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काश! अब मेरे लिए भी रोल लिखे जाएं : पंकज त्रिपाठी

pankaj tripathi interview
गैंग्स ऑफ वासेपुर में सुल्तान के किरदार से चर्चा में आए अभिनेता पंकज त्रिपाठी काफी साल से मुंबई में संघर्षरत हैं। मूलत: बिहार के गोपालगंज से ताल्लुक रखने वाले पंकज को गैंग्स से नयी पहचान मिली है और उन्हें भविष्य में अपने लिए भूमिकाएं लिखे जाने की उम्मीद बंधी से। पंकज के संघर्ष से लेकर सुल्तान की भूमिका मिलने तक कई मुद्दों पर उनसे खास बात की आशीष ने।
                                     
सवाल :- पंकज जी, आपसे पहला सवाल गैंग्स ऑफ वासेपुर से जुड़ा ही करता हूं, जिसकी वजह से आप इन दिनों खासी चर्चा में हैं। फिल्म में सुल्तान का किरदार…जिसे लोगो ने बेहद पसंद किया….वो रोल आपको कैसे मिला?
पंकज :-बहुत ही इंट्रेस्टिंग कहानी है ये…..दरअसल जब मुझे मालूम हुआ कि अनुराग कश्यप एक ऐसी फिल्म बना रहे हैं, जो कोयला माफिया की कहानी बिहार के परिवेश में है तो मैंने भी उनसे संपर्क साधा। उनके एक सहायक श्लोक के पास….तो उन्होंने कहा कि यार कोई ढंग का रोल अब बचा नही है। जो है…वो मैं नहीं चाहता कि आप करें……ढंग का अब कुछ भी नही है…..मैंने कहा चलो ठीक है…..कुछ दिन बाद मुझे एक दूसरी फिल्म की शूटिंग के लिये जैसलमेर जाना था। दुर्गा पूजा का समय था…उस वक्त मैं पत्नी बच्चों के साथ कोलकाता में था। कलकत्ते की दुर्गापूजा……मैं उसको सेलिब्रेट कर रहा था…और वहीं से अगली सुबह मुझे जैसलमेर रवाना होना था। अचानक रात को अनुराग के कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा का फोन आया कि भाई पंकज…..कल ऑडिशन है…ऑफिस आ जा तू….मैंने कहा कि भाई अभी मैं कलकत्ता में हुं…..और कल सुबह जोधपुर जा रहा हूं…..आना संभव नही….आप ऐसा करे की स्क्रिप्ट भेज दें……मेरे खुद के पास हैंडीकैम है……मैं यहां से ऑडिशन करके आपके भेज दूंगा। उन्होंने कहा कि ऐसे नही चलेगा…..तुम्हें खुद आना होगा। मैने कहा भाई मैं कैसे आ पाऊंगा……मेरे निर्माता ने मेरा टिकट कोलकाता टू जोधपुर बना रखा है। उसको कैसे बोलूं कि अब मैं मुंबई जाऊंगा……लेकिन वो नही माना….फिर जैसे तैसे मैं अगली सुबह मुंबई पहुंचा……दिन भर ऑडिशन दिया….और शाम को फिर फ्लाईट लेकर दिल्ली और वहां से जयपुर…..फिर अपने लोकेशन पर……हमने छ सात सीन का ऑडिशन दिया था…….आडिशन के बीच मे एक दफे अनुराग से भी मुलाकात हुई……मैं ऑडिशन दे रहा था…तभी एक आवाज आई…..कैसे हैं सर? मैंने मुड़ के देखा तो सामने अनुराग खड़े थे। मेरे लिये अनुराग से मिलने का ये पहला मौका था…..मैं पहली बार उन्हें देख रखा था……थोडी देर हक्का बक्का रह गया….फिर कहा…अच्छा हूं…….बहुत सम्भाल के…..उन्होंने कहा…अच्छे से देना…..सिर्फ नेचुरल बातचीत करना…एक्टिंग नहीं। मैंने कहा जी…..मैं ट्राई कर रहा हुं…….ये ऑडिशन का दौर रात के आठ बजे तक चला…….मैं भी थक गया था…..ऑडिशन लेने वाले भी थक गये थे……और करने वाला भी……मैं जैसलमेर पहुंचा…तब वहां मुझे खबर मिली….कि मैं सुल्तान का रोल कर रहा हूं…..।

