किसी को नहीं देना चाहिए।
3- मुफ्त की योग कक्षाएं लगाने के बजाय पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नाम के पैकेज फाइव स्टार होटलों में चलाने चाहिए।
4- ज्ञान बांटना नहीं चाहिए, सिर्फ बेचना चाहिए, वो भी पूरा नहीं।

कथा नंबर चार-साधो ज्ञान न बांटिये

प्र-पंचतंत्र
ज्ञान बांटना नहीं चाहिए
आलोक पुराणिक
चालूपुरम् दफ्तर के कर्मचारियों को जैसे ही इंटरनेट की सुविधा दी गयी, उन्होने वही किया, जो अन्य दफ्तरों के कर्मचारी करते हैं यानी इंटरनेट पर ऐसी वैबसाइटों का अवलोकन शुरु किया, जिनमें ऐसे-वैसे किस्म के फोटू होते हैं। कर्मचारियों ने जमकर इस किस्म की वैबसाइटों का भ्रमण किया। एक दिन ऊपर से आदेश आया कि इस बात की तफतीश की जायेगी कि किस कर्मचारी ने इंटरनेट का इस्तेमाल अपने ज्ञानवर्धन के लिए किस तरह से किया है।
साहब, दफ्तर में हड़कंप मच गया, क्योंकि प्रत्येक कर्मचारी के कंप्यूटर में ऐसी वैबसाइटों का पता रिकार्ड हो चुका था। हर कर्मचारी डरा हुआ था कि हाय अब क्या होगा। ऊपर वालों को क्या जवाब देंगे। दफ्तर में दो कर्मचारी ऐसे थे-जिनका कंप्यूटर ज्ञान खासा विशद माना जाता था, एक का नाम था-बांटूराम और दूसरे का नाम था-डांटूराम।
बांटूराम का फंडा था कि ज्ञान बांटो, खुलकर बांटो, क्योंकि पुरानी कहावत के हिसाब से ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
पर डांटूराम कुछ भी पूछे जाने पर डांटता था, और कहता था कि अगर मैंने अपना ज्ञान तुम्हे दे दिया, तो मेरे पास क्या रह जायेगा।
खैर साहब दफ्तर के सारे कर्मचारी बांटू और डांटू को ढूंढने लगे। उस दिन बांटू नहीं आया था, सो सारे डांटू के पास आकर कहने लगे-बताइए, प्रभू इस विपत्ति से कैसे पार पायें। कैसे अपने कंप्यूटर में रिकार्ड हुई वैबसाइटों को हटायें। कृपया बतायें कि कंप्यूटर से ऐसी वैबसाइटों को कैसे हटायें।
डांटू ने सबको डांटा और कहा –पता है, तुम्हे ऊपर वाले बास लोगों को इनके बारे में पता लग गया, तो क्या होगा। पता लगते ही सबकी नौकरी चली जायेगी।
डांटू के ऐसे वचन सुनते ही सारे कर्मचारी और डर गये और बोले-हे सर, आप ही हैं, जो हमें इस बवाल से छुटकारा दिलवा सकते हैं। आप हमें बता दें कि कैसे कंप्यूटर में दर्ज रिकार्ड को डिलीट किया जाये।
डांटू इस पर बोला-शटअप, चुपचाप दफ्तर से बाहर हो जाओ और हरेक बंदा अपनी नौकरी बचाने के लिए सिर्फ एक हजार रुपये मुझे दे। मैं सब ठीक कर दूंगा।
ज्यादातर ने एक हजार रुपये दे दिये। कुछ की जेब में नहीं थे, सो उन्होने कल रुपये लाकर काम करवाने का वादा किया।
डांटू ने फिर चुपचाप से कंप्यूटरों में कुछ कमांड दीं और कंप्यूटरों में पुरानी वैबसाइटों का रिकार्ड उड़ गया। कर्मचारी खुश हुए।
अगले दिन दफ्तर में बांटू भी आ गया, और जो कर्मचारी पिछले दिन कार्रवाई नहीं करवा पाये थे, वो आज बांटू के पास आकर बोले, सर कल तो डांटू ने एक हजार रुपये लेकर कुछ कर्मचारियों की प्राबलम साल्व की है। आप बताइए कि आप क्या कुछ कम में राजी हो जायेंगे।
बांटू भलमनसाहत का मारा बोला, अरे मैं तो अपने साथियों को एक मिनट में बता देता हूं कि पुराना रिकार्ड कैसे उड़ाया जाये।
बांटू ने एक मिनट में कमांड सबको बता दी। बचे हुए कर्मचारियों ने अपने कंप्यूटर से पुराने रिकार्ड उड़ा दिये।
बांटू की इस हरकत पर डांटू ने उससे कहा-तेरे जैसे लोग ही ज्ञान का मर्यादा का हनन करते हैं और ज्ञान को सस्ता बनाते हैं.
