संसद में प्रस्ताव पर बहस की शुरूआत के साथ ही वरूण गांधी ने पटर पटर कर रहे केंद्रीय मंत्री आनंद शर्मा को आडे हाथों लिया । कार्यवाही का संचालन कर रहीं सुमित्रा महाजन से मुखातिब होने के बजाय सीधे शर्मा जी को नाम से पुकारते हुए फटकार लगा दी । वरूण गांधी के आदेश से आनंद शर्मा तो क्या ट्रेजरी बेंच के तमाम कांग्रेसी दिग्गजों की घिग्गी बंध गई । हठात् लगा कि कांग्रेस के सांसदों में संजय गांधी का रौब आज भी काम कर रहा है । और कांग्रेस के पुराने नेताओं में इमरजेंसी के नायक की दहशत पैंतीस साल बाद भी बरकरार है । इसी दहशत ने संजय गांधी के संतान के साथ कांग्रेस सांसदों को सलाहियत से पेश आने का तमीज सिखाया है।
जब तक वरूण बोलते रहे.ट्रेजरी बेंच पर मुर्दानी चुप्पी छाई रही। महसूस होता रहा कि वरूण गांधी नहीं कांग्रेस का कोई युवराज बोल रहा है । संसद में बहस के इस अद्भूत नजारे को बयां करते हुए फेसबुक पर एक मित्र की टिप्पणी है कि वरूण गांधी, कांग्रेस या बीजेपी के युवराज हों या न हों लेकिन दादी इंदिरा गांधी के असली युवराज यही हैं ।
संसद में स्वर्गीय इंदिरा गांधी के दोनों ही पौत्र अलग अलग ध्रुव पर मौजूद है। शनिवार को जब वरूण गांधी बोल रहे थे, तो राहुल गांधी सदन में नहीं थे पर प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज के भाषण ने सदन के माहौल में राहुल गांधी की मौजूदगी बना दी थी। इसलिए एक दिन बोलने खडे हुए वरूण की चचेरे भाई राहुल गांधी से तुलना लाजिम लगी। अन्ना हजारे से अनशन खत्म करने की अपील के वक्त वरूण गांधी की जिस परिपक्वता का परिचय दिया उसने वरूण में संजय गांधी की छवि का अहसास होता रहा। राजीव से जिस तरह संजय छोटे थे उसी तरह राहुल से वरूण गांधी छोटे हैं। लेकिन कदकाठी में संजय की भांति ही वरूण बडे भाई राहुल से ज्यादा लंबे तगडे हैं। राजीव और संजय के बीच उम्र का फासला कोई ढाई साल का था। लेकिन वरूण गांधी से राहुल दस साल बडे हैं।
शनिवार को भाषण के दौरान दस साल छोटे होने और कम मौका मिलने के बावजूद भी वरूण गांधी की आवाज राहुल से ज्यादा सधी और आम लोगों की आवाज से जुडी लगी। राहुल की तुलना में ज्यादा होशियार नजर आए । बीजेपी में मिल रहे कम महत्व का अहसास कराते हुए भी वरूण गांधी बीजेपी की तारीफ में बीजेपी के ही कई घाघ नेताओं से बेहतर बोल गए । शुरूआत में ही कांग्रेस की तरफ से आगे आकर बोलने के आग्रह के बावजूद वरूण गांधी अपनी तय पिछली सीट से ही खडें होकर ही बोलते रहे। वरूण ने अलिखित भाषण की शुरूआत अंग्रेजी में की और आखिर में सरकते हुए हिंदी पर आ गए। अन्ना हजारे की नहीं सुनने के लिए सरकार को कोसते रहे। ताऊ राजीव गांधी के नाम पर चलाई जा रही योजनाओं तक में भ्रष्टाचार की बात करते रहे। कांग्रेस के तौर तरीकों से खुद के फासले का अहसास कराते रहे । कांग्रेस की बेहतर आलोचना कर देने के बाद भी वरूण को बेंच की थपथपाहट से राहुल की तुलना में बेहद कम सराहना मिली। पर कांग्रेस पर संजय गांधी का कायम असर रहा हा कि सरकार के सांसदों की तरफ से उनको लगभग राहुल सरीखा एटेंशन मिलता रहा ।
