दूरदर्शन पर आपका सीरियल काफी वक्त बाद आ रहा है। अगर मैं गलत हूं तो आप ठीक कर दें। लेकिन, आपको लगता है कि दूरदर्शन पर सीरियल भले अधिक लोगों तक पहुंचे, लेकिन उस तरह की लोकप्रियता नहीं देता, जैसे सेटेलाइट चैनल देते हैं।
देखिये आपकी बात सही है। लेकिन, एक कलाकार होने के नाते मेरा पूरा ध्यान मेरे किरदार पर होता है। जब भी मेरे पास कोई ऑफर आता है तो मैं यह देखता हूं कि कहानी क्या है और मेरा किरदार क्या है। वैसे ही जब इस धारावाहिक की स्क्रिप्ट आयी, मुझे अपना किरदार पसंद आया और मैंने काम करने के लिये हां कर दी। एक कलाकार होने के नाते यही मेरा काम है। इसके बाद कार्यक्रम की लोकप्रियता और टीआरपी फेक्टर का काम चैनल और निर्माता का है। हालांकि यह शो भी लोगों के द्वारा बहुत पसंद किया जा रहा है। बीते दिनों हमने इसकी कामयाबी की एक पार्टी भी की थी।
कर्मयुद्ध में आप मेन लीड में हैं। एक नेता की भूमिका में हैं। क्या रोल है,विस्तार से बताइए। और आपके साथ कौन कौन से कलाकार हैं।
कर्मयुद्ध जैसा कि नाम से ही जाहिर होता है अच्छे और बुरे आदर्शों के बीच की जंग है। इसमें मेरा किरदार एक युवा नेता यशवंत चौहान का है। वह मौजूदा सिस्टम से नाराज है और वह उसमें बदलाव चाहता है। वह जानता है कि राजनेता बदनाम हैं उनकी छवि जनता के दिलों में अच्छी नहीं है। वह उस छवि को बदलना चाहता है। उसके अपने आदर्श हैं और विचार हैं। वह अपने आदर्शों की लड़ाई लड़ता है। अपनी इस जंग में उसके सामने किस तरह की चुनौतियां आती हैं और वह कैसे उसका सामना करता है। यही कहानी है। रोहणी हतंगड़े जी हैं, वैष्णवी मेरी पत्नी का किरदार निभा रही हैं। बाकी जितेंद्र हीरावत और सोनल हैं जो मेरे बच्चों की भूमिका में हैं।
अब वो दौर नहीं है,जब दूरदर्शन पर आपका स्वाभिमान सीरियल आता था या जी टीवी पर हसरतें तो लोग देखते ही थे,क्योंकि उनके पास ज्यादा विकल्प नहीं थे। सीरियल लोगों को पसंद थे, लेकिन विकल्प की कमी भी एक वजह थी। तो ऐसे में कर्मयुद्ध की सबसे बड़ी यूएसपी क्या है।
यह अच्छी बात है कि अब लोगों के पास ज्यादा विकल्प हैं और वे अपनी मर्जी के कार्यक्रम देख सकते हैं। जनता के हाथ में रिमोट है वह जब चाहे वो देख सकती है यह उसका हक़ है। इसकी सबसे बड़ी यूएसपी यही है कि इसमें आदर्शों की कहानी दिखायी गयी है। आजकल मोटे तौर पर इस तरह की कहानियां नजर नहीं आतीं। या तो रिएलटी शो होते हैं या फिर फैमिली ड्रामा।
कर्मयुद्ध में आप एक ईमानदार राजनेता बने हैं, लेकिन राजनीति का वास्तविक चेहरा क्या वाकई में ऐसा है।
हंसते हुये। अब नेताओं की छवि कैसी है, इस पर मेरी टिप्पणी की जरूरत नहीं। यह तो हम सब जानते ही हैं।
आप अमूमन अपनी धीर गंभीर अभिनय के लिए जाने जाते हैं। कॉमेडी में आपकी रुचि नहीं है या रोल नहीं मिले। क्योंकि,आजकल कॉमेडी का बड़ा बाजार है। और फिर,कॉमेडी सर्कस में आपने हिस्सा लिया तो आप लोगों की टीम जल्दी ही बाहर हो गई।
देखिये जहां तक कॉमेडी सर्कस की बात है तो यह शो मैंने जानबूझकर किया। मैने कभी इस तरह की कॉमेडी की भी नहीं थी, तो मैंने सोचा चलो यह भी करके देख लिया जाये। लेकिन, मेरी नजर में यहां फूहड़पन ज्यादा है। जो मेरे बस की बात नहीं है। मुझे लगा यह मैं नहीं सकता सकता। यह सब तजुर्बे के लिये ठीक है, लेकिन यह ऐसा काम नहीं जो मैं लगातार करते रहना चाहूंगा। जहां तक कॉम्पिटीशन से बाहर होने की बात है तो वो सब चलता रहता है। हां, बाकी लोग जो हैं वे बेहरतीन काम कर रहे हैं, खासकर सुदेश और कृष्णा तो बहुत ही अच्छा काम कर रहे हैं।
जब आपकी टीम शो से जल्दी एलिमिनेट हो गयी थी, तो उसके बाद आपके और आपके टीममेट्स के बीच कुछ विवाद भी हुआ था?