इस पर बांटू ने कहा-पर मैंने तो सुना है कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
यह सुनकर डांटू बोला-अरे बेवकूफ, कुछ नहीं बढ़ता है, बल्कि सम्मान घटता है। ज्ञान बेचना चाहिए, इससे सम्मान भी बढ़ता है और नोट भी बढ़ते हैं। देख, तूने पूरा ज्ञान एक ही बारे में इन कर्मचारियों को दे दिया है सो अगली बार कर्मचारी न तेरे पास आयेंगे न मेरे पास। खुद ही कमांड देकर रिकार्ड उड़ा देंगे। न मैं हजारों कमा पाऊंगा न तेरे पास ये सम्मान-निवेदन के साथ आयेंगे। ज्ञान को गुप्त न रखने और उसे न बेचने वाले की दशा संत मुफ्तानंद जैसी होती है, जो अपने ही शिष्य नोटानंद से मात खा गया था।
मुफ्तानंद और नोटानंद की कहानी कौन सी है, सो कहो-ऐसा कहकर बांटू ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।
एक समय की बात है। चालूप्रस्थ नगरी में मुफ्तानंद नामक एक संत प्रवास करता था। चालूप्रस्थ में लोगों को नींद न आने की बीमारी थी। सो लोग नींद लाने के लिए तरह-तरह के उपाय खोजते थे। ऐसे में पब्लिक की परेशानियां दूर करने के लिए मुफ्तानंद ने मुफ्त योग की शिक्षाएं लगाना शुरु कर दिया। भांति-भांति के योगासन कराके वह लोगों को स्वस्थ नींद के लिए प्रेरित करता था, योग सिखाने के लिए वो कुछ भी नहीं लेता था। चूंकि वो कुछ नहीं लेता था, इसलिए पब्लिक समझती थी कि इसका कोई और उद्देश्य है। ये अभी पैसे नहीं मांग रहा है, बाद में या तो उधार मांगेगा, या फिर चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
नोटानंद पब्लिक की ऐसी मनोवृत्ति भांप गया था, सो उसने एक पावर योग पाउडर नामक आइटम इजाद किया और वो पैकेट में भरकर इस बेचने लगा।
नोटानंद सौ रुपये का एक पैकेट बेचता था और दावा करता था कि इस पैकेट के चूर्ण को पानी में घोलकर मिठाई के साथ खाने पर नींद आ जाती है। धीरे-धीरे नोटानंद के ग्राहकों की संख्या बढ़ती गयी और मुफ्तानंद की मुफ्त योग कक्षाएं ढप हो गयीं।
पब्लिक ने उसका पाऊडर टैस्ट करना शुरु किया तो वाकई में नींद आने लगी। बहुत तेजी से नोटानंद ने नोट कमाये। वास्तव में वह पाऊडर भंग का चूर्ण था। एक बार इस तरह से नोट कमाने के बाद नोटानंद ने कहा कि अब वह सिर्फ योगासनों पर ध्यान केंद्रित करेगा-और फाइव स्टार होटलों में पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नामक कार्यक्रमों से लाखों रुपये महीने के कमाने लगा। उधर मुफ्तानंद फ्रस्टेट होकर अर्धपागलों की अवस्था में इधर-उधर भटकने लगा।
यह कहानी सुनकर बांटू बोला-हे मित्र तुम्हारी कथा सुनकर मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है, और तुम्हारी कहानी से मुझे ये शिक्षाएं मिली हैं-
1- ज्ञान मुफ्त में बांटने से वैल्यू कम हो जाती है। मुफ्त की चीज पाकर लोग समझते हैं कि जरुर इसमें कोई राज है। मुफ्त देने वाला या तो कुछ समय बाद उधार मांगेगा या चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
2- दफ्तर में कंप्यूटर का पूरा ज्ञान किसी को नहीं देना चाहिए।
3- मुफ्त की योग कक्षाएं लगाने के बजाय पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नाम के पैकेज फाइव स्टार होटलों में चलाने चाहिए।
