भारत मल्होत्रा
परेश रावल एक संपूर्ण अभिनेता हैं और आज के सिनेमाई दौर की नब्ज को जानते हुए उन्होंने सितारा हैसियत भी हासिल कर ली है। हाल ही में रिलीज हुई 'ओह माई गॉड' में परेश ने नास्तिक इंसान की भूमिका इस खूबसूरती के साथ निभाई है कि देखने वाले कितना ही धार्मिक क्यों न हो, एक बार को सोच में जरूर पड़ जाता है। यह फिल्म मन के भीतर बैठे भगवान के डर को हटाकर वहां प्रेम स्थापित करने का प्रयास करती है।
कहा जाता है कि एक अभिनेता की वास्तविक परख तब होती है जब वह अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलता है। वह ऐसी भूमिकाएं स्वीकार करता है जो उसकी सिनेमाई छवि के उलट जाती हों। विभिन्न किरदारों को वह किस तरह निभा पाता है यही उसकी अभिनय क्षमता की असली परख होती है। और परेश रावल इस कसौटी पर पूरी तरह सही उतरते हैं। वह 'सरदार' में सरदार पटेल की भूमिका इस रवानगी के साथ निभाते हैं कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठते हैं। रंगमंच की भट्टी में तपकर परेश रावल ने अपने अभिनय को कुंदन की तरह निखारा है। तभी तो दौड़ का विलेन हो या 'हेरा-फेरी' का बाबू भैया, परेश हर किरादार को जीवंत कर देते हैं। यह उनकी अभिनय क्षमता का ही कमाल है कि हर भूमिका को वे बड़ी सहजता के साथ निभा जाते हैं और यही उनकी सबसे बड़ी खूबी भी है।
30 मई, 1950 को अहमदाबाद में परेश रावल का जन्म हुआ। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने बतौर सिविल इंजीनियर काम करना शुरू किया। लेकिन मन इमारतें बनाने की बजाए अदाकारी के महल बनाने में रमा रहा। अपने इन सपनों को वास्तविकता के धरातल पर उतारने के लिए उन्होंने अहमदाबाद से मुंबई का रुख किया। एक्टिंग और कला के अपने शौक को उन्होंने रंगमंच पर पूरा किया। यहीं दुनिया उनकी प्रतिभा से रूबरू हुई। उन्हें काम करता देख ही उन्हें फिल्मों में करियर बनाने की सलाह दी। परेश भी इस सलाह को मानकर फिल्मों में अपना मुकाम बनाने की जुगत में लग गए।
लेकिन, फिल्मी दुनिया ने उनका लाल कालीन बिछाकर स्वागत नहीं किया। मेहनत करनी पडी़... कड़ी मेहनत। लेकिन, कहते हैं कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाती। और ऐसा ही परेश रावल के साथ भी हुआ। काफी स्ट्रगल करने के बाद उन्हें 1984 की फिल्म 'होली' में पहला मौका मिला। इसके बाद ‘हिफाज़त’, ‘दुश्मन का दुश्मन’, ‘लोरी’ और ‘भगवान दादा’ जैसी फिल्मों में भी परेश ने काम किया। लेकिन, इन फिल्मों से परेश को कोई खास फ़ायदा नहीं हुआ।
इसके बाद आई फिल्म 'नाम' (1986) में परेश रावल को खलनायक की भूमिका निभाने का मौका मिला। राजेंद्र कुमार निर्देशित इस फिल्म में परेश को एक नयी पहचान दी। दर्शकों को उनका काम पसंद आया। परेश भी यह जान गए कि शायद खलनायक की भूमिका निभाकर ही वह अपना मुकाम हासिल कर सकते हैं। 90 के दशक में अधिकतर फिल्मों में उन्होंने खलनायक और सहायक अभिनेता की भूमिका अदा की जिसे दर्शकों ने खूब सराहा।
साल 1993 परेश के करियर में बहुत महत्वपूर्ण रहा। इस साल उनकी ‘दामिनी’, ‘आदमी और मुकाबला’ जैसी सुपरहिट फिल्में प्रदर्शित हुईं। फिल्म ‘सर’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला जबकि फिल्म ‘वो छोकरी’ में अपने दमदार अभिनय के लिए वह राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए।
साल 1998 में प्रदर्शित फिल्म ‘तमन्ना’ में परेश ने एक किन्नर का किरदार निभाया। फिल्म आर्थिक रूप से नाकामयाब साबित हुयी, लेकिन परेश का भावपूर्ण अभिनय समीक्षकों के जेहन पर गहरी छाप छोड़ गया।
2000 में आई फिल्म ‘हेराफेरी’ में परेश रावल की अदाकारी का एक नया आयाम देखने को मिला। इस फिल्म में उन्होंने हास्य किरदार निभाया था जिसे खबू पसंद किया। इसके बाद उन्होंने ‘आवारा पागल दीवाना’, ‘हंगामा’, ‘फंटूश’, ‘गरम मसाला’, ‘दीवाने हुए पागल’, ‘मालामाल वीकली’, ‘भागमभाग’, ‘वेलकम’ और ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ जैसी फिल्मों में अपने कॉमेडियन अंदाज से लोगों का दिल जीत लिया।
परेश रावल के अन्दर हर किरदार को खुद में ढाल लेने की क्षमता है जो उन्हें एक बेहतरीन अदाकार बनाती है. आने वाले सालों में भी परेश की कई फिल्में हमें गुदगुदाने को आने वाली हैं।
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