सवाल:-रावण,अग्निपथ,एम.एल ए,गैग्स आफ वासेपुर…..सारी फिल्मों में निगेटिव किरदार…..लगभग एक जैसे किरदार…..तो क्या कभी डर नही लगता…कि टाईप्ड हो जाऊंगा?
पंकज:-हां (कुछ सोचकर) डर तो लगता है……लेकिन क्या है कि……हम एक्टर की जो पहली झलक…..पहली शक्ल लोगो को दिखती है…तो लोग उसे उसी तरह का रोल देना शुरु कर देते है। शुरुआत मे हमारे पास भी च्वाइस नही होती…..क्योंकि सामने से जो रोल मिलते हैं….ऑफर किये जाते हैं……हमे करने पड़ते हैं……हम उस हालात मे नहीं होते कि हम सिलेक्ट कर सकें कि ये करुंगा ये नही करुंगा। शुरुआत के दिनो की बात होती है ये…….तो मै रावण की बात करुं…..तो बहुत बढ़िया था…एक हिजड़े का किरदार था वो…..लेकिन वो फिल्म जब री शूट होने लगी…तो धीरे धीरे वो ट्रिम सा होने लगा…..मेरा भी इंट्रेस्ट जाता रहा…..तो वो लगता है। लेकिन जब आप…..ध्यान से देखेंगे मेरे नेगेटिव किरदार को भी…भले वो आक्रोश का हो…..ओमकारा का…या गैग्स आफ वासेपुर का…..तो उसमे भी आपको वेरियेशन नज़र आयेगा…..मेरा रेंज दिखेगा……एक नावेद अंसारी कर के किरदार था मेरा पाउडर मे…..यशराज का टीवी शो था वो…..तो वो सारे मेरे नेगेटिव किरदार भी हैं तो भी उसमे मेरे अलग अलग शेड्स दिखेंगे आपको……वो ध्यान मैं रखता हूं…कि जब इंड्स्ट्री मुझे इसी तरह की किरदार दे रही है तो उसमे भी मैं अलग अलग रंग ला सकूं…..इतनी बारीकी रखूं हर किरदार में कि…..सब एक दूसरे से अलग नज़र आये……वो कोशिश होती है हमारी।


सवाल:-
फिल्मों मे आने के लिये कैसे इंस्पायर हुये…..और किससे इंस्पायर हुये?
पंकज:-मैं फिल्मो मे आना नहीं चाहता था…..ना कहीं मुझे ग्लैमर से बहुत प्रभाव था। ना मुझे सिनेमा से बहुत ज्यादा लगाव था…..मैं ना बहुत ज्यादा सिनेमा देखता हूं….और ना पहले भी देखा है……उसका मुख्य कारण है कि टीवी सेट अप नही था हमारे पास……और हम जिस बैक ड्राप से है…वहां सिनेमा का बहुत ज्यादा एक्स्पोजर भी नहीं था………तो मैं थियेटर कर रहा था। एनएसडी के बाद पटना मे…..तो वहां……थियेटर मे बड़ा मुश्किल है एक एक्टर के लिये सरवाइव करना। खासकर हिन्दी थियेटर मे……पैसे बिल्कुल नही मिलते है थियेटर मे……तो मेरा एक दोस्त था मुंबई मे……जो मुझे बार बार बोलता था कि तू यार…..सिनेमा के लायक है…..तू वहां कहां अपना नसीब घिस रहा है…….तब तक मै शादी कर चुका था…..मेरे सर पर जिमेदारी आ गई थी……तो मैंने सोंचा कि हां यार कुछ तो ऐसा करना ही पड़ेगा…कि मैं अपने अभिनय से कुछ कमा भी सकूं……..जिससे मेरा घर और मेरा परिवार चल सके…..थियेटर ये सब नही चला पा रहा था…..इस कारण सिनेमा में आया मैं……ये वजह है खास……बाकी ना मुझे ग्लैमर ने खींचा…..ना किसी अभिनेता के अभिनय ने मुझे इंस्पायर किया….ना ही किसी फिल्म ने…….।