4- ज्ञान बांटना नहीं चाहिए, सिर्फ बेचना चाहिए, वो भी पूरा नहीं।

प्रपंचतंत्र कथा नंबर चार-ज्ञान दबा कर रखना चाहिए

प्र-पंचतंत्र
ज्ञान बांटना नहीं चाहिए
आलोक पुराणिक
चालूपुरम् दफ्तर के कर्मचारियों को जैसे ही इंटरनेट की सुविधा दी गयी, उन्होने वही किया, जो अन्य दफ्तरों के कर्मचारी करते हैं यानी इंटरनेट पर ऐसी वैबसाइटों का अवलोकन शुरु किया, जिनमें ऐसे-वैसे किस्म के फोटू होते हैं। कर्मचारियों ने जमकर इस किस्म की वैबसाइटों का भ्रमण किया। एक दिन ऊपर से आदेश आया कि इस बात की तफतीश की जायेगी कि किस कर्मचारी ने इंटरनेट का इस्तेमाल अपने ज्ञानवर्धन के लिए किस तरह से किया है।
साहब, दफ्तर में हड़कंप मच गया, क्योंकि प्रत्येक कर्मचारी के कंप्यूटर में ऐसी वैबसाइटों का पता रिकार्ड हो चुका था। हर कर्मचारी डरा हुआ था कि हाय अब क्या होगा। ऊपर वालों को क्या जवाब देंगे। दफ्तर में दो कर्मचारी ऐसे थे-जिनका कंप्यूटर ज्ञान खासा विशद माना जाता था, एक का नाम था-बांटूराम और दूसरे का नाम था-डांटूराम।
बांटूराम का फंडा था कि ज्ञान बांटो, खुलकर बांटो, क्योंकि पुरानी कहावत के हिसाब से ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
पर डांटूराम कुछ भी पूछे जाने पर डांटता था, और कहता था कि अगर मैंने अपना ज्ञान तुम्हे दे दिया, तो मेरे पास क्या रह जायेगा।
खैर साहब दफ्तर के सारे कर्मचारी बांटू और डांटू को ढूंढने लगे। उस दिन बांटू नहीं आया था, सो सारे डांटू के पास आकर कहने लगे-बताइए, प्रभू इस विपत्ति से कैसे पार पायें। कैसे अपने कंप्यूटर में रिकार्ड हुई वैबसाइटों को हटायें। कृपया बतायें कि कंप्यूटर से ऐसी वैबसाइटों को कैसे हटायें।
डांटू ने सबको डांटा और कहा –पता है, तुम्हे ऊपर वाले बास लोगों को इनके बारे में पता लग गया, तो क्या होगा। पता लगते ही सबकी नौकरी चली जायेगी।
डांटू के ऐसे वचन सुनते ही सारे कर्मचारी और डर गये और बोले-हे सर, आप ही हैं, जो हमें इस बवाल से छुटकारा दिलवा सकते हैं। आप हमें बता दें कि कैसे कंप्यूटर में दर्ज रिकार्ड को डिलीट किया जाये।
डांटू इस पर बोला-शटअप, चुपचाप दफ्तर से बाहर हो जाओ और हरेक बंदा अपनी नौकरी बचाने के लिए सिर्फ एक हजार रुपये मुझे दे। मैं सब ठीक कर दूंगा।
ज्यादातर ने एक हजार रुपये दे दिये। कुछ की जेब में नहीं थे, सो उन्होने कल रुपये लाकर काम करवाने का वादा किया।
डांटू ने फिर चुपचाप से कंप्यूटरों में कुछ कमांड दीं और कंप्यूटरों में पुरानी वैबसाइटों का रिकार्ड उड़ गया। कर्मचारी खुश हुए।
अगले दिन दफ्तर में बांटू भी आ गया, और जो कर्मचारी पिछले दिन कार्रवाई नहीं करवा पाये थे, वो आज बांटू के पास आकर बोले, सर कल तो डांटू ने एक हजार रुपये लेकर कुछ कर्मचारियों की प्राबलम साल्व की है। आप बताइए कि आप क्या कुछ कम में राजी हो जायेंगे।
बांटू भलमनसाहत का मारा बोला, अरे मैं तो अपने साथियों को एक मिनट में बता देता हूं कि पुराना रिकार्ड कैसे उड़ाया जाये।
बांटू ने एक मिनट में कमांड सबको बता दी। बचे हुए कर्मचारियों ने अपने कंप्यूटर से पुराने रिकार्ड उड़ा दिये।
बांटू की इस हरकत पर डांटू ने उससे कहा-तेरे जैसे लोग ही ज्ञान का मर्यादा का हनन करते हैं और ज्ञान को सस्ता बनाते हैं.