देखिये, यह सब होता रहता है। इतनी छोटी-मोटी बातों को लेकर बैठे नहीं रहने चाहिये। मैं बीते हुये विवादों को दोबारा दोहराना नहीं चाहता।
7. सवाल- एक्टिंग के बाद लेखन आपके व्यक्तित्व का एक और नया रूप सामने आया है। ये लेखन का शौक कब लगा।
इसकी शुरुआत ब्लॉग से हुयी थी। जिसे आप एक लोकप्रिय ब्लॉग मान सकते हैं। अच्छे खासे लोग पढ़ लेते हैं उस ब्लॉग को। सिंबालिस पूना एमबीए का एक जाना-माना इंस्टीट्यूट है। उन्होंने ब्लॉग की प्रतियोगिता आयोजित की थी। जिसमें मेरा ब्लॉग टॉप 50 ब्लॉगस में शामिल हुआ। इसमें कुछ नहीं कुछ 30 शॉर्ट स्टोरी हैं। उन्हीं को किताब के शक्ल में पेश किया गया है।
आपकी किताब का शीर्षक बड़ा दिलचस्प है 'चूरण' यह विचार कहां से आया।
जी, इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। किताब का नाम क्या रखा जाये इस पर काफी विचार किया गया। फिर दिमाग में यह नाम 'चूरण' आया। दरअसल, जो तीस शॉर्ट स्टोरीज मैंने लिखी हैं, उनमें जीवन के सभी रंग नजर आते हैं। गम-खुशी, हंसना-रोना और जीवन के सभी खट्टे मीठे स्वाद। तो यह सब स्वाद तो चूरण में ही मिसकते हैं। तो बस कुछ इसी तरह से किताब का नामकरण हुआ।
किताब लिखने के लिये आपने हिन्दी को ही क्यों चुना। जबकि माना जाता है कि हिन्दी किताबों का बड़ा बाजार नहीं है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि मैं हिन्दी में सोचता हूं और इसी जुबान में बात करना पसंद करता हूं। मैं मानता हूं कि अंग्रेजी का बाजार बहुत बड़ा है और शायद अंग्रेजी में किताब लिखने पर इसे ज्यादा प्रसिद्धि भी मिलती। मैं आपको यह भी बता दूं कि जब मैंने अपने ब्लॉग की शुरुआत की तो मैं शुरू में हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में लिखता था। लेकिन, कुछ समय बाद मुझे इस बात का अहसास हो गया कि मैं हिन्दी या यूं कहें कि हिन्दुस्तानी में लिखने में ज्यादा सहज हूं। ऐसा नहीं है कि अंग्रेजी में लिखने या बात करने में मुझे दिक्कत नहीं है, लेकिन हिन्दुस्तानी जबान के साथ अपनापन है। इसमें मैं अपनी बात को ज्यादा असरदायक तरीके से कह सकता हूं। तो, बस मैंने विचार कर लिया कि अब हिन्दी में ही लिखा जायेगा। इसमें मैं अपनी बात ज्यादा भावनात्मकता से कह सकता हूं।
एक्टिंग करते करते आपको डेढ़ दशक से भी ज्यादा हो गया। तो क्या फिल्म बनाने का भी विचार है। या सिर्फ एक्टिंग।
जी, काफी लंबा अर्सा हो गया इस क्षेत्र में। जहां तक डायरेक्शन का सवाल है तो इरादा तो जरूर है, लेकिन फिलवक्त कोई योजना नहीं हैं। हालांकि, मैंने अभी एक आठ-नौ मिनट की एक शॉर्ट फिल्म बनायी है, जिसे जल्द ही मैं समारोहों में भेजने पर भी विचार कर रहा हूं, लेकिन यह एक छोटा सा प्रयास भर है। बाकी फिलहाल तो मेरा ध्यान एक्टिंग पर ही है।
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