सवाल:-
गोपालगंज से मुम्बई तक का सफर…किस तरह का स्ट्रगल करना पड़ा आपको?
पंकज :-बहुत मुश्किल है…….कि हमारे जैसे स्माल टाऊन….स्माल टाऊन भी नही….मेरा तो एकदम गांव है….कि वहां से कोई लड़का निकले…और वो थियेटर करते करते या कुछ और करते करते…..यहां तक आये। सिनेमा मे काम करे…….यहां आने के बाद…शुरुआत के दिन में…इतनी भीड़ है न यहां मुम्बई मे…..खासकर एकटर बनने के लिये…पूरे हिन्दुस्तान से यहां लड़के आते हैं……बहुत टैलेन्टेड भी होते हैं…..और बहुत सारे अनटैलेंटेड भी……मैं अनटैलेंटेड भी नही कहूंग। वो दरअसल तैयारी के साथ नही आते हैं। बहुत सारे लोग बहुत सी तैयारियां कर के आते है…..वो इतनी मेहनत कर के आते है कि हर तरह के किरदार को हर तरह के चुनौतियों का सामना कर सके……बट कुछ प्रिपेयर नही होते…..उन्हें लगता है कि रंग साफ है…..और डांस कर लेता हूं…….तो चलो मुम्बई…..लेकिन मुम्बई में सिर्फ रंग साफ होना….या डांस कर लेने से……अभिनय नही हो जाता……तो उस लाखों की भीड से खुद को निकाल के अलग लाना…कि नही भाई…….मै कुछ कर सकता हुं…..मै भी हूं……ये बहुत बडी लडाई है। यहां कोई आपकी सुनता नही…और ना ही आपके माथे पर लिखा होता है कि आप प्रतिभाशाली हैं या नही है…….तो सौ जगह जाते थे हम लोग। एड फिल्म की ऑडिशन में भी…..कहीं कहीं साफ कहा जाता था…नही भाई आप फिट नही हो…..आप जाओ यहां से……तो काफी संघर्ष था। लेकिन मैं कभी उससे दुखी नही हुआ और ना कभी हताश हुआ। क्योंकि हम हैं…..हमारे अंदर वो माद्दा है लड़ने का। और भी लड़ना होगा दस साल तो लडेंगे….हारने वाले हम हैं नही……

सवाल:
-लेकिन आपके पास एनएसडी का टैग था…तो कितना फायदा मिलता है….आपकी इस ट्रेनिंग का बॉलीवुड मे…?
पंकज :-बॉलीवुड में एनएसडी का होने भर से कोई फायदा नहीं मिलता। शुरुआत में  के काम पाने में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप एनएसडी से हैं या किसी अकादमी से। हां, अगर आप किसी अच्छे फैमिली बैकग्राऊंड से है तो थोड़ा आसान है…….हां जब आपको कोई रोल मिल गया…तो उसे निभाते हुये एनएसडी ट्रेनिंग आपकी थोड़ी मदद करती है। मैं, मेरा परफॉरमेंस….सिगनेचर वाईज थोड़ा अलग हो जायेगा। मैं ये दावे के साथ नही कह रहा….बट शायद ऐसा हो सकता है।

सवाल:
-पहला ब्रेक कब और कैसे मिला?
पंकज :-पहला…...भावना जी की फिल्म थी…भावला तलवार जी की…धरम। पंकज कपूर जी थे उस फिल्म मे…..तो वो स्ट्रगल के दिन थे……जेब मे तस्वीर लेकर दफ्तर दफ्तर घूमने जाने वाला समय…..उन दिनों हार्ड कॉपी का चलन था…..अब तो सब कुछ मेल पर है…..मेल कर दो एक तस्वीर……लेकिन तब….हम हार्ड कापी…जेब में या बैग के अंदर लेकर घूमा करते थे। मैं जुहू गया था एक दफ्तर में…..जहां मैंने ऑफिस मे अपनी एक तस्वीर डाली…और वहां से निकल रहा था। बाहर सीढ़ी पर एक औरत बैठी हुई थी। और मैं अपने अंदाज में…..ऐसे भी हम बिहार वालो का एक ठेठ अंदाज होता है चलने का। मैं वैसे ही चला जा रहा था। तभी उस औरत ने कहा…कि हल्लो…सुनिये। मैने कहा…हां बोलिये? उन्होंने कहा-एकटर है आप? मैंने कहा-हां……..। अच्छा अच्छा…आप यहां ऑडिशन के लिये आये थे…मैंने कहा-नही…..ऑडिशन नही था हमारा….मैंने अपनी एक तस्वीर दी है….अंदर एक बंदा था कोई…….उसने कहा देखते हैं…..तो उस महिला ने कहा…नहीं नहीं…आपके लायक एक किरदार है हमारे पास…..मैं बोलती हूं उस बंदे को वो आपको टेस्ट करेगा….आप वापस अंदर जाइये। मैंने आडिशन दिया…और बाहर निकला…उस महिला ने पुछा…हो गया आपका ऑडिशन? मैंने कहा-जी…हो गया। आप दो मिनट रुकिये…..मैं देख के आती हूं। मैंने सोंचा ये देख कर क्यूं आती है…ये कौन है? फिर वो देखने गई…देख के आई…और मुझसे बोली…आप….आप क्या किये है? मैंने कहा जैसा उस भाई ने बोला वैसा किया हूं……नहीं नहीं वो रोल बिल्कुल वैसा नही है…जैसा आप कर के आये हैं….आप आप कामेडी कर के आये हैं….कॉमेडी नहीं है वो…बड़ा सीरियस सा है वो किरदार…..मैंने कहा…मुझे तो उस भाई ने ऐसा ही करने को कहा था….नहीं नहीं आप चलिये मैं फिर से आपका टेस्ट लेती हूं….मैं इस फिल्म की डायरेक्टर हूं……उन्होंने हाथ मिलाया…मेरा नाम भावना तलवार है…..तब मैं सिरियसली उनको बाहुत ज्यादा रेस्पेक्ट करने लगा…..तब तक मैं उनको भाव नही दे रहा था। लग रहा था कि ऐसे ही कोई होगी…..उसके बाद कई राउंड तक उन्होंने ऑडिशन लिये…..with costume, make up, दूसरे तीसरे दिन…….और तब जाकर पंकज जी के अपोजिट में एक हिन्दुवादी लीडर के किरदार के लिए मुझे चुना गया। उसके बाद मेरा संघर्ष मुम्बई मे शुरु हुआ। वो फिल्म आई…कमर्शियली कुछ बहुत अच्छा नही किया। उस फिल्म को सराहा जरुर गया। लेकिन कोई जानता नही था उस फिल्म के बारे में तो उसके बाद असली लड़ाई शुरु हुई हमारी।