इस पर बांटू ने कहा-पर मैंने तो सुना है कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
यह सुनकर डांटू बोला-अरे बेवकूफ, कुछ नहीं बढ़ता है, बल्कि सम्मान घटता है। ज्ञान बेचना चाहिए, इससे सम्मान भी बढ़ता है और नोट भी बढ़ते हैं। देख, तूने पूरा ज्ञान एक ही बारे में इन कर्मचारियों को दे दिया है सो अगली बार कर्मचारी न तेरे पास आयेंगे न मेरे पास। खुद ही कमांड देकर रिकार्ड उड़ा देंगे। न मैं हजारों कमा पाऊंगा न तेरे पास ये सम्मान-निवेदन के साथ आयेंगे। ज्ञान को गुप्त न रखने और उसे न बेचने वाले की दशा संत मुफ्तानंद जैसी होती है, जो अपने ही शिष्य नोटानंद से मात खा गया था।
मुफ्तानंद और नोटानंद की कहानी कौन सी है, सो कहो-ऐसा कहकर बांटू ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।
एक समय की बात है। चालूप्रस्थ नगरी में मुफ्तानंद नामक एक संत प्रवास करता था। चालूप्रस्थ में लोगों को नींद न आने की बीमारी थी। सो लोग नींद लाने के लिए तरह-तरह के उपाय खोजते थे। ऐसे में पब्लिक की परेशानियां दूर करने के लिए मुफ्तानंद ने मुफ्त योग की शिक्षाएं लगाना शुरु कर दिया। भांति-भांति के योगासन कराके वह लोगों को स्वस्थ नींद के लिए प्रेरित करता था, योग सिखाने के लिए वो कुछ भी नहीं लेता था। चूंकि वो कुछ नहीं लेता था, इसलिए पब्लिक समझती थी कि इसका कोई और उद्देश्य है। ये अभी पैसे नहीं मांग रहा है, बाद में या तो उधार मांगेगा, या फिर चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
नोटानंद पब्लिक की ऐसी मनोवृत्ति भांप गया था, सो उसने एक पावर योग पाउडर नामक आइटम इजाद किया और वो पैकेट में भरकर इस बेचने लगा।
नोटानंद सौ रुपये का एक पैकेट बेचता था और दावा करता था कि इस पैकेट के चूर्ण को पानी में घोलकर मिठाई के साथ खाने पर नींद आ जाती है। धीरे-धीरे नोटानंद के ग्राहकों की संख्या बढ़ती गयी और मुफ्तानंद की मुफ्त योग कक्षाएं ढप हो गयीं।
पब्लिक ने उसका पाऊडर टैस्ट करना शुरु किया तो वाकई में नींद आने लगी। बहुत तेजी से नोटानंद ने नोट कमाये। वास्तव में वह पाऊडर भंग का चूर्ण था। एक बार इस तरह से नोट कमाने के बाद नोटानंद ने कहा कि अब वह सिर्फ योगासनों पर ध्यान केंद्रित करेगा-और फाइव स्टार होटलों में पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नामक कार्यक्रमों से लाखों रुपये महीने के कमाने लगा। उधर मुफ्तानंद फ्रस्टेट होकर अर्धपागलों की अवस्था में इधर-उधर भटकने लगा।
यह कहानी सुनकर बांटू बोला-हे मित्र तुम्हारी कथा सुनकर मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है, और तुम्हारी कहानी से मुझे ये शिक्षाएं मिली हैं-
1- ज्ञान मुफ्त में बांटने से वैल्यू कम हो जाती है। मुफ्त की चीज पाकर लोग समझते हैं कि जरुर इसमें कोई राज है। मुफ्त देने वाला या तो कुछ समय बाद उधार मांगेगा या चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
2- दफ्तर में कंप्यूटर का पूरा ज्ञान किसी को नहीं देना चाहिए।
3- मुफ्त की योग कक्षाएं लगाने के बजाय पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नाम के पैकेज फाइव स्टार होटलों में चलाने चाहिए।