बहरहाल फिरोज वरूण गांधी और राहुल की तुलना करें तो शुक्रवार को राहुल गांधी लिखा पढते हुए भी हिचक रहे थे पर वरूण ने अलिखित भाषण में शब्दों की कमी को युवा खून के जोश के जिक्र पूरा करने की कोशिश की । राहुल बोलते वक्त सदन के हंगामें में फंसने और अटकने की नौबत पर लोकसभा के विशिष्ठ दर्शक दीर्घा में मौजूद बहन प्रियंका की तरफ उम्मीद भरी नजर से देख रहे। तो इसके उलट वरूण गांधी चूं चपड कर रहे बाकी सांसदों को यह कहते- डपटते नजर आ रहे थे कि बोलने के उनके मौलिक हक है। और सांसद उनके हक का हनन नहीं कर सकते। कनपट्टी तक बाल और चेहरे के हावभाव भरी दबंगता से वरूण गांधी सदन को संजय गांधी का वारिस होने का आभास देते रहे। वरूण की दबंगता के बीच चुप्पी साधे कांग्रेस सांसद उपहास की मुद्रा में बैठे रहे। कांग्रेस सांसदों की गुमसुम युवा टोली को देखकर साफ लग रहा था कि गांधी परिवार के प्रति चाटुकारिता इनके भी रग रग में समा गई है । मक्खनबाजी की मजबूरी ने इनकी आंखों पर भी पट्टी बंघ दी है और वो राहुल या वरूण गांधी के भेद करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। ट्रेजरी बेंच की चुप्पी से तो ऐसा ही लगा कि वरूण गांधी की "ताई" सोनिया गांधी पार्टी सदस्यों पर सिर्फ इसलिए बरस पडेंगी या कार्रवाही कर देंगी कि उन्होने परिवार के खून के खिलाफ आंखे उठाई। जबान चलाई। खिलाफ में बहस करने की जुर्रत को खिलाफत के तौर पर ले लिया जाएगा।
वरूण गांधी के आनंद शर्मा को डांटने का नजारा इसलिए भी अद्भूत था कि आनंद शर्मा ने राहुल गांधी की शान में कुछ क्षण पहले ही कसीदे पढे थे। इससे प्रतिपक्ष से तकरारें बढी थी। आनंद शर्मा ने राहुल गांधी के चुनाव आयोग की तरह ही लोकपाल को स्वायत्त संगठन बनाने और राजनीतिक पार्टियों के लिए स्टेट फंडिंग की बात को कांग्रेस का विजन डाक्यूमेंट बताया तो विपक्ष के सदस्य बार बार उद्वेलित होने लगे। वरूण गांधी के बोलना शुरू करते वक्त सदन का माहौल गैर अनुशासित हो चला था। वरूण गांधी खास पृष्ठभूमि में मजबूती के साथ बोल रहे थे। अन्ना हजारे के अनशन के लिए 16 अगस्त से घर के प्रांगण का आफर देकर वरूण गांधी ने पहले ही माइलेज ले रखा है। इसलिए उनमें जोश की कमी नजर नहीं आई । शोर मचाने वाले सांसदों को आदेशात्मक स्वर में चुप रहने की बात करते हुए 31 साल के वरूण के भाषण में थोडा व्यवधान समाजवादी पार्टी के शैलेन्द्र कुमार ने सांसद को जनता का नौकर या जनता का प्रतिनिघि कहे जाने पर आपत्ति से पैदा हुई । लेकिन कांग्रेस बेंच की चुप्पी ने अंग्रेजी बोलते बोलते हिंदी पर उतर आए वरूण गांधी को बात रखने में कोई बडी दिक्कत नहीं आने दी ।
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