सवाल:
-गोपालगंज में अब तो आप हीरो हो गये होंगे……सब आपको पाहचानते होंगे?
पंकज :-हां…दरअसल इन दिनो तो मैं गया नही हूं वहा पर। लेकिन वहां से मुझे कई फोन आते रहते है…..वहां एक लोकल रेडिओ एफएम है….उन्होंने हमारे गाने…..और टेलिफोनिक बातचीत को इंटरव्यू बनाकर कई बार चलाया। उन लोगों को ये लगता है कि शायद सिनेमा का आदमी आएगा तो वह उजला जगमग करता पैंट शर्ट और लांग बूट पहन के बहुत स्टाइलिश तरीके से निकलेगा….लेकिन मैं वहां जाते जाते……लुंगी पहनकर हाथ मे दातुन लिये…..निकल पडता था गांव में……तो उन्हें यकीन ही नही होता था कि मैं सिनेमा वाला हूं…वो बात करते यार ये नही हो सकता। ये तो कपड़े वपडे सीता होगा वहां हीरोइनो के….ये एक्टर नही हो सकता…..इसमें तो कुछ है ही नही। ये तो ऐसे आम आदमी के जैसा गांव मे घूमता रहता है। लेकिन जब वो लोग कहीं कहीं गाने में…प्रोमो मे….टी वी मे या फिल्मों में देखते थे….या मेरे गांव वाले जो बाहर रहते हैं….कलकता, दिल्ली, मुम्बई,गुजरात….उन्होंने देखा तो वो लोग कहते है…नहीं नहीं ये एक्टिंग ही करता है…हमें दिखता है ये…..।

सवाल:
-फिल्मों से क्या पाने की ख्वाहिश है?
पंकज:-फिल्मों से यार ये पाने की ख्वाहिश है कि लोग अच्छे अभिनेता के तौर पर याद रखें….दो चार परफार्मेंस ऐसे हों कि जब मेरी बेटी बड़ी हो….या आने वाली पीढ़ी जब देखे तो उसको लगे कि हां…कोई एक्टर था।