4- ज्ञान बांटना नहीं चाहिए, सिर्फ बेचना चाहिए, वो भी पूरा नहीं।

प्रपंचतंत्र कथा नंबर चार- ज्ञान वितरण की कथा

प्र-पंचतंत्र
ज्ञान बांटना नहीं चाहिए
आलोक पुराणिक
चालूपुरम् दफ्तर के कर्मचारियों को जैसे ही इंटरनेट की सुविधा दी गयी, उन्होने वही किया, जो अन्य दफ्तरों के कर्मचारी करते हैं यानी इंटरनेट पर ऐसी वैबसाइटों का अवलोकन शुरु किया, जिनमें ऐसे-वैसे किस्म के फोटू होते हैं। कर्मचारियों ने जमकर इस किस्म की वैबसाइटों का भ्रमण किया। एक दिन ऊपर से आदेश आया कि इस बात की तफतीश की जायेगी कि किस कर्मचारी ने इंटरनेट का इस्तेमाल अपने ज्ञानवर्धन के लिए किस तरह से किया है।
साहब, दफ्तर में हड़कंप मच गया, क्योंकि प्रत्येक कर्मचारी के कंप्यूटर में ऐसी वैबसाइटों का पता रिकार्ड हो चुका था। हर कर्मचारी डरा हुआ था कि हाय अब क्या होगा। ऊपर वालों को क्या जवाब देंगे। दफ्तर में दो कर्मचारी ऐसे थे-जिनका कंप्यूटर ज्ञान खासा विशद माना जाता था, एक का नाम था-बांटूराम और दूसरे का नाम था-डांटूराम।
बांटूराम का फंडा था कि ज्ञान बांटो, खुलकर बांटो, क्योंकि पुरानी कहावत के हिसाब से ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
पर डांटूराम कुछ भी पूछे जाने पर डांटता था, और कहता था कि अगर मैंने अपना ज्ञान तुम्हे दे दिया, तो मेरे पास क्या रह जायेगा।
खैर साहब दफ्तर के सारे कर्मचारी बांटू और डांटू को ढूंढने लगे। उस दिन बांटू नहीं आया था, सो सारे डांटू के पास आकर कहने लगे-बताइए, प्रभू इस विपत्ति से कैसे पार पायें। कैसे अपने कंप्यूटर में रिकार्ड हुई वैबसाइटों को हटायें। कृपया बतायें कि कंप्यूटर से ऐसी वैबसाइटों को कैसे हटायें।
डांटू ने सबको डांटा और कहा –पता है, तुम्हे ऊपर वाले बास लोगों को इनके बारे में पता लग गया, तो क्या होगा। पता लगते ही सबकी नौकरी चली जायेगी।
डांटू के ऐसे वचन सुनते ही सारे कर्मचारी और डर गये और बोले-हे सर, आप ही हैं, जो हमें इस बवाल से छुटकारा दिलवा सकते हैं। आप हमें बता दें कि कैसे कंप्यूटर में दर्ज रिकार्ड को डिलीट किया जाये।
डांटू इस पर बोला-शटअप, चुपचाप दफ्तर से बाहर हो जाओ और हरेक बंदा अपनी नौकरी बचाने के लिए सिर्फ एक हजार रुपये मुझे दे। मैं सब ठीक कर दूंगा।
ज्यादातर ने एक हजार रुपये दे दिये। कुछ की जेब में नहीं थे, सो उन्होने कल रुपये लाकर काम करवाने का वादा किया।
डांटू ने फिर चुपचाप से कंप्यूटरों में कुछ कमांड दीं और कंप्यूटरों में पुरानी वैबसाइटों का रिकार्ड उड़ गया। कर्मचारी खुश हुए।
अगले दिन दफ्तर में बांटू भी आ गया, और जो कर्मचारी पिछले दिन कार्रवाई नहीं करवा पाये थे, वो आज बांटू के पास आकर बोले, सर कल तो डांटू ने एक हजार रुपये लेकर कुछ कर्मचारियों की प्राबलम साल्व की है। आप बताइए कि आप क्या कुछ कम में राजी हो जायेंगे।
बांटू भलमनसाहत का मारा बोला, अरे मैं तो अपने साथियों को एक मिनट में बता देता हूं कि पुराना रिकार्ड कैसे उड़ाया जाये।
बांटू ने एक मिनट में कमांड सबको बता दी। बचे हुए कर्मचारियों ने अपने कंप्यूटर से पुराने रिकार्ड उड़ा दिये।
बांटू की इस हरकत पर डांटू ने उससे कहा-तेरे जैसे लोग ही ज्ञान का मर्यादा का हनन करते हैं और ज्ञान को सस्ता बनाते हैं.
