नेता परम होते हैं। निसंदेह। किंतु नेत्री ! उनके बारे में यह कहना अभी ठीक नहीं। नेत्री हैं ही कितनी? सौ-दो सौ लोग मिल जाए तो आराम से उंगलियों पे गिन लें। नेत्री कुछ कुछ 'एक्सक्लूसिव' ख़बर सी हैं, जो आसानी से नहीं मिलती। लेकिन, अब लगता है कि नेत्रियों का टोटा भी दूर होने वाला है। हर गली, हर मुहल्ले और हर बड़े चौराहे पर हाथ जोड़े जनता का अभिवादन करती उनकी खूबसूरत तस्वीरें जल्द दिखायी देंगी। महिलाओं की स्वाभाविक प्रवृत्ति है, जितनी ख़ूबसूरत हैं, उससे सौ गुना हसीन दिखने का प्रयास करना। तो इस नैसर्गिक प्रवृत्ति की वजह से कुछ चौराहों पर दुर्घटनाएं बढ़ सकती हैं। क्यूंकि फोटू में कोई भी नेत्री माधुरी, कैटरीना या प्रियंका से कमतर नज़र नहीं आना चाहेगी।
आप सोच रहे होंगे कि इतनी नेत्रियों की बाढ़ कहां से आने वाली है? तो बात कुछ यूं है कि आईआईएम एक एनजीओ के साथ मिलकर महिलाओं को राजनीति का ककहरा सीखाने जा रहा है। सीधे बोलूं तो करियर ओरिएंटेड कोर्स। इस कोर्स का मकसद राजनेता बनने की इच्छुक महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करना और उन्हें सफल विधायक या सांसद बनाना है।
कोर्स से अपन को बहुत उम्मीदें हैं। 33 फीसदी रिजर्वेशन की मांग के बीच पहले से ही नेत्रियों की फौज तैयार रखना अच्छा है। जिस दिन विधेयक पास, उसी दिन कैंडिडेट्स तैयार। कोई झमेला नहीं। कहां खोजें? किसे नेत्री बनाएं? ऐसे सवाल बेमानी हो लेंगे। चिंता सिर्फ इस बात की है कि कोर्स का सिलेबस कितना व्यवहारिक होगा? राजनीति के भारतीय मैदान में नेत्री बनने और टिकने के लिए परम आवश्यक गुण हैं गालियां सुनने का धैर्य। क्या ये संयम कोर्स में सिखाया जाएगा? राजनीति में सफलता के लिए भ्रष्ट होने के कम से कम 501 तरीकों का ज्ञान भी जरुरी है। यूं सिखाने के लिए ‘विजिटिंग फैकल्टी’ की कोई कमी नहीं है मुल्क में लेकिन क्या सिलेबस में यह पाठ्य है? थूक कर चाटना भी एक कला है। वादा पूरा न करते हुए भी वादा पूरा होने का भ्रम बनाए रखना एक दूसरी कला है। तो इन ललित कलाओं नुमा कलाओं का ज्ञान यहां दिया जाना जरुरी है। झूठ, मक्कारी, चालाकी वगैरह सिखाने के लिए एक-एक चैप्टर जरुर रखा गया होगा, ऐसी अपन को उम्मीद ही नहीं वरन विश्वास है।
कोर्स का सिलेबस धांसू और व्यवहारिक हुआ तो निश्चित रुप से भारतीय नेताओं के जल्द पानी भरने के दिन आ सकते हैं। कोई जनरल, पीएम-सीएम-डीएम पति घर में पत्नी के आगे नहीं टिक पाता तो राजनीति में नेता नेत्री के आगे क्या खाकर टिकेंगे। कोर्स व्यवहारिक नहीं हुआ तो मामला उलझ सकता है। जंगल से खाली हाथ लौटा भूखा शेर जिस तरह खूंखार होता है, वैसा ही कोर्स करने के बावजूद विधायक-सांसद या पार्षद न बन सकी नेत्री भी ख़तरनाक होगी। घर में जमकर राजनीति होगी। यकीकन हाउस वाइफ नेत्री बहुत डेंजरस हो सकती है। और जिस नेत्री ने दस हफ्ते के कोर्स के लिए करीब पांच लाख रुपए फूंके हों तो वो कितनी डेंजरस होगी-इसका हम-आप अभी अंदाजा भी नहीं लगा सकते। अपनी आईआईएम वालों से प्रार्थना है कि कोर्स को प्रैक्टिकल बनाएं।
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