सवाल:
-किस तरह का रोल करने की चाहत है?
पंकज :-आम आदमी का रोल बस……

सवाल:
-एक्टिंग मे आप किसे रोल माडल मानते है…और क्यों?
पंकज:-बहुत अभिनेता हैं। एक कोई नही है। किसी फिल्म में कोई प्रभावित कर जाता है….किसी मे कोई और। वैसे किरदार ना…जो बहुत ही आम आदमी के हो…कॉमन मैन…..जो बहुत ही साधारण से घटना क्रम मे भी आपको झकझोर कर चला जाये। तो वो रोल मुझे बहुत ही प्रभावित करते है….जैसे कि पान सिंह तोमर का इरफ़ान। कुछ छोटे छोटे पल ऐसे थे कि बिना कुछ किये भी रुला जाता है वो कैरेक्टर…..तो कभी इरफ़ान होते है….कभी पंकज कपूर होते है…..कभी ओम पुरी…..थ्री इडियट मे आमिर खान थे…..शरमन जोशी…..और भी बहुत सारे अभिनेता जो एक एक सीन के लिये भी आते है…..कि जैसे गैग्स आफ मे शाहिद खान की बीवी बनी थी…..मतलब मनोज की मां…तो उसका एक शाट है अब वो तांगे पर बैठ के निकलती है….और कैमरा इधर कही से पैन होकर शाहीद की तरफ़ जा रहा है….बीच मे वो है…..इतना जेनुइन उस औरत ने किया था उस वक्त…मैं नाम नही जानता हूं उनका…मैंने पूछा था….कि यार ये है कहां की…तब पता चला कि वो बनारस की है…..तो वो छू के चली गई मुझे…तो हजारो अभिनेता हैं….मै किन किन का नाम लूं…..कुछ स्टार बन चुके हैं….कुछ बनने के कगार पर है….कुछ पता नही कब बनेंगे…बहुत लोग है।

सवाल:-
आज से पांच साल बाद अपने आप को कहां देखते है आप?
पंकज:-वासेपुर के बाद जैसी प्रतिक्रिया मिली है लोगों की…..क्योंकि अभी तक कोई मुझे देख कर या सोचकर रोल नहीं लिखता था। मुझे लग रहा है कि अब शायद कोई होगा कहीं मुम्बई के….किसी बंद कमरे मे बैठा कोई राइटर…जो शायद सोच रहा होगा मेरे बारे मे……और लिख रहा होगा कि ये रोल वो करेगा। तो शायद पांच साल बाद मेरे लिये कोई रोल कहीं लिखे जा रहे होंगे। या मैं लिखे हुये रोल कर रहा हूंगा…..अभी तक ये होता था कि स्क्रिप्ट मे कोई रोल निकल गया…तो सोचते थे कि यार ये कौन करेगा….किसी अच्छे अभिनेता को ढूंढ लो इस रोल के लिये……नेगेटिव है…वो लड़का है…नेगेटिव दिखता है न…उसको बुला लेते हैं……हां हां वो ठीक है…सस्ते मे भी आ जायेगा…उसे बुला लो। तो मुझे लगता है कि पांच साल बाद मैं यही देखना चाहूंगा कि कम से कम मेरे लिए भी कुछ लिखा जाये।

सवाल:
-आज के बालीवुड मे प्रतियोगिता से आपको डर नही लगता?
पंकज:-नही नही…बिल्कुल नही…..हमारी लड़ाई किसी से नही है…ना पहले थी…..कोई दूसरा पंकज है नही यहां पर…मैं जो करता हूं…जैसा करता हूं..वैसा केवल मैं ही कर सकता हूं……तो बिल्कुल नही।

सवाल:
-फिल्मो मे ना होते तो क्या होते?
पंकज :-तो मैं….आई थिन्क शेफ होता…खाना बना रहा होता किसी होटल मे…..या मैं पुलिस में होता…इन दो चीजो मे मेरा इंटरेस्ट था…..मैं होटल में नौकरी कर भी चुका हूं…मैं शेफ था…..असिस्टेंट था बहुत नीचे लेबल पर…..बहुत साल पहले…..उस वक्त मैंने मनोज बाजपेयी को खाना बनाकर खिलाया था…..इस फिल्म के दरमियान मैंने उनको बताया भी कि भइया याद है आपको…..और अभी सौभाग्य है मेरा कि मैं उनके साथ एक्टिंग कर रहा था…हम लोग साथ खाना खाते थे…..जबकि उस समय मैं खुद खाना बनाकर लाया था उनके लिये…….।

सवाल:
-आपको क्या चाहिए एक्टिंग अवार्ड या बाक्स आफिस हिट?
जवाब:-बाक्स आफिस हिट।

सवाल:-चलिए चलते चलते आपसे कोई सवाल नहीं...आप ही कुछ अपनी सुना दीजिए।
जवाब:-एक कबिता है….तू जिन्दा है तू जिन्दगी के जीत पर यकीन कर….अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर।

आशीष:-शुक्रिया पंकज।
पंकज:-धन्यवाद।


 

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