इस पर बांटू ने कहा-पर मैंने तो सुना है कि ज्ञान बांटने से बढ़ता है।
यह सुनकर डांटू बोला-अरे बेवकूफ, कुछ नहीं बढ़ता है, बल्कि सम्मान घटता है। ज्ञान बेचना चाहिए, इससे सम्मान भी बढ़ता है और नोट भी बढ़ते हैं। देख, तूने पूरा ज्ञान एक ही बारे में इन कर्मचारियों को दे दिया है सो अगली बार कर्मचारी न तेरे पास आयेंगे न मेरे पास। खुद ही कमांड देकर रिकार्ड उड़ा देंगे। न मैं हजारों कमा पाऊंगा न तेरे पास ये सम्मान-निवेदन के साथ आयेंगे। ज्ञान को गुप्त न रखने और उसे न बेचने वाले की दशा संत मुफ्तानंद जैसी होती है, जो अपने ही शिष्य नोटानंद से मात खा गया था।
मुफ्तानंद और नोटानंद की कहानी कौन सी है, सो कहो-ऐसा कहकर बांटू ने अपनी जिज्ञासा प्रकट की।
एक समय की बात है। चालूप्रस्थ नगरी में मुफ्तानंद नामक एक संत प्रवास करता था। चालूप्रस्थ में लोगों को नींद न आने की बीमारी थी। सो लोग नींद लाने के लिए तरह-तरह के उपाय खोजते थे। ऐसे में पब्लिक की परेशानियां दूर करने के लिए मुफ्तानंद ने मुफ्त योग की शिक्षाएं लगाना शुरु कर दिया। भांति-भांति के योगासन कराके वह लोगों को स्वस्थ नींद के लिए प्रेरित करता था, योग सिखाने के लिए वो कुछ भी नहीं लेता था। चूंकि वो कुछ नहीं लेता था, इसलिए पब्लिक समझती थी कि इसका कोई और उद्देश्य है। ये अभी पैसे नहीं मांग रहा है, बाद में या तो उधार मांगेगा, या फिर चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
नोटानंद पब्लिक की ऐसी मनोवृत्ति भांप गया था, सो उसने एक पावर योग पाउडर नामक आइटम इजाद किया और वो पैकेट में भरकर इस बेचने लगा।
नोटानंद सौ रुपये का एक पैकेट बेचता था और दावा करता था कि इस पैकेट के चूर्ण को पानी में घोलकर मिठाई के साथ खाने पर नींद आ जाती है। धीरे-धीरे नोटानंद के ग्राहकों की संख्या बढ़ती गयी और मुफ्तानंद की मुफ्त योग कक्षाएं ढप हो गयीं।
पब्लिक ने उसका पाऊडर टैस्ट करना शुरु किया तो वाकई में नींद आने लगी। बहुत तेजी से नोटानंद ने नोट कमाये। वास्तव में वह पाऊडर भंग का चूर्ण था। एक बार इस तरह से नोट कमाने के बाद नोटानंद ने कहा कि अब वह सिर्फ योगासनों पर ध्यान केंद्रित करेगा-और फाइव स्टार होटलों में पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नामक कार्यक्रमों से लाखों रुपये महीने के कमाने लगा। उधर मुफ्तानंद फ्रस्टेट होकर अर्धपागलों की अवस्था में इधर-उधर भटकने लगा।
यह कहानी सुनकर बांटू बोला-हे मित्र तुम्हारी कथा सुनकर मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है, और तुम्हारी कहानी से मुझे ये शिक्षाएं मिली हैं-
1- ज्ञान मुफ्त में बांटने से वैल्यू कम हो जाती है। मुफ्त की चीज पाकर लोग समझते हैं कि जरुर इसमें कोई राज है। मुफ्त देने वाला या तो कुछ समय बाद उधार मांगेगा या चुनाव में खड़े होकर वोट मांगेगा।
2- दफ्तर में कंप्यूटर का पूरा ज्ञान किसी को नहीं देना चाहिए।
3- मुफ्त की योग कक्षाएं लगाने के बजाय पावर योगा, एक्जीक्यूटिव योगा नाम के पैकेज फाइव स्टार होटलों में चलाने चाहिए।
