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चवन्नी में चांद बटोर लेने की हसरत है कि जाती नहीं

बड़े दिनों से सुनता आ रहा था कि अब चवन्नी-अठन्नी का जमाना नहीं रहा। महंगाई के इस दौर में अब मिलता ही क्या है चवन्नी और अठन्नी में। और अब आखिरकार चवन्नी के प्रयोग को बंद करने के बाद आधिकारिक घोषण के बाद यह साफ हो चुका है कि अब चवन्नी का वह सिक्का प्रचलन से पूरी तरह से बाहर हो जाएगा, जो शायद भारतीय सिक्कों के इतिहास में सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। तो क्या अब यह मान लिया जाए कि प्रचलन से बाहर होने के बाद चवन्नी हमारे बीच से गायब होकर सिर्फ संग्रहालयों तक ही सीमित रह जाएगी? हर छोटे बड़े की जेब में खनकने वाली चवन्नी अब एक दुर्लभ वस्तु बनकर रह जाएगी? शायद नहीं। चवन्नी को हमारे बीच से इतनी आसानी से हटाना संभव नहीं है। चवन्नी सिर्फ एक सिक्का मात्र नहीं रहा है। चवन्नी तो हमारी एक विचारधारा बन चुका है। हमारे समाज में गहराई तक व्याप्त एक इकाई है एक सांस्कृतिक पहचान है चवन्नी। चार आने और पच्चीस पैसे से कहीं आगे जाकर चवन्नी हमारी सोसाइटी के एक खास हिस्से का प्रतिनिधि बन गई है। चवन्नी का सिक्का भले बाजार से गायब हो गया हो पर हमारी सोसाइटी से चवन्नी के उस प्रतिनिधित्व को इतनी आसानी से नहीं नकारा जा सकता।

जरा बात करते हैं चवन्नी के इतिहास का हिस्सा बनने की। आज कहा जा रहा है कि चवन्नी अब इतिहास का हिस्सा बन जाएगी। उन लोगों को मैं बता देना चाहता हूं कि चवन्नी आज से नहीं बहुत पहले से इतिहास का हिस्सा रही है। चवन्नी के सिक्के का प्रचनल रहा हो या नहीं पर चार आने के रूप में इसने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में खासी भूमिका निभाई। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आन्दोलन के समय लोगों को कांग्रेस से जोडऩे के लिए चार आने में सदस्यता अभियान चलाया था। उस समय चवन्नी और गांधी को लकर एक नारा दिया गया था कि खरी चवन्नी चांदी की, जय बोलो महात्मा गांधी की। गांधी के इस अभियान से लोग काफी जुड़े थे और कांग्रेस को एक आर्थिक मजबूती भी मिली थी। कालांतर में यही चवन्नी एक और गांधी के विरोध में मुखर हुई, जब आपातकाल में नारा दिया गया कि चार चवन्नी थाली में, इंदिरा गांधी नाली में। इस तरह से चवन्नी का अपना इतिहास तो है ही वह ऐतिहासिक घटनाओं की भी गवाह रही है।

जरा याद करें कभी आप नुक्कड़ की चाय वाली दुकान पर पहुंचे हों और आपने चाय मांगी हो, दुकानदार चवन्नी को आवाज लगाता है और पट से चाय हाजिर। और हां अभी भी अगर पुराने लोगों से बात करें तो वे आपको अपनी यादों में गिनाते मिल जाएंगे कि उनके जमाने में चवन्नी की चाय मिलती थी, चवन्नी का ये मिलता था, चवन्नी को वो। पहले तो घरों में छोटे बच्चों को भी चवन्नी नाम से पुकारा जाता था और गावों में नौटंकी देखते हुए चवन्नी का कैरेक्टर तो कितनी ही बार आखें के सामने से गुजरा है। हमारी सोसाइटी में बड़ा प्रचलित शब्द रहा है चवन्नी छाप। यह शब्द अक्सर ऐसे व्यक्ति के लिए होता था जो आम होता था या फिर कमजोर। चवन्नी लोगों की औकात नापने का भी पैमाना रही है। इसतरह से चवन्नी हमारे सामाजिक परिवेश में कुछ इस तरह से समा चुकी है कि इतनी आसानी से इसे भुलाना संभव नहीं होगा।

चवन्नी से कई फेमस चीजें भी जुड्ी हुई हैं। जालंधर के चवन्नी चोर ने अपना सिक्का जमाया तो गुजराती ग्राहकों की जांच पड़ताल के लिए चवन्नी पर आधारित मुहावरे को ही आधार माना गया। कहा जाता है कि गुजराती ग्राहक अपने रुपए की पांचवी चवन्नी के बारे में जानना चाहता है। हमारे यहां इनाम स्वरूप चवन्नी देने की भी परंपरा रही है। कोई और इनाम लोगों की जुबान पर नहीं चढ़ा जितना कि चवन्नी का। पुराने जमाने में घर का कोई बच्चा कोई प्रशंसनीय कार्य करता था तो इसे बतौर इनाम चवन्नी मिलती थी। मेला देखने जाने के लिए चवन्नी ही मिलती थी। नौटंकियों में चवन्नी उछालने का शौक भी काफी पुराना रहा है। चवन्नी के इनाम का इतना प्रचलन रहा है कि लोग आज तक कहते हैं कि है नहीं वरना अभी चवन्नी का इनाम देता। इस तरह चवन्नी खुद तो फेमस हुई ही। बेहतर काम करने वालों को प्रोत्साहित करने का भी माध्यम रही है।

अब जरा फिल्मों की ओर रुख करते हैं। भारतीय फिल्में ने सोसाइटी से काफी कुछ लेकर फेमस बनाया है। उसमें एक चवन्नी भी है। नौटंकियों के गाने की तर्ज पर खून पसीना फिल्म में आशा भोंसले के गाये गीत राजा दिल मांगे चवन्नी उछाल के ने धूम मचा दी थी। मु। रफी का देते जाना चवन्नी अठन्नी बाबू हो या फिर मुमताज की चांदी की चवन्नी फिल्म इंडस्ट्री के गानों में तो चवन्नी ने धूम मचाई ही कैरेक्टर्स में भी चवन्नी छाई रही। विलेन के डायलॉग में भी लड़कियों को चवन्नी कहकर संबोधित किया जाता रहा है।

यहां तक कि चवन्नी का चलन बंद होने के बाद भी लोगों में चवन्नी को लेकर एक ललक देखी जा सकती है जिसे चवन्नी के नाम से चलने वाले ब्लॉग्स या फिर चवन्नी के नाम पर बच्चों की कहानियों में साफ देखा जा सकता है। तो जनाब आने वाले वक्त में भले ही ही बच्चों को चवन्नी का सिक्का दिखाने के लिए टकसाल और संग्रहालयों में ले जाना पड़े पर चवन्नी की विचारधारा और चवन्नी की सामाजिक स्वीकार्यता को इतनी आसानी से खत्म नहीं किया जा सकता। चवन्नी हम सबकी चवन्नी छाप मुस्कान में, घर के छोटे बच्चे में, सोसाइटी के कमजोर में और डिफरेंट वैराइटीज में हम सबके बीच घूमती रहेगी।

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