4- ज्ञान बांटना नहीं चाहिए, सिर्फ बेचना चाहिए, वो भी पूरा नहीं।

Wednesday, November 30, 2005

प्रपंचतंत्र कथा नंबर तीन

प्रपंचतंत्र कथा-3-व्यक्तित्व विकास सीरिज
चुगली मैनेजमेंट की कथाएं
आलोक पुराणिक
जैसा कि सब जानते हैं कि किसी भी दफ्तर में कंप्यूटर काम करते हैं और इंसान भी काम करते हैं। एक हजार कंप्यूटरों को एक साथ किसी कमरे में रख दो, कोई किसी की चुगली नहीं करेगा।
पर यही बात इंसानों के बारे में नहीं कही जा सकती।
सात आदमी भी एक कमरे में हों, तो सात दिन बाद सातों एक दूसरे के बारे में सात तरह की चुगलियां करेंगे।
इस तरह की बातों से धनबटोरनगर के दो नौजवान-अपडेटे और क्लासिकज्ञान बहुत अच्छी तरह से वाकिफ थे।
दोनों को ही पता था कि काम करना नौकरी बचाये रखने के लिए जरुरी होता है, पर प्रोग्रेस के लिए चुगली प्रबंधन चकाचक होना आवश्यक है।
जैसा कि हमेशा ज्ञानी बंदे करते आये हैं, वास्तव में काम की बातों को उन्होने कभी किताबों में नहीं लिखा। चुगली, झूठ बोलना, चंपूगिरी जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर तब ही तो किताबें नहीं पायी जातीं। तो साहब कथा शुरु यों होती है कि अपडेटे और क्लासिकज्ञान दोनों ही अपनी-अपनी तरह से चुगलियां किया करते थे।
क्लासिकज्ञान अपने सीनियर मैनेजर से चुगलियां कुछ इस तरह की किया करता था-
सुना, आपके कंपटीटर गुप्ताजी आपके बारे में क्या कह रहे थे, वो चेयरमैन के सेक्रेट्री से कह रहे थे कि आप दारु पीते हैं और दारु पीकर गाली-गलौज भी करते हैं। आपकी इमेज चौपट कर रहा है।
क्लासिकज्ञान की बात सुनकर सीनियर मैनेजर हूं-हां करते, फिर क्लासिकज्ञान नये सिरे से, चुगली के नये गुंताड़े भिड़ाने में जुट जाता। फिर क्लासिकज्ञान अगली बार आकर बताता-
सुना, आपके कंपटीटर गुप्ताजी आपके बारे में यह कह रहे थे कि आप दफ्तर से कागज-पेंसिल घर ले जाते हैं।
सुना, आपके कंपटीटर गुप्ताजी आपके बारे में ये अफवाह फैला रहे हैं कि आप दफ्तर में आयी नयी कन्या रीटा में बहुत इंटरेस्ट ले रहे हैं, उसका बहुत ध्यान रख रहे हैं। ऊपर तक इसकी चर्चा है।
क्लासिकज्ञान की ऐसी बातें सुनकर सीनियर मैनेजर हूं-हां करते।
क्लासिकज्ञान ने देखा कि वह चुगलीबाजी में मेहनत तो बहुत करता है, पर इसके रिजल्ट वैसे नहीं आते।
उधर अपडेटे का चुगली का अंदाज कुछ इस तरह का था-
पता है आपको दफ्तर में जो नयी लड़की आयी है-रीटा। यह कौन है।
बास पूछते-कौन है।
यह चैयरमैन के साढ़ू की साली है। पर इस बारे में वह नहीं चाहते कि किसी को कुछ बताया जाये।
अच्छा-बास की आंखे चौड़ी हो जातीं।
बास फिर रीटा का अच्छी तरह से ख्याल रखने लगते।
ख्याल रखने का मतलब, उसे बताते कि उसकी एफीशियेंसी का लेवल बहुत तेजी से बढ़ रहा है। आज उसने अपनी रिपोर्ट में सिर्फ पचास गलतियां की हैं, जबकि कल ये पचहत्तर थीं।
अपडेटे कुछ इस अंदाज में चुगली करता-
चेयरमैन का साला विदेश से इस शहर में घूमने आया है। दफ्तर में किसी को पता नहीं है।
अपडेटे की इस खबर पर फौरन बास कार्रवाई करते और चेयरमैन के साले की सेवा में जुट जाते।
अपडेटे किसी दिन बास के पास आकर कहता-सर पता है मैंने ऊपर चेयरमैन के सेक्रेट्री से क्या कहा है।
क्या –बास पूछते।
यही कि आपको देश-विदेश की पचास कंपनियों से नौकरियों के आफर है। बिल गेट्स ने खुद आपको मिलने के लिए न्यूयार्क बुलाया है-अपडेटे बताता।
कुछ दिन बाद यह हुआ यह कि अपडेटे और क्लासिकज्ञान के बास को एक धांसू प्रमोशन देकर कंपनी की न्यूयार्क ब्रांच का चीफ बना दिया गया और उससे कहा गया कि वह अपडेटे या क्लासिकज्ञान किसी एक को अपने साथ आफीसर आन स्पेशल ड्यूटीज बनाकर ले जा सकता है।
बास ने अपडेटे को अपने साथ ले जाने का फैसला किया।
एक दिन मौका देखकर क्लासिकज्ञान ने बास से कहा-सर चुगलियां तो मैं भी करता था। मैं भी आपको तरह-तरह की सूचनाएं देता था, पर आपने मेरे काम की वैल्यू नहीं की। अपडेटे को ही वजन दिया।
इस पर बास ने कहा-देखो, चुगली दो तरह की होती है-एक निगेटिव चुगली और दूसरी पाजिटिव चुगली। निगेटिव चुगली बोले, तो तुम मुझे यही बताते रहे कि कौन क्या मेरे बारे में क्या निगेटिव बोल रहा है। अरे, इंसान है, तो निगेटिव बोलेगा। देखो, हर इंसान आम तौर पर दूसरे के बारे में या तो निगेटिव बोलता है, या निगेटिव बोलने की इच्छा रखता है। पीठ पीछे बोले गये निगेटिव की चिंता नहीं करनी चाहिए। चिंता तब करनी चाहिए, जब आपके पीछे कोई पाजिटिव बोलने लगे। फौरन सतर्क हो जाना चाहिए कि अगला कुछ काम लेकर आयेगा। आजकल लोग किसी के बारे में पाजिटिव दो ही मौकों पर बोलते हैं-एक या तो किसी की श्रद्धांजलि के मौके पर या फिर तब, जब उससे कोई काम निकलवाना हो। सो हे मित्र तुम जो मुझे बताते थे, वो नार्मल बातें थीं, उससे मुझे कुछ फायदा नहीं हुआ। तुमने निगेटिव चुगली की।
पाजिटिव चुगली क्या होती है-क्लासिक ज्ञान से जिज्ञासा प्रस्तुत की।
इस पर बास ने आगे कहा- अपडेटे ने जमाने की लेटेस्ट चाल को समझा और उसने पाजीटिव चुगली पर ध्यान लगाया, यानी उसने ऐसी चुगलीबाजी की, जिससे मुझे फायदा हुआ। उसने ही मुझे बताया कि रीटा चेयरमैन के साढ़ू की साली है। मैंने उसकी सैटिंग की, तो ऊपर मेरी रिपोर्ट सही पहुंची। अपडेटे ने ही हेडक्वार्टर में जाकर अफवाह फैलायी कि मुझे बिल गेट्स ने बुलाया है मीटिंग के लिए। इसके बाद मेरी वैल्यू ऊपर बढ़ गयी। देखो अब के जमाने में मामला रिजल्ट ओरियेंटेड है, यानी पाजिटिव चुगली के ही रिजल्ट मिलते हैं, निगेटिव चुगली के नहीं।
ऐसा सुनकर क्लासिकज्ञान बोला-मुझे आपकी बातों से निम्नलिखित शिक्षाएं मिली हैं-
1-अब कोई किसी के बारे में पाजिटिव दो ही मौकों पर बोलता है, एक जब या तो अगले की श्रद्धांजलि सभा में बोल रहा हो, दूसरे तब, जब अगले से कोई काम निकलवाना हो।
2-सिर्फ चुगली काफी नहीं है, ध्यान निगेटिव नहीं पाजिटिव चुगली पर लगाना चाहिए, बास को अगर आपकी चुगली से फायदा होगा, तब ही वह आपको फायदा करवायेगा।
3-दफ्तर में आने वाली हर नयी कन्या से बहुत ही सम्मान से पेश आयें, वह आपके चेयरमैन के साढ़ू की साली हो सकती है।